लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पर जवाब देने के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर तंज किया। अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस देश में ऐसी धर्मनिरपेक्ष पार्टी है जिसकी केरल में सहयोगी मुस्लिम लीग है और महाराष्ट्र में शिवसेना है।
सदन में जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा कि मैं कहना चाहता हूं कि हमें कोई नफरत नहीं हैं, बस आप कोई नफरत मत खड़ी करना। इस बिल का भारत के नागरिक मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है। कुछ लोग बिल के खिलाफ माहौल बना रहे हैं। लेकिन किसी को भी डरने की जरूरत नहीं है। शरणार्थियों के पास राशन कार्ड है या नहीं, ये बिल सबको नागरिकता देगा। आपको किसी के बहकावे में आने की जरूरत नहीं है।
केंद्रीय गृहमंत्री शाह ने सदन में जवाब देते हुए कहा कि ओवैसी साहब ने कहा की एनआरसी का बैकग्राउंड बना रहे हैं, एनआरसी का कोई बैकग्राउंड बनाने की जरूरत ही नहीं हैं, हम इस पर बहुत साफ़ हैं कि इस देश में एनआरसी लागू होकर रहेगा।
अमित शाह ने लोकसभा में विपक्ष के सवालों पर कहा कि हमें मुसलमानों से कोई नफरत नहीं है। इस देश के किसी मुसलमान का इस विधेयक से कोई वास्ता नहीं है।
नागरिकता बिल में मुस्लिम क्यों नहीं? शाह ने कांग्रेस को ही घेरा
लोकसभा में आज गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन विधेयक पेश किया तो विपक्षी सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया। करीब एक घंटे तक इस बात पर तीखी नोकझोंक हुई कि इस बिल को सदन में पेश किया जा सकता है या नहीं। विपक्ष द्वारा बिल के अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप लगाने पर शाह ने 1947 देश के बंटवारे का जिक्र करते हुए कांग्रेस पर हमला बोला।
उन्होंने कहा कि धर्म के आधार पर देश का विभाजन तो कांग्रेस पार्टी ने किया है, हमने नहीं। कांग्रेस ने अगर धर्म के आधार पर देश का विभाजन नहीं किया होता तो आज यह नहीं होता। उन्होंने आगे कहा कि पड़ोसी देशों में मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक प्रताड़ना नहीं होती है, इसलिए इस बिल का लाभ उन्हें नहीं मिलेगा। अगर ऐसा हुआ तो यह देश उन्हें भी इसका लाभ देने पर खुले दिल से विचार करेगा।
गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 पेश करते हुए दावा किया कि यह बिल अल्पसंख्यकों के बिल्कुल भी खिलाफ नहीं है। उन्होंने कहा कि वह इस बिल पर एक-एक सवाल का जवाब देने को तैयार हैं। वह इस पर सदन में विस्तृत चर्चा का स्वागत करेंगे। हालांकि, गृह मंत्री के इस आश्वासन के बावजूद सदन में हंगामा जारी रहा। विरोधी सदस्यों ने यह सवाल उठाया कि इस तरह के बिल पर सदन में चर्चा हो ही नहीं सकती। इसके जवाब में अमित शाह ने अपने तर्क रखे। बाद विधेयक को पेश किए जाने के लिए विपक्ष की मांग पर मतदान करवाया गया और सदन ने 82 के मुकाबले 293 मतों से इस विधेयक को पेश करने की स्वीकृति दे दी।
कांग्रेस ने जताया विरोध
इससे पहले सदन में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने संविधान की प्रस्तावना और नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकारों का हवाला देते हुए नागरिकता संशोधन विधेयक को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि सरकार आर्टिकल 14 को नजरअंदाज कर रही है। यह हमारे लोकतंत्र का ढांचा है। अधीर के जोरदार हंगामे पर शाह ने तंज कसा कि अधीर जी इतने अधीर मत होइए।
टीएमसी सांसदों ने बिल को बताया संविधान विरोधी
