रायपुर। दिल्ली में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है। बीजेपी को छत्तीसगढ़ में हुए मेयर चुनावों में बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। छत्तीसगढ़ में पहली बार नगर निकायों में महापौर और अध्यक्ष पद के लिए अप्रत्यक्ष प्रणाली से मतदान हुआ। छत्तीसगढ़ के 10 नगर निगमों में सत्ताधारी कांग्रेस ने कब्जा जमाया है। छत्तीसगढ़ के 10 नगर निगमों, 38 नगरपालिका परिषदों और 103 नगर पंचायतों में पिछले महीने 21 दिसंबर को मतदान हुए थे। कांग्रेस नेता आरपी सिंह ने कहा कि ये परिणाम पिछले एक साल में कांग्रेस सरकार द्वारा चलाए गए स्कीम का नतीजा हैं।
तीन नगर निगम में कांग्रेस को बहुमत
आरपी सिंह ने कहा कि पंचायत चुनावों में भी इसी तरह के नतीजों की उम्मीद है। साल 2000 में अलग राज्य बनने के बाद पहली बार छत्तीसगढ़ में मेयर पद के लिए अप्रत्यक्ष चुनाव हुए। कांग्रेस सभी नगर निगमों में सत्ता में आने में कामयाब रही, जिसमें निर्दलीय पार्षदों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन चुनावों के नतीजे 24 दिसंबर को घोषित किए गए।
कांग्रेस को 7 नगर निगमों में मिला अन्य दलों का समर्थन
राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी जानकारी के अनुसार, 151 नगर निकायों के 2384 वार्ड के लिए मतदान कराया गया था, जिसमें 1283 वार्ड में कांग्रेस को जीत मिली, जबकि 1131 वार्ड में भाजपा को जीत मिली। वहीं, 420 वार्ड में अन्य दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। इसके अलावा छत्तीसगढ़ के 10 नगर निगमों में से जगदलपुर, अंबिकापुर और चिरमिरी नगर निगम में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला जबकि रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, रायगढ़, धमतरी और कोरबा नगर निगम में कांग्रेस को अन्य दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों का सहयोग मिला।
बीजेपी ने लगाए कांग्रेस पर आरोप
कोरबा में कांग्रेस को 26 और भाजपा को 31 वार्ड में जीत मिली जबकि 10 वार्ड में अन्य दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। वहीं, इन नतीजों पर बीजेपी का कहना है अप्रत्यक्ष मेयर चुनाव में कांग्रेस ने सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया है। बीजेपी का कहना है कि केवल तीन नगर निगमों में कांग्रेस को जनादेश मिला लेकिन उन्होंने इस चुनाव में अपनी सारी ताकत और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया है। बीजेपी प्रवक्ता गौरीशंकर सिरवास ने कहा कि ये कांग्रेस की जीत नहीं, बल्कि हार है।
ANALYSIS: 2013 से 2019 के बीच चुनाव-दर-चुनाव ऐसे बदलता रहा दिल्ली के मतदाताओं का मिजाज
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 की घोषणा के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि स्थानीय मुद्दों पर ही चुनाव लड़ा जाएगा. आम आदमी पार्टी के संयोजक ने कहा, ‘अगर लोगों को लगता है कि हमने अच्छा काम किया है तो हमें वोट दें. अगर हमने काम नहीं किया है तो हमारे पक्ष में बिलकुल मतदान न करें.’ जब उनसे पूछा गया कि क्या ये चुनाव केजरीवाल बनाम पीएम नरेंद्र मोदी होंगे तो उन्होंने पलटकर सवाल पूछ लिया, ‘क्या मोदी जी दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के लिए प्रधानमंत्री पद को छोड़ देंगे?’
केजरीवाल ने कहा – अलग हैं लोकसभा और विधानसभा चुनाव
आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रबंधन के लिए प्रशांत किशोर को दिसंबर में अपने साथ जोड़ने के बाद से केजरीवाल उन जगहों पर भी प्रचार के लिए जा रहे हैं, जहां वह पहले कभी नहीं गए थे. इस दौरान वह लोगों को अपनी सरकार के शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में किए गए कामों के बारे में बता रहे हैं. मई में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय राजधानी में आप के प्रदर्शन के सवाल से किनारा करते हुए वह कह देते हैं कि दोनों चुनाव अलग हैं. आम आदमी पार्टी ने 2013 में पहली बार दिल्ली में चुनाव लड़ा था. इसके बाद से अब तक हुए सभी चुनावों का विश्लेषण किया जाए तो साफ हो जाता है कि लोगों ने स्थानीय और राष्ट्रीय चुनावों में अलग तरीके से मतदान किया है.
दिसंबर, 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पहली ही बार में दिल्ली की 70 में 28 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इस दौरान पार्टी को 29 फीसदी वोट हासिल हुए थे. वहीं, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव 2014 की तैयारियों में जुटी बीजेपी को 32 सीटें हासिल हुई थीं. बीजेपी को तब 34 फीसदी वोट हासिल हुए थे. उस समय दिल्ली की सत्ता पर काबिज कांग्रेस महज 8 सीटों पर सिमट गई थी. उसे 25 फीसदी वोट हासिल हुए थे. यही नहीं, नई दिल्ली विधानसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित केजरीवाल से हार गई थीं. आप ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई. केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्य दलों का समर्थन नहीं मिलने पर महज 49 दिन बाद ही इस्तीफा दे दिया था.
