दाऊ जी ऐ ब्रज घनौ प्यारौ है। विपत्ति मै ऊ अपए पांव जमाए इतै ठाड़े रहे। राजा जय सिंह की बेटी बिनै लै जावे कू आई पर खाली हाथ लौटी। दाऊ नै स्वप्न में कह दई, में ब्रज नाथ छोडूंगो| तब ते वृंदावन की अनाज मंडी मै विराजमान हैं। कहमैं कि इतेक बड़ौ विग्रह पूरे ब्रज मै नाय। ताते इनकौ नाम बड़े दाऊजी पड़ गयौ। गोविंद देव जी के संग बड़े दाऊ जी की मूर्ति ऊ गोमा टीला ते प्रकट भई चलौ, तुम्हें इनके दर्शन कराय लामैं।
अनाजमंडी में बड़े दाऊ जी का प्राचीन मंदिर उपेक्षा का शिकार है। इसका प्रचार प्रसार नहीं है। औरंगजेब के आक्रमण काल में गोविंद देव व अन्य कई विग्रह जयपुर चले गए पर बड़े दाऊजी यहीं रहे। उन्हें पास के कुंड में छिपा दिया गया था।
मंदिर के सेवायत वेदगोपाल गोस्वामी ने बताया कि “बड़े दाऊजी का इतिहास वृंदा देवी से मिलता-जुलता है। पहले इनका विग्रह गोविंद देव में ही सेवित था। औरंगजेब के आक्रमण के समय मंदिर सेवायतों बड़े दाऊजी हमारे पुरखों को सौंप दिए। कुछ समय तक गोविंद देव जी मंदिर पीछे कुटी में इनका विग्रह सेवित होता रहा। बाद मंदिर का निर्माण हुआ। सन् 1835 करौली की रानी ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इनके बारे एक दोहा कहा जाता है, वृंदावन कटन लगौ, भाग गए सब देव, वृंदावन ठाड़े यमुना और बलदेव। इतना विशाल विग्रह ब्रज में कहीं नहीं है।”
गोविंद देव अन्य विग्रह जयपुर में पधारे गए। वहां के राजा जय कि सिंह पत्नी को बड़े दाऊजी का पता चला। वह उनके दर्शन करने व संग ले जाने को यहां आई। उसने दाऊ जी को रथ पर विराजमान किया। अगली सुबह निकलना था। रात्रि में बलदेव स्वप्न देकर कहा ब्रज छोड़कर नहीं जाऊंगा। प्रातःकाल राजकुमारी ने दाऊजी को नमन कर अकेले ही जयपुर के लिए प्रस्थान किया।
राधा मोहन की मोहिनी छवि
वृंदावन-मथुरा रोड पर मुंगेर राज मंदिर की सुंदरता देखते बनती है। यहां राधा मोहन की मोहिनी मूरत सेवित है। मुंगेर के राजा रघुनंदन प्रसाद सिंह ने सन् 1932 में इस मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर के सचिव कुमार प्रशांत ने कहा कि “ठाकुर जी ने राजा साहब को वृंदावन में मंदिर बनवाने का स्वप्न दिया था। उन्होंने मुंगेर में भी चैतन्य महाप्रभु और जगन्नाथ जी के मंदिर का निर्माण कराया” यहां सनातन पद्धति से पूजा होती है।
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