लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के ये हैं ट्रंप कार्ड, वोटरों को रिझाने की ये रणनीति शुरू

नई दिल्ली। सक्रिय राजनीति में एंट्री के बाद प्रियंका गांधी फ्रंटफुट पर खेल रही हैं. अपनी रणनीति से उन्होंने न सिर्फ बीजेपी बल्कि बीएसपी को भी बेचैन कर दिया है. प्रियंका ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मियों को साधने के लिए हार्दिक पटेल को अपनी पार्टी में शामिल करवा लिया है तो पश्चिमी के लिए भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर पर सियासी डोरे डाल रही हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ये दोनों नेता कांग्रेस के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकते हैं.


लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह का कहना है, ‘बिल्कुल असर होगा. चंद्रशेखर दलित युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं और उनका असर भी है. अभी तक देखा जाए तो कांग्रेस के पास पीएल पुनिया के अलावा कोई ताकतवर दलित चेहरा प्रदेश में नहीं था. भले ही चंद्रशेखर कांग्रेस के साथ न आएं लेकिन जो कुछ हुआ है उससे भी उनका समर्थन पार्टी को मिलेगा और फायदा भी.’
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सिंह कहते हैं ‘इधर हार्दिक की बात की जाए तो हाल के वक्त में वे काफी चर्चा में रहे हैं. ओबीसी युवाओं के लिए किसी आयकॉन से कम नहीं है. पिछले चुनावों में बीजेपी का साथ देने वाली कई पिछड़ी जातियां अब बीजेपी से खफा हैं और उन्हें हार्दिक के नाम पर गोलबंद होने का मौका मिलेगा.”
उनका कहना है – ‘प्रियंका खुद कांग्रेस के लिए एक तरह से ताजगी लेकर आई हैं. अगर गैर यादव ही सही पिछड़ों और चंद्रशेखर के जरिए दलितों का समर्थन पार्टी को मिलता है तो उन्हें मुसलमान और ब्राह्मण वोटों को अपनी ओर खीचने में आसानी होगी.’
हार्दिक पटेल का इस्तेमाल पार्टी कुर्मी बहुल सीटों पर करेगी. यूपी में कुर्मी जाति के वोटर मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर, बस्ती, संत कबीर नगर और सेंट्रल यूपी में कानपुर, अकबरपुर, एटा, बरेली और लखीमपुर जिलों में सबसे ज्यादा मौजूद हैं. गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने पिछले दिनों पूर्वांचल में कुछ रैलियां की हैं.
दूसरी ओर, 13 मार्च को प्रियंका गांधी भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर से मिलने मेरठ के अस्पताल पहुंच गईं. भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर पश्चिमी यूपी के दलितों में बड़े लीडर बनकर उभर रहे हैं. वो दलित आंदोलन का बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं. उनके साथ मुस्लिम भी जुड़े हैं. मायावती का मानना है कि चंद्रशेखर का उभार उनकी सियासी जमीन को कमजोर कर सकता है. ऐसे में मायावती ने कभी उन्हें स्वीकार नहीं किया. अब ऐसे में अब चंद्रशेखर से प्रियंका गांधी के मुलाकात के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. (ये भी पढ़ें: मोदी लहर में भी इन पार्टियों ने जीती थीं 203 लोकसभा सीटें, इस बार क्या होगा?)
हालांकि पत्रकारों से बातचीत में प्रियंका गांधी ने कहा कि इस मुलाकात को राजनीतिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए. चंद्रशेखर को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ाए जाने के सवाल को भी उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया. लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इससे इनकार नहीं कर रहे कि चंद्रशेखर के बहाने कांग्रेस पश्चिमी यूपी में दलित वोटों को साधने की कोशिश कर रही हैं. पश्चिमी यूपी से ही मायावती भी आती हैं. इसी बेल्ट के जाटव वोटरों पर उनकी सबसे अच्छी पकड़ है.

अपने पुराने कोर वोटरों में फिर पैठ बनाने की कोशिश
दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण ये तीन कोर वोटर कभी कांग्रेस के हुआ करते थे. लेकिन बसपा की स्थापना के बाद यह वोट उसकी तरफ आ गया. यूपी के ज्यादातर दलित बसपा की तरफ आ गए. मुस्लिम सपा-बसपा दोनों में गया. जबकि 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के तहत बसपा ने ब्राह्मणों को भी अपनी ओर जोड़ना शुरू किया. अब प्रियंका गांधी की एंट्री के बाद कांग्रेस फिर अपने पुराने कोर वोटरों के साथ-साथ ओबीसी को भी अपने साथ करने की मुहिम में जुट गई है.
यादव, कुशवाहा, मौर्य वोटों में सेंध लगाने का ये दांव
जो मौर्य, कुशवाहा वोट 2014 में सपा-बसपा से छिटक कर बीजेपी की ओर गया था उसे अपनी तरफ करने के लिए प्रियंका गांधी ने चाल चल दी है. इस वोटबैंक को लुभाने के लिए उन्होंने महान दल से समझौता किया है, जिसके अध्यक्ष केशव देव मौर्य हैं, जिनकी पूर्वांचल के कुशवाहा और मौर्य वोटरों में पैठ बताई जाती है. सूत्रों के मुताबिक ओबीसी के दूसरे बड़े वोटबैंक यादव को अपनी ओर करने की मुहिम जारी है. दो-तीन दिन में एक बड़ा यादव नेता कांग्रेस के साथ समझौता करने वाला है. यूपी में कुर्मी तीन, कुशवाहा और यादव आठ-आठ परसेंट बताए जाते हैं.
दलितों के पास मायावती के अलावा कोई चारा नहीं’
मायावती पर ‘बहनजी: द राइज एंड फॉल ऑफ मायावती’ नामक किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस कहते हैं, ‘चंद्रशेखर और जिग्नेश मेवाणी जैसे दलित नेताओं का उभार हो रहा है जो मायावती की सियासी जमीन खा सकते हैं. हालांकि ये इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में कितने सफल होंगे यह नहीं कहा जा सकता. गैर जाटव दलितों में मायावती के खिलाफ नाराजगी है. फिर भी यूपी में दलितों के पास मायावती के अलावा कोई और चारा नहीं है. दलितों में कोई इतना बड़ा नाम नहीं है.’

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