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नागरिकता विधेयक के विरोध में हड़ताल कर रहे त्रिपुरा के संयुक्त आंदोलन के एक शिष्टमंडल ने आज यहां केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और सकारात्मक आश्वासन मिलने के बाद हड़ताल समाप्त करने की घोषणा की।
गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार संयुक्त आंदोलन के संयोजक एंथनी डेबारमा और सदस्य बी के हरंगखवाल ने यहां गृह मंत्री से मुलाकात की। उन्होंने शाह को नागरिकता विधेयक से संबंधित अपनी ङ्क्षचताओं से अवगत कराया। शाह ने शिष्टमंडल को उनकी ङ्क्षचताओं तथा मांगों के समाधान का आश्वासन दिया। यह आश्वासन मिलने के बाद शिष्टमंडल ने अपनी हड़ताल वापस लेने की घोषणा कर दी। उल्लेखनीय है कि संसद ने नागरिकता विधेयक को गुरूवार को ही मंजूरी दी थी। इसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश में धार्मिक उत्पीडन के बाद यहां आये गैर मुस्लिमों को देश की नागरिकता देने का प्रावधान है।
देश में नया नागरिकता कानून लागू, जानिए अब कौन कहलाएगा भारत का नागरिक
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने गुरुवार देर रात नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 को मंजूरी दे दी। इससे यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करने वाले गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने वाला एक अधिनियम बन गया है। भारत के राजपत्र, नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 के अनुसार, “संसद को 12 दिसंबर, 2019 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई और यहां सामान्य जानकारी के लिए प्रकाशित किया गया।” अधिनियम आधिकारिक राजपत्र में इसके प्रकाशन के साथ लागू होता है।
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क्या है नागरिकता संशोधन कानून?
केंद्र सरकार नागरिकता अधिनियम, 1955 में बदलाव कर नागरिकता संशोधन बिल लेकर आई। संशोधित बिल के अनुसार अब हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के सदस्य, जो 31 दिसंबर, 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हैं और वहां धार्मिक उत्पीड़न का सामना किया है, उन्हें गैरकानूनी प्रवासी नहीं माना जाएगा बल्कि भारतीय नागरिकता दी जाएगी। नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 बुधवार को राज्य सभा द्वारा पारित किया गया था और लोकसभा द्वारा सोमवार को पारित किया गया था। आपको बता दें कि पहले भारत की नागरिकता लेने पर 11 साल भारत में रहना जरूरी होता था, लेकिन अब यह समय सीमा 6 साल कर दी गई है।
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अनुसार लाखों-करोड़ों लोगों को इस कानून का फायदा मिलेगा। उनके अनुसार यह कानून सभी शरणार्थियों पर लागू होगा चाहे वो किसी भी तारीख से आए हों। इस मतलब जिस तारीख से वो भारत में आए हों, तभी से यहां के नागरिक माने जाएंगे। सरकार की ओर से जारी पहली कटऑफ के मुताबिक 31 दिसंबर 2014 से पहले आए सभी हिंदू-जैन-बौद्ध-सिख-ईसाई-पारसी शरणार्थी अब भारत की नागरिकता कहलाएंगे।
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