दावा है कि ये मशीनें घरों में लगने वाले आरओ सिस्टम से बेहतर है. आरओ में जहां दूसरी ओर पानी बर्बाद होता रहता है, वहीं इस मशीन में पानी की बर्बादी नहीं होती.
दुनिया में बढ़ते पेयजल संकट पर अकसर चर्चा होती रही है. 70 फीसदी जल हिस्से वाली इस धरती पर साफ पानी 3 फीसदी से भी कम है. इसमें पीने लायक तो और भी कम. ऐसे में एक नई तकनीक चर्चा में है. हवा से पानी बनाने की तकनीक. जानकर आश्चर्य होगा और प्राउड भी कि भारत में पहली बार बड़े पैमाने पर हवा से पानी बनाई जा रही है. ऐसा हो रहा है, हॉकी वर्ल्ड कप के दौरान ओडिशा में.
ओडिशा के भुवनेश्वर और राउरकेला के स्टेडियम्स में ऐसे कई वाटर स्टैंड लगाए गए हैं, जहां मैच देखने आ रहे दर्शक हवा से बना पानी पी रहे हैं. इन स्टेडियम्स में एंट्री करने पर हर मंजिल पर आपको ऐसे डिस्पेंसर मिलेंगे, जिनमें हवा से बना पानी मौजूद है. सारे डिस्पेंसर एक बड़े स्टील टैंक से जुड़े हैं, जहां हवा से बना पानी स्टोर हो रहा है.
हवा से ड्रिंकिंग वाटर बनाने का प्रोजेक्ट लगाया है कि इजरायल की कंपनी वाटरजेन ने. टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, भारत से पहले कंपनी अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूएई समेत 90 से अधिक देशों में प्रोजेक्ट लगा चुकी है. एटमॉस्फेयर वाटर जेनरेटर बनाने में कंपनी अपना नाम बना रही है. ये जेनरेटर हवा में मौजूद नमी को पेयजल में बदल देते हैं. कंपनी ने पिछले साल हॉकी इंडिया के साथ प्रोजेक्ट लगाने के लिए डील की थी.
पीने लायक पानी बनाने के लिए लिए एटमॉस्फेयर में मौजूद हवा को पहले दो फिल्टरों के जरिये गुजारकर शुद्ध किया जाता है. ये फिल्टर गंदगी और प्रदूषण के अलावा PM2. 5 तक के सूक्ष्म कणों को भी निकाल फेंकते हैं. फिल्टर होने के बाद शुद्ध हवा हीट एक्सचेंजर में जाती है, जहां हवा में मौजूद नमी पानी में बदल जाती है.
रिपोर्ट के अनुसार फिल्टरेशन, प्यूरीफिकेशन और मिनरलाइजेशन के लिए चार फिल्टर्स इस्तेमाल किए जाते हैं. इसके बाद आप हवा से शुद्ध पेयजल प्राप्त होता है. इसमें तनिक भी अशुद्धियां नहीं रह जातीं. वाटरजेन ने स्टेडियम में जो प्रोजेक्ट्स लगाए हैं उनसे हर दिन कई हजार लीटर पानी तैयार होता है.
वाटरजेन की सबसे बड़ी मशीन में हर दिन 6000 लीटर तक पानी तैयार होता है. इसकी कीमत 1.5 करोड़ रुपये है. वहीं कंपनी की मीडियम मशीन 900 लीटर तक, जबकि सबसे छोटी मशीन हर दिन 30 लीटर तक पानी का उत्पादन कर सकती हैं. मीडियम मशीन लगवाने का खर्च 70 लाख, जबकि सबसे छोटी मशीन का खर्च 2.5 लाख रुपये के करीब है.
कंपनी का दावा है कि उनकी मशीन घरों में लगने वाले आरओ यानी रिवर्स ऑस्मोसिस सिस्टम से बेहतर है. आरओ में जहां दूसरी ओर पानी बर्बाद होता रहता है, वहीं इस मशीन में पानी की बर्बादी नहीं होती. हवा को शुद्ध करने के बाद ही पानी बनाया जाता है, जिससे पानी भी शुद्ध तैयार होता है. कंपनी का कहना है कि इस मशीन के इस्तेमाल से भूजल स्तर बनाए रखने में भी मदद मिलेगी.
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