सब्जियों से भी सस्ते बिके सेब, मंडी में एक साथ आ गई 1200 टन की खेप

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सेब के शौकीनों के लिए अच्छी खबर है। इस समय जी भर कर सेब खाए जा सकते हैं। रिटेल में 60 से 80 रुपये किलो की दरों में और भी कमी आ सकती है। क्योंकि मंडी में बुधवार को सेब न्यूनतम दरों पर पहुंच गया। यहां तक कि कुछ सब्जियों की तुलना में सेब के रेट कम रहे।
आढ़तियों ने बताया कि थोक में टमाटर का रेट 35-45 रुपये तक रहा। जबकि पेटियों में सेब का रेट 20-35 रुपये किलो तक पहुंच गया। यहां तक कि तोरई, अरबी के रेट भी सेब से ज्यादा रहे। गोभी की कुछ वैराइटी भी सेब से अधिक दामों पर बिकी। मिर्च, नींबू और अदरक तो पहले ही सेब से महंगे चल रहे थे।
सेब के भावों में गिरावट की वजह अत्यधिक स्टॉक की अत्यधिक आमद रही। कश्मीर में इस बार बंपर पैदावार के कारण उत्पादकों ने माल की लदान को लगातार जारी रखा है। हाल में पांच दिन बारिश के कारण मार्ग में कई गाड़ियां रुक गईं। लेकिन उत्पादकों ने लदान जारी रखा। इस वजह से स्टॉक ज्यादा हो गया है।
कारोबारियों के अनुसार यह सेब इस स्थिति में नहीं कि इसे भंडारित किया जा सके। इस वजह से उत्पाद हर हाल में इसे बेचना चाहते हैं। कुछ वैराइटी तो ऐसी है कि उसमें उत्पादक को लागत तो दूर की बात, ऊपरी खर्च तक नहीं मिल पाया है। लेकिन मजबूरी यह है कि उक्त सेब को रखने में भी समझदारी नहीं है।

रिकार्ड आमद

बुधवार को सुबह के समय मंडी में छह दर्जन से भी ज्यादा गाड़ियां आ चुकी थीं। लगभग इतनी ही गाड़ियां रास्ते में हैं। आढ़तियों का कहना है कि यह अब तक की सबसे बड़ी आमद है। आगरा की मंडी में अब तक इतनी मात्रा में सेब नहीं आया है। यह समय खरीदारों की मर्जी का है। लोग चाहें तो सेब के तमाम आइटम बना सकते हैं।

सेब के फायदे अनेक

सीजन का सेब खूब फायदेमंद रहता है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट होने से कई बड़ी बीमारियों से टक्कर लेने में मदद मिलती है। शरीर के लिए जरूरी कई प्रकार के खनिज सेब में अच्छी तादाद में पाए जाते हैं। इसका फाइबर ह्रदय रोगियों के लिए फायदेमंद है। इसके जूस से भी कई रोगों से लड़ने की ताकत मिलती है।
प्रीति पांडेय, डाइटिशियन

20 रुपये किलो से भी कम बिक गया सेब

बीते तीन सालों में इस बार सेब काफी कम दामों तक के स्तर पर बिक गया। बुधवार को मीडिया वैराइटी के कई सौदे 19 रुपये तक में हो गए। यदि कश्मीर से आगरा का भाड़ा लगाया जाए, लोडिंग-अनलोडिंग के खर्च और मार्ग में होने वाले खर्चों को शामिल किया जाए तो उत्पादक को घाटा ही होगा।
गजेन्द्र सिसोदिया, सेब आढ़ती

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