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नई दिल्ली। आज जन्मदिन है मशहूर संगीतकार मुहम्मद जहूर खय्याम का। हिंदी सिनेमा में उनका योगदान अहम है। उनके मधुर संगीत से सजे एक से बढ़कर एक गीत सामने आए जिन्होंने संगीत प्रेमियों के दिल में अपनी जगह बनाई. यही वजह है कि खय्याम आज भी याद किए जाते हैं। खय्याम साहब यानी मुहम्मद जहूर का जन्म जालंधर के करीब हुआ था। फिल्मों का शौक उन्हें बचपन से ही था। उनका यही शौक उन्हें दिल्ली ले आया। वह संगीत सीखने के लिए दिल्ली आ गए और इसके बाद उन्होंने मुंबई (तब बॉम्बे) की ओर रुख किया। उन्होंने ‘कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है’, ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’ जैसे गानों की धुनें बनाईं। उनके संगीत की खासियत यह है कि यह जिंदगी की जद्दोजहद के बीच इक सुकून देता है। यही वजह है कि आप भी उनका संगीत अपनी खास जगह बनाए हुए है।
‘कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है’, ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’ जैसी दिल को छू लेने वाली धुन तैयार करने वाले खय्याम के म्यूजिक करियर की शुरुआत 17 साल की उम्र में हो गई थी. साल 1953 में उन्होंने बॉलीवुड में एंट्री ली. पहली फिल्म थी ‘फुटपाथ’. फिल्मों में काम मिलना शुरू हुआ तो करियर की गाड़ी चल निकली और आखिरी खत, कभी कभी, त्रिशूल, नूरी, बाजार, उमराव जान जैसी फिल्मों के शानदार संगीत ने खय्याम की जगह संगीत प्रेमियों के दिल में बना दी।
कहा जाता है कि खय्याम के एल सहगल को काफी पसंद करते थे और उन्हीं की तरह गायक और अभिनेता बनने का सपना लिए वह कम उम्र में ही अपने घर से चले गए और दिल्ली में अपने चाचा के पास रहे।
उन्होंने अपने समय के मशहूर संगीतकार हुसनलाल-भगतराम से संगीत सीखा. वह पांच साल तक इन दिग्गजों की शागिर्दी में रहे। इस दौरान संगीत की बारीकियां उन्होंने सीखीं। इसके अलावा बाबा चिश्ती के यहां भी वह रहे और उनके घर पर रह कर उनसे संगीत सीखने लगे।
जनवरी, 1947 में खय्याम मुंबई आ गए। यहां रोमियो जूलियट फिल्म बन रही थी। खय्याम को फिल्म में बतौर गायक एंट्री मिल गई। वो फिल्म के लिए फैज अहमद फैज का लिखा दोगाना ‘दोनों जहान तुम’ गा रहे थे और उनके अपोजिट थीं उस जमाने की स्थापित गायिका जोहराबाई अंबालेवाली. यह फिल्म बना रहीं थीं, मशहूर अभिनेत्री नरगिस की मां जद्दन बाई, जो अपने समय की मशहूर हस्ती थीं. गाना सुनने के बाद जद्दन बाई ने खय्याम को मिलने बुलाया और कहा कि हिंदी सिनेमा में नया सितारा आने वाला है।
उनकी शरीके हयात जगजीत कौर हर कदम पर उनके साथ रहीं. शगुन फिल्म के लिए जगजीत कौर ने जो गजल गाई थी, ‘तुम अपना रंजो गम, अपनी परेशानी मुझे दे दो’, इसे खय्याम अपने आखिरी दिनों तक गुनगुनाते रहे।
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