वो इस्लाम को राष्ट्र धर्म बना सकते हैं और हम ‘राष्ट्र धर्म’ भी नहीं निभा सकते, अल्पसंख्यक होना नर्क समान

अहमदाबाद। 14/15 अगस्त, 1947 को भारत का विभाजन हुआ। धर्म के नाम पर हुए इस विभाजन के परिणामस्वरूप मुसलमानों के लिए पाकिस्तान नामक अलग राष्ट्र का गठन हुआ। विभाजन से यह स्पष्ट हो गया कि मोहम्मद अली जिन्ना का भारत में बहुसंख्यक हिन्दुओं के बीच मुस्लिमों के असुरक्षित रहने का भय समाप्त हो गया और लाखों लोगों ने जिन्ना के पैदा किए देश पाकिस्तान में स्वयं को सुरक्षित मानते हुए भारत को अलविदा कह दिया। 90 वर्षों के स्वतंत्रता आंदोलन में हिन्दुओं और मुसलमानों ने समान रूप से भाग लिया और जब उस आंदोलन के फलस्वरूप स्वतंत्रता मिली, तो मुसलमानों को तो जिन्ना का बनाया देश पाकिस्तान मिल गया, परंतु बहुसंख्यक हिन्दुओं और अन्य धर्म के लोगों के पास क्या विकल्प था ? स्वाभाविक और सहज रूप से यह विकल्प भारत ही था, क्योंकि कोई भी व्यक्ति, जो मुसलमान नहीं था, वह भला इस्लाम के नाम पर बने देश में कैसे जा सकता है ?

इस पृष्ठभूमि को बनाने का उद्देश्य है नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) की प्रासंगिकता, आवश्यकता और अनिवार्यता को सिद्ध करना। विभाजन के बाद पाकिस्तान ने इस्लाम को अपना राष्ट्र धर्म बनाया। अफग़ानिस्तान का राष्ट्र धर्म भी इस्लाम ही है। 1971 में भारत के बलबूते पर अस्तित्व में आए बांग्लादेश ने भी भारत से धर्मनिरपेक्षता की सीख नहीं ली। उसने भी अपना राष्ट्र धर्म इस्लाम को ही बनाया। अब जिस देश का राष्ट्र धर्म इस्लाम हो, वहाँ स्वाभाविक रूप से मुस्लिम धर्मावलंबी बहुसंख्यक होंगे। अब ये तीनों देश ऐसे तो हैं नहीं, जहाँ बहुसंख्यक वर्ग के लोगों में भारतीय बहुसंख्यकों जैसी सहिष्णुता हो। इस पर भी धर्म के नाम पर सर्वाधिक धर्मांधता के लिए कुख्यात इस्लाम को राष्ट्र धर्म बनाने वाले इन देशों में धर्मांध मुसलमान कैसे नियंत्रण में रह सकते थे ? यही कारण है कि इन तीनों ही देशों में वर्षों से ग़ैर-मुसलमान लोगों पर निरंतर अत्याचार होते रहे, हो रहे हैं और कदाचित होते भी रहेंगे।

अब यह सोचिए कि जिन ग़ैर-मुस्लिम लोगों पर अत्याचार हो रहे हैं, वे किस धर्म के लोग हैं ? उत्तर है हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई और पारसी। इनमें भी बड़ी संख्या हिन्दुओं की है। अब यह सोचिए कि इन छहों धर्मों की जड़ें किस देश से जुड़ी हैं ? उत्तर है ईसाई और पारसी धर्म को छोड़ कर शेष चारों धर्मों के लोगों की जड़ें भारत से ही जुड़ी हैं। अब ऐसे में जबकि पाकिस्तान, अफग़ानिस्तान और बांग्लादेश इस्लाम को राष्ट्र धर्म बना कर परधर्मियों पर अत्याचार की पराकाष्ठा कर रहे हों, तब इन देशों में बसने वाले लाखों हिन्दुओं सहित इन परधर्मियों को राज्याश्रय देने का राष्ट्र धर्म यदि भारत निभाना चाहता है, तो इसमें आपत्ति वाली बात क्या है ?

