दिल्ली चुनावों में सियासी दलों ने पूरी ताकत लगा रखी है. एक महीने पहले तक साफ तौर पर लग रहा था कि दिल्ली का चुनाव अरविंद केजरीवाल जीत रहे है लेकिन जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे है बीजेपी मजबूत होती जा रही है और आम आदमी पार्टी को कड़ी टक्कर दे रही है. इसकी कई वजहें सामने आ रही है
दिल्ली चुनाव का वोट गणित
सबसे पहले इस बात को समझते है कि दिल्ली चुनावों का गणित क्या कहता है. 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों पर अगर नजर डालें तो पूरा गणित समझ में आता है. 2013 के चुनावों में जहां बीजेपी 32 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी तो वहीं 2015 में सिर्फ 3 सीटें जीत पाई. लेकिन बीजेपी को वोट प्रतिशत में ज्यादा अंतर नहीं आया था. 2013 के चुनाव में बीजेपी 33 प्रतिशत वोट मिले थे तो वहीं 2015 में 32.2 प्रतिशत वोट मिले. इसका मतलब बीजेपी को वोट प्रतिशत में मामूली कमी आई थी. लेकिन 2013 में जिस कांग्रेस को 24.6 प्रतिशत वोट मिले थे उसका वोट शेयर 2015 में घटकर 9.7 प्रतिशत पर पहुंच गया. कांग्रेस का वोटर आम आदमी पार्टी के साथ मिल गया जिसकी वजह से Aam aadmi party ज्यादा सीटें जीतने में कायमाब हुई. ऐसे में अगर इस बार के चुनाव में कांग्रेस का वोटर वापिस कांग्रेस के साथ चला गया तो फिर आम आदमी पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है और वो 25 सीट पर सिमट सकती है.
फ्री वादों पर जनता का भरोसा
दिल्ली में केजरीवाल सरकार फ्री में बिजली पानी के मुद्दे पर सरकार में वापिस आने के दावे कर रही है लेकिन इसी बीच एक बड़ा खुलासा केजरीवाल सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है. एक सरकारी आदेश की कॉपी कई मीडिया चैनलों के हाथ लगी है जिसके मुताबिक दिल्ली में फ्री बिजली सिर्फ मार्च 2020 तक ही मिलेगी. इसका मतलब सिर्फ चुनावों तक ही फ्री बिजली मिलेगी. तो वहीं बड़ा तबका ऐसा भी है जो फ्री की योजनाओं की बजाय दिल्ली की अर्थव्यवस्था मजबूत करने पर ध्यान दे रहा है.
बीजेपी की मजबूत घेराबंदी
दिल्ली चुनावों में अमित शाह ने बेहद मजबूत घेराबंदी कर रखी है. बीजेपी के तमाम सांसद एक एक सरकारी स्कूलों में जाकर केजरीवाल के दावों की पोल खोल रहे है तो वहीं दिल्ली चुनावों की कमान भी खुद अमित शाह ने संभाल रखी है. शाहीन बाग के मुद्दे को भी भाजपा मजबूती से उठा रही है. जिससे ध्रुवीकरण की संभावना बन रही है.
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