नई दिल्ली। देशभर में चीनी सामान के बहिष्कार की मांग तेज हो चुकी है। इसी बीच देश में बिजनेस करने वालों के संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स भी कल यानी 10 जून से चीनी सामान को हटाने का अभियान शुरू करने जा रहा है। साथ ही लोगों से स्वदेशी उत्पादों को अपनाने की बात कही जाएगी। वैसे चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की बात करने वाला भारत अकेला देश नहीं. कोरोना पर चीन की लापरवाही के कारण गुस्साएं बहुत से देश अपने यहां चीनी माल को खत्म करने की सोच रहे है।
इससे पहले से भी इंटरनेट पर चीनी सामानों के बायकॉय की बात चलती रही थी। इसके पीछे वहां का डॉग मीट फेस्टिवल था, जिसमें कुत्तों को जिंदा जलाकर खाया जाता। और भी कई वजहें थीं, जैसे चीन में सत्ता के खिलाफ बोलने की आजादी की मांग। चीन में माइनोरिटी पर अत्याचार। लेकिन अब बायकॉय की मुहिम को नई और ग्लोबल वजह मिल चुकी है। दरअसल दिसंबर में चीन से ही कोरोना संक्रमण की शुरुआत हुई थी। माना जा रहा है कि देश ने इसके बाद से लगातार बीमारी की गंभीरता के बारे में छिपाया। और ये बताने में भी उसे महीनेभर से ज्यादा लग गया कि ये इंसानों से इंसानों में फैल सकता है। इसकी वजह से आज पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमण फैल चुका है और बड़े-बड़े देश आर्थिक मंदी की तरफ जा चुके हैं।
अब भी चीन कोरोना पर घालमेल भरी बात कर रहा है। वहीं अमेरिका समेत बहुत से देशों का मानना है कि वायरस लैब में बना हुआ है और लीक हुआ। इसी वजह से गुस्से में कई देश चीन के सामान हटाने पर जोर दे रहे हैं। जैसे सबसे पहले बात करें भारत की। तो बायकॉय के पीछे सिर्फ कोरोना नहीं है, बल्कि लद्दाख की सीमा पर चीन की घुसपैठ भी है। बता दें कि वहां बीते 2 महीने से चीनी सैनिक डेरा डाले हुए हैं और सैनिक अभ्यास भी कर रहे हैं. इस वक्त, जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है, ऐसे में भी चीन का लद्दाख के कुछ हिस्सों पर दावा करना अजीब लगता है. लेकिन चीन के इस उतावलेपन के पीछे है इस क्षेत्र की पहाड़ियां और उनमें मिलने वाली बेशकीमती धातुओं का भंडार।
गोगरा पोस्ट के बाजू में ही वो पहाड़ है, जिसे गोल्डन माउंटेन कहते हैं. भूविदों का मानना है कि इस इलाके में सोने की अपार संपदा है। इस सोने को हथियाना चीन को आर्थिक मजबूती देगा. यही वजह है कि चीनी सैनिक लगातार आक्रामक हो रहे हैं. साथ ही ग्लोबल स्तर भी भारत का दबदबा कायम न हो, इसके लिए चीन सारी कोशिश करता है। जैसे में भारत को शामिल होने के रोकने के लिए चीन ने अपनी सारी ताकत लगाई और कामयाब रहा।
इससे भड़के भारत ने कैंपेन शुरू कर दिया. इसमें चीन से परेशान देश तिब्बत भी साथ है। बायकॉट के तहत लोगों ने धड़ाधड़ अपने फोन से सारे चीन एप हटाने शुरू कर दिए। हालांकि सिर्फ सॉफ्टवेयर हटाने पर बायकॉय की कोशिश सफल नहीं हो सकती, बल्कि इसके लिए देश को अपने यहां ही सारी चीजों का उत्पादन करना होगा, जो हम चीन से आयात करते हैं। बता दें कि चीन के सामान और खासकर फोन की कीमत काफी कम होने के कारण लोग इसे ही खरीदना पसंद करते हैं. बायकॉय के रास्ते में ये एक बड़ी मुश्किल आ सकती है।
फिलीपींस में भी चीनी सामानों के बहिष्कार की बात होती रही है, जो अब और तेज हो चुकी है. दरअसल फिलींपींस की राजधानी मनीला और और चीन के बीजिंग में को लेकर हमेशा से विवाद रहा है. इस समुद्र को चीन अपनी टैरेटरी मानता है और उसे साउथ चाइना सी कहने पर जोर देता रहा है. चीन की इस जबर्दस्ती के खिलाफ अमेरिका में बसे फिलीपींस के नागरिक भी विरोध करते रहे हैं।
वियतनाम में भी चीन के खिलाफ दशकों से गुस्सा चला आ रहा है. वैसे दोनों ही कम्युनिस्ट देश हैं लेकिन समान विचारधारा के बाद भी चीन वियतनाम पर जब-तब हावी होने की कोशिश करता रहा है. इसकी वजह भी 3.5 मिलियन स्क्वैयर किलोमीटर में फैला South China Sea है, जिसमें वियतनामी सीमा में भी चीन के जहाज घुसपैठ करते रहे हैं. चीन की नजर इस समुद्र पर इसलिए है क्योंकि इसके नीचे प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है. यही वजह है कि चीन समुद्र के 90 फीसदी हिस्से पर अपना दावा करता है. इसी वजह से वियतनाम में भी मेड इन वियतनाम को बढ़ावा मिला ताकि वे चीन को पीछे कर सकें।
तिब्बत के दलाई लामा, जो अभी भारत के हिमाचल में निर्वासन में हैं, उनकी वजह से भी तिब्बतियों में चीन के खिलाफ आक्रोश है. दलाई लामा के भाई प्रोफेसर थुप्टेन नॉरबु ने तिब्बत को चीन से आजाद करने के लिए चीनी सामानों के बायकॉट की अपील की. उनका यकीन है कि Made-in-China के बहिष्कार में जल्दी ही पूरी दुनिया जुड़ जाएगी।
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