CAB विरोधी पढ़ लें अत्याचार के आँकड़ें

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गृह मंत्री अमित शाह धारा 370 के बाद फिर एक बार एक ऐतिहासिक नागरिक संशोधन बिल लेकर आए हैं, परंतु कांग्रेस सहित अनेक विरोधी दल इस बिल का विरोध कर रहे हैं। विपक्ष की मुख्य आपत्ति यह है कि सीएबी के अंतर्गत पाकिस्तान, अफग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले मुस्लिम शरणार्थियों को क्यों नहीं लाया गया है ? यहाँ ऐतिहासिक व सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की छोटी हो चुकी सोच पर तरस आता है। कांग्रेस आख़िर इतनी सी बात क्यों नहीं समझ पा रही कि जिन देशों का राष्ट्र धर्म इस्लाम हो, वहाँ मुस्लिमों पर अत्याचार कैसे हो सकते हैं और उन्हें शरणार्थी के दायरे में कैसे माना जा सकता है ? यदि इस्लाम को राष्ट्र धर्म बना कर भी ये देश मुसलमानों पर अत्याचार करते हैं, तो यह तो उन देशों की आंतरिक समस्या ही हुई न ? विपक्ष सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी-BJP) पर तो हिन्दुत्व आधारित राजनीति करने का आरोप लगाता है, पर वह यह भूल जाता है कि मुस्लिमों को शरणार्थी की श्रेणी में लाकर वह मुस्लिमों पर राजनीति कर रहा है। यदि कांग्रेस सहित सभी सीएबी विरोधी राजनीतिक दल पाकिस्तान, अफग़ानिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं सहित सीएबी में प्रावधानित सभी छह धर्मों के लोगों पर हो रहे क्रूर अत्याचार और यातना के आँकड़े जान लें, तो कदाचित वे सीएबी का विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाएँगे।

अल्पसंख्यक होना नर्क समान

सबसे पहले बात पड़ोसी देश पाकिस्तान की ही करें, तो आँकड़े बताते हैं कि वहाँ हर वर्ष 1000 से अधिक ग़ैर-इस्लामिक लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक होना नर्क समान है। पाकिस्तान में लगभग प्रतिदिन अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होते हैं, परंतु वहाँ का शासन-प्रशासन मामलों को दबा देता है, क्योंकि उनका राष्ट्र धर्म तो इस्लाम है। पाकिस्तान से हज़ारों की संख्या में हिन्दू शरणार्थी भारत आते हैं। एक अनुमान के अनुसार हाल में लगभग 2 लाख से अधिक हिन्दू शरणार्थी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में शरण लिए हुए हैं और वे पाकिस्तान लौटना नहीं चाहते। ऐसे हिन्दू शरणार्थी आख़िर कहाँ जाएँगे ? क्या हिन्दू धर्मावलंबियों का सबसे बड़ा देश होने के नाते भारत का यह राष्ट्र धर्म नहीं है कि वह ऐसे शरणार्थियों को पनाह दे ? पाकिस्तान की जनगणना के अद्यतन आँकड़ों के अनुसार वहाँ हिन्दुओं की संख्या 14 लाख 14 हजार 527 है और यह संख्या लगातार घट रही है। ईसाई 12.70 लाख, सिख 6 हज़ार 146, पारसी 4 हजार 20 हैं। क्या इस्लाम के नाम पर धर्मांधता में डूबे लोग इन अल्पसंख्यक परधर्मियों को चैन से जीने देते होंगे ? अफग़ानिस्तान की बात करें, तो हाल ही वहाँ भी अल्पसंख्यकों की हालत अत्यंत दयनीय है। अफग़ानिस्तान में जहाँ इस्लामिक आतंकवाद के ख़तरनाक रूप तालिबान के साये तले स्वयं बहुसंख्यक मुसलमान सुरक्षित नहीं हैं, वहाँ परधर्मी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी कौन-सी सरकार दे सकती है ? भारत सरकार और भारतीय सेना के दम पर अस्तित्व में आए बांग्लादेश भी अल्पसंख्यक विशेषकर हिन्दू नरसंहार के लिए कुख्यात है। बाबरी मस्जिद विध्वंस 1992 के दौरान बांग्लादेश में इस्लामिक धर्मांध लोगों ने हिन्दुओं पर क्रूर अत्याचार किए। 28 हज़ार मकान जलाए, 2200 व्यवसाय और 3600 मंदिर ढहाए। 12 लोगों की हत्या की, 2 हज़ार हिन्दुओं को घायल किया और 2 हज़ार औरतों-लड़कियों को अमानवीय यातनाएँ दी गईं। 2001 में भी 45 दिनों के अंदर ही लगभग 40 लाख हिन्दुओं को कई तरह की यातनाएँ दी गईं। बांग्लादेश में हिन्दुओं को चुन-चुन कर निशाना बनाया जाता है।

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