बांग्लादेश के हालात पर दुनिया की चुप्पी को लेकर क्या बोले पवन कल्याण?

पवन कल्याण

यूनिक समय ,नई दिल्ली। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों को लेकर आंध्र प्रदेश के डिप्टी सीएम पवन कल्याण ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। पवन कल्याण ने कहा भारत ने मुंबई हमले के आतंकी को भी पूरी कानूनी मदद दी गई थी, लेकिन बांग्लादेश में एक हिंदू साधु को ना कानूनी मदद मिल रही है और न ही उनके मामले की निष्पक्ष सुनवाई हो रही है। पवन कल्याण ने छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों को संबोधित करते हुए कहा कि अब उनकी आवाज कहां है?

पवन कल्याण ने सोशल मीडिया पर साझा एक पोस्ट में लिखा कि दो मामले हैं, जिनसे न्याय और अन्याय के अंतर को समझा जा सकता है। पहला मामला भारत का है, जहां 2008 के मुंबई हमले में 166 लोग मारे गए और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इस दौरान आतंकी कसाब को रंगे हाथों पकड़ा गया और उसने अपना अपराध स्वीकार भी किया, लेकिन फिर भी उसके मामले में पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया और उसे कानूनी मदद भी दी गई। हाईकोर्ट से सजा मिलने के बाद उसे सर्वोच्च न्यायालय में अपील की भी सुविधा दी गई और फिर राष्ट्रपति के पास उसकी दया याचिका भी भेजी गई। 21 नवंबर 2012 को उसे सजा दी गई, लेकिन इस दौरान भारत के लोकतांत्रिक ढांचे और इसके धैर्य को पूरी दुनिया ने देखा।

वहीं दूसरा मामला बांग्लादेश का है, जहां एक हिंदू साधु को राजद्रोह के मामले में गिरफ्तार किया गया है। चिन्मय कृष्ण दास ने सिर्फ बांग्लादेश में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस की सरकार में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अब उन्हें न कानूनी मदद मिल रही है और न ही निष्पक्ष सुनवाई हो रही है। ऐसे हालात में छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी, मानवाधिकारों को स्वयंभू चैंपियन अब चुप क्यों हैं? अब उनका गुस्सा कहां हैं? क्यों अलग जगह पर न्याय का चेहरा अलग हो जाता है? पवन कल्याण ने कहा कि दुनिया को चिन्मय कृष्ण दास जैसे लोगों के लिए बोलने की जरूरत है क्योंकि इसी पर मानवता की आत्मा निर्भर करती है।

गौरतलब है कि बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के सत्ता से जाने के बाद से वहां हिंदू समुदाय के लोगों पर लगातार हमले हो रहे हैं। कई मंदिरों में तोड़फोड़ की गई और बांग्लादेश में हिंदू और भारत विरोधी भावनाएं भड़काने की कोशिश हो रही है। भारत सरकार ने इसे लेकर बांग्लादेश की सरकार के सामने आपत्ति जताई है, लेकिन इसके बावजूद बांग्लादेश की सरकार अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम नहीं उठा रही है।

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