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श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर हुई तुलसी सालिग्राम प्राकट्य लीला
— जन्मोत्सव में भाग लेने आए दर्शक लीला देखकर हुए आनंदित
मथुरा। श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के तत्वावधान में श्रीकृष्ण जन्म महोत्सब समिति (रजि0) के अन्तर्गत श्री राधाविनोद लीला संस्थान के द्वारा प्रातः तीर्थवासी विप्र पर कृपा एवं सायं काल को तुलसी सालिग्राम प्राकट्य लीला का मंचन हुआ। जिसके अन्तर्गत दैत्यराज जालंधर एवं भगवान विश्णु का युद्ध हुआ काफी दिनों तक यह युद्ध चला किन्तु जालंधर परास्त नहीं हुआ । अपनी इस विफलता पर श्री विष्णु भगवान ने विचार किया यह दैत्य मृत्यु को प्राप्त क्यों नहीं हो रहा है । तब पता चला दैत्यराज की पत्नी वृंदा का तप बल ही उसकी मृत्यु में अवरोधक बना हुआ है । जब तक उसके तप बल का क्षय नहीं होगा तब तक दैत्य राज का वध नहीं किया जा सकता हैं ।
इस कारण विष्णु भगवान ने जालंधर का रूप धारण किया और तपस्विनी वृंदा की तपस्या के साथ ही उसके सतीत्व को भी भंग कर दिया । इस कार्य में प्रभु ने छल व कपट दोनों का प्रयोग किया । इसके बाद हुए युद्ध में उन्होंने जालंधर का वध कर युद्ध में विजय पाई । जब वृृंदा को भगवान के छलपूर्वक अपने तप व सतीत्व को समाप्त करने का पता चला तो वह अत्यंत क्रोधित हुई व श्री विष्णु को श्राप दिया कि तुम पत्थर के हो जाओं । इस श्राप को प्रभु ने स्वीकार किया पर साथ ही उनके मन में वृंदा के प्रति अनुराग उत्पन्न हो गया ।तब उन्होंने वृंदा से कहा कि तुम वृक्ष बन कर मुझे छाया प्रदान करना । वहीं वृंदा तुलसी वृक्ष के रूप में उत्पन्न हुई एवं भगवान विष्णु सालिग्राम शिला के रूप में उत्पन्न हुये । इस लीला को देख भक्तगण भाव विभोर हो गये और वे जन्मस्थान के लीला मंच के समीप श्री तुलसी सालिग्राम भगवान के जयकारे लगाने लगे ।
इस अवसर पर संस्थान के सचिव कपिल शर्मा, सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी तथा समिति के लक्ष्मण दास अग्रवाल, प्रेम अग्रवाल सर्राफ, चौ0 प्रदीप कुमार, उमेश अग्रवाल प्रेस वाले, अतुल अग्रवाल, महेश चन्द अग्रवाल, अनिल भाई ड्रेस, सुनील कुमार सिंघल, लक्ष्मण प्रसाद खण्डेलवाल, यादवेन्द्र अग्रवाल, मनोज अग्रवाल, कन्हैया लाल रंग वाले, कुंजबिहारी सिंघल, कृष्ण मुरारी बंसल, माधव शरण अग्रवाल आदि उपस्थित थे ।
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