वृंदावन। हिंदुओं के सभी त्योहारों का रंग लॉकडाउन के चलते फीका पड़ता जा रहा है। पहले नवरात्र, हनुमान जयंती, बैसाखी और अब अक्षय तृतीया। लोगों ने घरों में ही पूजा करके संयम के साथ ये सभी त्योहार मनाए। लॉकडाउन की वजह से बांके बिहारीजी के मंदिर में इस बार भक्तजन बरसों पुरानी परंपरा का पालन नहीं कर पाएंगे। साल में एक बार बांके बिहारीजी गर्भ गृह से बाहर दर्शन देते हैं और यह शुभ अवसर होता है अक्षय तृतीया का दिन। अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर साल में एक बार बांके बिहारीजी के चरण कमलों के दर्शन भक्तों को करवाए जाते हैं। लेकिन इस बार लग रहा है बरसों पुरानी यह परंपरा टूट जाएगी और भक्तों को अपने मन में बसे श्याम से ही काम चलाना पड़ेगा। वृंदावन में अक्षय तृतीया के पर्व को सबसे बड़ा पर्व माना जाता है, लेकिन इस बार इसकी उमंग फीकी पड़ सकती है। आइए जानते हैं कब शुरू हुई यह परंपरा और क्या है इसके पीछे की कहानी और इस उत्सव की यहां कैसे होती हैं तैयारियां
सर्वांग चंदन लेपन
अक्षय तृतीया के दिन भगवान के पूरे शरीर पर चंदन का लेप किया जाता है। इसके लिए दक्षिण भारत से चंदन मंगाया जाता है और उसे महीनों पहले घिसना शुरू कर दिया जाता है। अक्षय तृतीया से एक दिन पहले तक चंदन को घिसने का कार्यक्रम चलता है और फिर उस दिन उसे और महीन किया जाता है। फिर इसमें कपूर, केसर, गुलाबजल, गंगाजल, यमुनाजल और विभिन्न प्रकार के इत्रों को मिलाकर लेप तैयार किया जाता है। अक्षय तृतीया के दिन श्रृंगार से पहले भगवान के पूरे शरीर पर इसका उबटन लगाया जाता है।
राधा और कृष्ण का सम्मिलित रूप
बांके बिहारीजी साक्षात राधा और कृष्ण का सम्मिलित रूप हैं। मान्यता है कि स्वामी हरिदासजी ने इन्हें अपनी भक्ति और साधना की शक्ति से प्रकट किया था। बांके बिहारीजी के श्रृंगार में आधी मूर्ति पर महिला और आधी मूर्ति पर पुरुष का स्वरूप दिया जाता है।
ऐसे शुरू हुई यह परंपरा
एक व्यक्ति वहीं पर खड़ा होकर यह गीत सुन रहा था। उसे प्रभु की भक्ति का यह भाव बहुत पसंद आया। दर्शन करके वह भी गुनगुनाते हुए अपने घर की ओर बढ़ गया। भक्ति भाव में लीन इस व्यक्ति की गाते-गाते कब जुबान पलट गई, वह जान ही नहीं पाया और वह उल्टा गाने लगा- बांके बिहारी जी के नयन कमल में चरण हमारे अटके।
प्रभु ने दिए दर्शन
उसके भक्तिभाव से प्रसन्न होकर बांके बिहारी प्रकट हो गए। प्रभु ने मुस्कुराते हुए उससे कहा, अरे भाई मेरे एक से बढ़कर एक भक्त हैं, परंतु तुझ जैसा निराला भक्त मुझे कभी नहीं मिला। लोगों के नयन तो हमारे चरणों में अटक जाते हैं परंतु तुमने तो हमारे नयन कमल में अपने चरणों को अटका दिया। प्रभु की बातों को वह समझ नहीं पा रहा था, क्योंकि वह प्रभु के निस्वार्थ प्रेम भक्ति में डूबा था। मगर फिर उसे समझ आया कि प्रभु तो केवल भाव के भूखे हैं। उसे लगा कि अगर उससे कोई गलती हुई होती तो भगवान उसे दर्शन देने न आते। प्रभु के अदृश्य होने के बाद वह खूब रोया और प्रभु के दर्शन पाकर अपने जीवन को सफल समझने लगा। मान्यता है कि तब से अक्षत तृतीया के दिन बांके बिहारी के चरणों के दर्शन की परंपरा शुरू हुई।
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