जीवन मंत्र। मंगलवार, 7 मई को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है। इस तिथि को अक्षय तृतीया और आखा तीज कहा जाता है। इस तिथि का विशेष महत्व है, क्योंकि ये तिथि सालभर में आने वाले 4 अबूझ मुहूर्तों में से एक है। अक्षय तृतीया के अलावा देवउठनी एकादशी, वसंत पंचमी और भड़ली नवमी को भी अबूझ मुहूर्त माना जाता है। यहां उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार जानिए शास्त्रों में अक्षय तृतीया का इतना अधिक महत्व क्यों बताया गया है…
अक्षय तृतीया से जुड़ी खास बातें
अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त माना गया है। इस तिथि पर सूर्य और चंद्र अपनी उच्च राशि में होते हैं। इसलिए इस दिन शादी, कारोबार की शुरूआत और गृह प्रवेश करने जैसे- मांगलिक काम बहुत शुभ रहते हैं। शादी के लिए जिन लोगों के ग्रह-नक्षत्रों का मिलान नहीं होता या मुहूर्त नहीं निकल पाता, उनको इस शुभ तिथि पर दोष नहीं लगता व निर्विघ्न विवाह कर सकते हैं।
अक्षय तृतीया पर किए गए दान-धर्म का अक्षय यानी कभी नाश न होने वाला फल और पुण्य मिलता है। इसलिए हिन्दू धर्म में इस तिथि को दान-धर्म करने के लिए श्रेष्ठ समय माना गया है। इसे चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं, क्योंकि इसी तिथि पर अष्टचिरंजीवियों में एक भगवान परशुराम का जन्म हुआ था।
वैशाख माह भगवान विष्णु की भक्ति के लिए भी काफी अधिक महत्व रखता है। इस माह की तृतीया तिथि यानी अक्षय तृतीया पर प्राचीन समय में भगवान विष्णु के नर-नरायण, हयग्रीव और परशुराम अवतार हुए हैं। त्रेतायुग की शुरुआत भी इसी शुभ तिथि से मानी जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी की विशेष पूजा करने की परंपरा है।
इस तिथि पर किए गए दान और उसके फल का नाश नहीं होता। इस दिन खासतौर पर जौ, गेहूं, चने, सत्तू, दही-चावल, गन्ने का रस, दूध के बनी चीजें जैसे मावा, मिठाई आदि, सोना और जल से भरा कलश, अनाज, सभी तरह के रस और गर्मी के मौसम में उपयोगी सारी चीजों का दान करना चाहिए। अक्षय तृतीया पर पितरों का श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन कराने की भी परंपरा है।
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