फ्लाईओवर पर बसों के लिए यात्री लगाते हैं दौड़

यूनिक समय, छाता (मथुरा)। छाता विधानसभा क्षेत्र। छाता तहसील मुख्यालय, लेकिन बस स्टेशन तक नहीं। यदि पुराना बस स्टेशन है तो वहां लगती हैं सब्जी की दुकानें। इस समय आगरा, मथुरा और दिल्ली के बीच दौड़ने वाली उप्र परिवहन निगम, हरियाणा रोडवेज की बसें बाईपास होकर ओवर ब्रिज होकर गुजरती हैं। यात्री नीचे बसों के इंतजार में घंटों खड़े रहते हैं। यात्री इस बात के इंतजार में छाता में बस स्टेशन कब बनेगा।

गौरतलब है कि यूपी में भाजपा सरकार को पांच साल पूर्ण हो जाने के बाद फिर से एक बार भाजपा की सरकार बनी है। लोगों को इस बात का गर्व है कि छाता विधान सभा क्षेत्र से जीते विधायक योगी सरकार में मंत्री भी है, लेकिन कस्बा छाता परिवहन व्यवस्था के लिए अपेक्षा का शिकार दिखाई देता है। वजह यहां पर बस स्टैण्ड नहीं है।

बस चालक- परिचालक अपनी मनमानी से यात्रियो को दो किलो मीटर लम्बे फ्लाईओवर के दांये/बांये छोड़ देते है। उनसे बस को नीचे ले जाने की बात कहते है तो वह यात्रियों से दुर्व्यवहार करते है। ऐसी घटना छाता के रहने वाले आलोक पाठक के साथ गत दिनों हो चुकी है। उन्होंने बस नम्बर यूपी84 टी 4794 के ड्राइवर और कंडक्टर से बस को फ्लाईओवर की बजाय नीचे होकर ले चलने की बात कही तो उन्होंने नहीं मानी। यात्री ने अपना फोन निकाला और वीडियो रिकोर्डिंग कर सम्बधित अधिकारीयो से शिकायत कर दी। यह वीडियो इस समय सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन चुकी है।

गौरतलब है कि छाता तहसील मुख्यालय होने के साथ-साथ यहां कोर्ट और औद्योगिक क्षेत्र है। यहॉ से सैकड़ों जुड़े हैं हजारों को संख्या में लोग प्रतिदिन आवागमन करते हैं। यहां बस स्टैण्ड बंद होने की वजह से बसें फ्लाईओवर से चलती हंैं। लोग बाईपास पर बस देखते ही दौड़ लगाते हैं लोग बसों का रूकने का कोई निश्चित स्थान नही रुकती है। वृद्ध, विकलांग महिला और छोटे बच्चों को भारी परेशानियां होती है। छाता के गोवर्धन, बरसाना, शेरगढ़ चौराहा, बाईपास पुलिस चौकी और ओवरब्रिज के दोनों और यात्री बसों का इंतजार में खड़े रहते है।

चौराहों पर लोगों के बैठने की कोई उचित व्यवस्था नही है। रात्रि में लोगों को बसों के दर्शन तक नहीं होते। बस आती दिखती है तो लोगों को भगदड़ मच जाती है।


आलोक पाठक का कहना है कि फ्लाईओवर लगभग दो किलोमीटर का है। उसके ओर दोनों ओर जंगल हैं। ऐसी स्थिति में विशेष कर रात्रि के समय सवारियों को दो किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। जहां किसी भी तरह का हादसा हो सकता है।

बंटी पांचाल का कहना है कि कस्बे के छात्र/छात्राऐं कोसीकलां व मथुरा के डिग्री कॉलेजो में शिक्षा ग्रहण करने जाते है, पर बसों के अभाव में दौड़ लगानी पडती है। इसमें युवा ही नही बल्कि वृृद्ध, विकलांग व छोटे बच्चे भी शामिल होते है।

बलदेव सिंह का कहना है कि कि कस्बे में बस अड्डा बंद होने से लोगों पर इधर-उधर चौराहों पर बसों का इंतजार करना पड़ता है। अधिकांश बसों के रूकते ही यात्री दौडने लगते है, जिसकी बजह से अकसर हादसे होते रहते है।

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