आमलकी एकादशी को क्यों कहते हैं रंगभरी एकादशी, जानें कारण और महत्व

आमलकी एकादशी

यूनिक समय, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में आमलकी एकादशी का विशेष महत्व है। यह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को होती है, जिसे रंगभरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 9 मार्च को सुबह 7 बजकर 45 मिनट से होगी। वहीं, इस एकादशी का समापन 10 मार्च को सुबह 7 बजकर 44 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, आमलकी एकादशी (रंगभरी एकादशी) का व्रत 10 मार्च को ही रखा जाएगा।

आमलकी एकादशी को रंगभरी एकादशी क्यों कहते हैं?

आमलकी एकादशी के दिन से ही रंग खेलने का सिलसिला शुरू हो जाता है। काशी में आमलकी एकादशी को रंगभरी एकादशी के नाम से जानते हैं। रंगभरी एकादशी के दिन से काशी में 6 दिनों तक रंग खेलने की परंपरा शुरू हो जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता पार्वती का गौना कराकर काशी यानी बनारस लेकर आए थे। कहते हैं कि महादेव और माता पार्वती के काशी आने की खुशी में देवता-गणों ने दीप-आरती के साथ फूल, गुलाल और अबीर उड़ाकर उनका स्वागत किया था।

तब से ही फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भोलेनाथ और मां पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और गुलाल-अबीर उड़ाकर होली खेली जाती है। इस दिन को रंगभरी एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती के साथ काशी आते हैं और देवी मां को नगर भ्रमण कराते हैं।

आमलकी/रंगभरी एकादशी का महत्व

रंगभरी एकादशी के दिन काशी विश्वनाथ मंदिर में बाबा विश्वनाथ और पूरे शिव परिवार, यानि माता पार्वती, श्री गणपति भगवान और कार्तिकेय जी का विशेष रूप से साज-श्रृंगार किया जाता है। इसके अलावा भगवान को हल्दी, तेल चढ़ाने की रस्म निभाई जाती है और भगवान के चरणों में अबीर-गुलाल चढ़ाया जाता है।साथ ही शाम के समय भगवान की रजत मूर्ति यानि चांदी की मूर्ति को पालकी में बिठाकर बड़े ही भव्य तरीके से रथयात्रा निकाली जाती है। रंगभरी एकादशी के पर्व को मनाने और बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद पाने के लिए काशी में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। धार्मिक मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन शिव-शक्ति की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है। साथ ही विवाहित महिलाओं के अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता है।

आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और आंवले के पेड़ की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, आंवले के पेड़ में बुध ग्रह का वास माना गया है। ऐसे में बुध ग्रह मजबूत होते हैं और उनकी शुभता प्राप्ति से मानसिक बल बढ़ता है।

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