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद सौगत राय ने कहा कि संविधान बड़े संकट में है। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 कहता है कि राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि नागरिकता विधायक इस आर्टिकल का उल्लंघन करता है। बिल विभाजनकारी और असंवैधानिक है। यह नेहरू-अंबेडकर की सोच के भारत के खिलाफ है।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा, ‘संसद को इस तरह के विधेयक पर चर्चा का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि यह भारतीय गणतंत्र के मूलभूत मूल्यों का उल्लंघन है। क्या हमारी राष्ट्रीयता का निर्णय धर्म के आधार पर होगा? यह संविधान की प्रस्तावना का भी उल्लंघन करता है।’ AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता इस देश के मूलभूत ढांचे का हिस्सा है। यह विधेयक मौलिक अधिकारों की अवहेलना करता है। हमारे देश में एकल नागरिकता का प्रावधान है।
इंदिरा, राजीव का जिक्र कर शाह का जवाब
गृह मंत्री ने कहा कि नागरिकता विधेयक का विरोध करने वाले सदस्यों ने सदन के नियम 72(1) का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यह सदन इस बिल पर चर्चा करने और इसे पारित करने में पूरी तरह सक्षम है। शाह ने कहा कि यह बिल किसी भी आर्टिकल का उल्लंघन नहीं करता है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 11 और 14 का उल्लेख कर कहा कि कुछ सदस्यों को लगता है कि इस बिल से समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है। गृह मंत्री ने सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल से समानता के अधिकार की किसी भी प्रकार से अवहेलना नहीं होने का दावा करते हुए अतीत की कई घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने निर्णय किया था कि बांग्लादेश से जितने लोग आए हैं, सारे लोगों को नागरिकता दी जाए। तो फिर पाकिस्तान से आए लोगों को क्यों नहीं दी गई?’
शाह ने सदन में सवाल किया कि जब आर्टिकल 14 ही था तो फिर बांग्लादेश ही क्यों? यह भी बांग्लादेशों के लोगों के लिए ही है। वहां नरसंहार रुका नहीं है। वहां आज भी अल्पसंख्यकों को चुन-चुन कर मारा जा रहा है। उसके बाद युगांडा से आए सारे लोगों को कांग्रेस के शासन में नागरिकता दी गई। तब इंग्लैंड से आए लोगों को क्यों नहीं दी गई? फिर दंडकारण्य कानून लाकर नागरिकता दी गई। उसके बाद राजीव गांधी ने असम अकॉर्ड किया। उसमें भी 1971 का ही कट ऑफ डेट रखा तो क्या समानता हो पाई? गृह मंत्री ने कहा, ‘हर बार तार्किक वर्गीकरण के आधार पर ही नागरिकता दी जाती रही है।’
शाह ने कहा कि दुनियाभर के देश अलग-अलग आधार पर नागरिकता देते हैं। हर देश तार्किक वर्गीकरण के आधार पर ही नागरिकता देते हैं। जब कोई देश कहता है कि उसके देश में निवेश करने वाले को वह नागरिकता देगा तो क्या वहां समानता का संरक्षण हो पाता है? अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकार कैसे होंगे, बताएं। वहां समानता का कानून कहां चला जाता है? अल्पसंख्यकों को अपना शैक्षणिक संस्थान चलाने का अधिकार क्या समानता के कानून के खिलाफ है क्या?
तार्किक वर्गीकरण का आधार क्या है?
शाह ने आगे कहा कि भारत की सीमा से सटे तीन देश हैं- पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान। भारत की 106 किमी जमीनी सीमा अफगानिस्तान से मिलती है। हालांकि, इस विधेयक का आधार सिर्फ भौगोलिक नहीं है। हमें इन तीनों देशों के संविधान को देखना होगा। इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान के संविधान के मुताबिक इस्लाम राज्य का धर्म है। पाकिस्तान का संविधान कहता है कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान का धर्म इस्लाम है। वहीं, बांग्लादेश का संविधान भी इस्लाम को राज्य का धर्म बताता है।
उन्होंने कहा कि 1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ। इसमें दोनों देशों ने अपने यहां अल्पसंख्यकों के संरक्षण का संकल्प लिया। भारत में तो इसका गंभीरता से पालन हुआ, लेकिन पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हुए जोर-जुल्म से दुनिया अवगत है। तीनों राष्ट्रों के अंदर हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख ईसाई, इन सभी धर्मावलंबियों के खिलाफ धार्मिक प्रताड़ना हुई।
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