श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के जन्मोत्सव का शुभ मुहूर्त, व्रत एवं पूजा की संपूर्ण विधि

Krishna Janmashtami 2019 इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 23 अगस्त दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत बालक युवा और वृद्ध सभी अवस्था वाले व्यक्ति कर सकते हैं।

Krishna Janmashtami 2019: इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 23 अगस्त दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत बालक, युवा और वृद्ध सभी अवस्था वाले व्यक्ति कर सकते हैं। इससे उनके पापों का नाश और सुख आदि की वृद्धि होती है। जो इस व्रत को नहीं करते हैं, वे पाप के भागी होते हैं।

जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा विधि

अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के (तिथिमात्र) पारण से व्रत की पूर्ति होती है। व्रत करने वाले को चाहिए कि उपवास के पहले दिन लघु भोजन करे। रात्रि में जितेन्द्रिय रहे और उपवास के दिन प्रातः स्नान आदि नित्य कर्म करके सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मा आदि को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुखकर के बैठे। इसके बाद हाथ में जल, फल, कुश, फूल और गंध लेकर ‘ममाखिलपापप्रशमनपूर्वकसर्वाभीष्टसिद्धये श्रीकृष्णजन्माष्टमीव्रतमहं करिष्ये’ यह संकल्प करें।

देवकी जी के लिए ‘सूतिकागृह’

मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान करके देवकी जी के लिए ‘सूतिकागृह’ का स्थान नियत करें। उसे स्वच्छ और सुशोभित करके उसमें सूतिका के उपयोगी सब सामग्री क्रम से रखें। सामर्थ्य हो तो गाने-बजाने का भी आयोजन करें। प्रसूतिगृह के सुखद विभाग में सुंदर और सुकोमल बिछौने के लिए सुदृढ़ मंच पर अक्षतादि मण्डल बनवा कर उस पर शुभ कलश स्थापन करें।

ऐसी हो बाल कृष्ण की मूर्ति

उस पर ही सोना, चांदी, ताँबा, पीतल, मणि, वृक्ष, मिट्टी या चित्ररूप की मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति में प्रसूत श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हुए हों- ऐसा भाव प्रकट रहे।

श्रीकृष्ण का जन्म

इस वर्ष जन्म कराने का मुहूर्त रात्रि में 10:44 से 12:40 के मध्य है। जन्म कराने के शुभ समय में भगवान के प्रकट होने की भावना करके उनकी विधि विधान से पूजा करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा, और लक्ष्मी- इन सबका क्रमश: नाम जरूर लेना चाहिए।

अन्त में नीचे दिए गए मंत्र से देवकी को अर्घ्य दें।

‘प्रणमे देवजननीं त्वया जातस्तु वामन:।

वसुदेवात् तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नम:।।

सपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं मे गृहाणेमं नमोSस्तु ते।’

इसके पश्चात श्रीकृष्ण को इस मंत्र के साथ ‘पुष्पाञ्जलि’ अर्पण करें।

‘धर्माय धर्मेश्वराय धर्मपतये धर्मसम्भवाय गोविन्दाय नमो नम:।’

पुष्पाञ्जलि अर्पित करने के बाद नवजात श्रीकृष्ण के जातकर्म, नालच्छेदन, षष्ठीपूजन और नामकरणादि करके ‘सोमाय सोमेश्वराय सोमपतये सोमसम्भवाय सोमाय नमो नम:।’ मंत्र से चन्द्रमा का पूजन करें। फिर शंख में जल, फल, कुश, कुसुम और गन्ध डालकर दोनों घुटने जमीन में लगाएं और इस मंत्र से चन्द्रमा को अर्घ्य दें।

‘क्षीरोदार्णवसंभूत अत्रिनेत्रसमुद्भव।

गृहाणार्घ्यं शशांकेमं रोहिण्या सहितो मम।।

ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषां पते।

नमस्ते रोहिणीकान्त अर्घ्यं मे प्रतिगृह्यताम्।।’

चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद रात्रि के शेष भाग को स्त्रोत-पाठादि करते हुए व्यतीत करें। उसके बाद दूसरे दिन पूर्वाह्न मे पुन: स्नानादि करके जिस तिथि या नक्षत्रादि के योग में व्रत किया हो, उसका अन्त होने पर पारणा करें। यदि अभीष्ट तिथि या नक्षत्रादि के समाप्त होने में विलम्ब हो तो जल पीकर पारणा की पूर्ति करें।

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