आम चुनाव 2014 में आप के मत-प्रतिशत में हुआ सुधार
दिल्ली में मिली सफलता से उत्साहित आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2014 में 400 संसदीय क्षेत्रों में अपने प्रत्याशी उतार दिए. केजरीवाल खुद दिल्ली छोड़कर बीजेपी के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से मैदान में उतरे. पूरे देश के ज्यादातर राज्यों की ही तरह दिल्ली में भी बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सभी सीटों पर कब्जा कर लिया. आम चुनाव 2014 में बीजेपी को दिल्ली में 46 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल हुए. बीजेपी ने 70 में से 60 सीटों पर बढ़त दर्ज की थी. राष्ट्रीय राजधानी में सभी सीटें हारने के बाद भी आप का मत-प्रतिशत सुधरकर 33 फीसदी हो गया था. हालांकि, पार्टी सिर्फ 10 विधानसभा सीटों पर ही बीजेपी से आगे रही थी. इस दौरान कांग्रेस का वोट शेयर भी सुधरकर 10 फीसदी हुआ.
दिल्ली की सभी 7 सीट पर हार आप के लिए तगड़ा झटका थी. विधानसभा चुनाव 2015 में आप ने फिर स्थानीय मुद्दों पर दांव लगाया. इस बार पार्टी ने दिल्ली के मतदाताओं से पूर्ण बहुमत की मांग की. इस बार बीजेपी 204 की मोदी लहर के सहारे ही बेड़ा पार होने की उम्मीद में बैठी रही. इसके उलट दिल्ली के मतदाता सभी दलों को चौंकाने की तैयारी कर रहे थे. इस बार आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए 70 में 67 सीटों पर कब्जा कर लिया. इस बार पार्टी के पक्ष में 54 फीसदी से ज्यादा मतदाताओं ने वोटिंग की. बीजेपी महज तीन सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी. इसके बाद भी पार्टी को 32 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी और उसका मत-प्रतिशत 9.65 फीसदी रह गया.
निकाय चुनाव 2017 में बीजेपी के पक्ष में हुआ मतदान
आप की जीत को लेकर चुनाव विश्लेषकों का कहना था कि कांग्रेस का वोट बैंक आप की झोली में जा गिरा. इसी कारण आम आदमी पार्टी को इतनी बड़ी जीत मिली. इसके बाद 2017 में हुए नगर निकाय चुनाव में दिल्ली के मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी को झटका दिया. दिल्ली के लोगों ने तीनों निकायों में बीजेपी को समर्थन दिया. बीजेपी का मत-प्रतिशत 36 फीसदी रहा. साथ ही पार्टी ने 272 में 181 सीटों पर जीत हासिल की. विधानसभा की सत्ता पर काबिज आप को 26 फीसदी वोट के साथ 48 सीटों से ही संतोष करना पड़ा.
लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने जीतीं सातों सीटें
लोकसभा चुनाव 2019 में लोगों का ध्यान राष्ट्रीय मुद्दों पर ज्यादा था. लोगों का कहना था कि वे प्रधानमंत्री का चुनाव करने जा रहे हैं. ऐसे में दिल्ली के लोगों ने एक बार फिर बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में मतदान किया. इस बार बीजेपी का मत-प्रतिशत दिल्ली में पिछली बार से बेहतर रहा. बीजेपी ने 57 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल कर फिर सातों सीटों पर जीत दर्ज की. बीजेपी ने राजधानी की 70 में 65 सीटों पर बढ़त दर्ज की. बीजेपी का सीधा मुकाबला कांग्रेस से माना जा रहा था. ऐसे में दिल्ली के 22 फीसदी मतदाताओं ने कांग्रेस और 18 फीसदी ने आम आदमी पार्टी के पक्ष में मतदाना किया. कांग्रेस पांच लोकसभा सीटों पर दूसरे नंबर पर भी रही.
देखना होगा, कांग्रेस के पारंपरिक मतदाताओं का रुझान
आम आदमी पार्टी को उम्मीद है कि ये चलन इस बार भी जारी रहेगा. पार्टी का कहना है कि लोकसभा चुनावों के दौरान महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में बीजेपी ने जबरदस्त सफलता हासिल की थी. इसके बावजूद विधानसभा चुनावों में उनकी सियासी जमीन इन राज्यों में खिसक गई. ओडिशा में स्थानीय और राष्ट्रीय चुनाव एकसाथ कराए गए थे. बावजूद इसके दोनों के नतीजों से साफ है कि राष्ट्रीय और स्थानीय चुनावों में मतदान करते समय मतदाताओं का व्यवहार अलग होता है. दिल्ली में हुए हर चुनाव में बीजेपी लगातार एक तिहाई वोट हासिल करने में सफल हो रहा है. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है, ‘आप को ध्यान देना होगा कि क्या 2015 की ही तरह कांग्रेस के पारंपरिक मतदाता फिर उनके पक्ष में वोट करेंगे या नहीं.’ बता दें कि दिल्ली में 8 फरवरी को मतदान होगा, जबकि 11 फरवरी को मतगणना होगी.
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