ठाकुर के वात्सल्य से भीगी सिंध की माटी कृष्ण योग भक्ति की सौंधी सुगंध बिखेरने लगी। गोपीनाथ की लीलाओं से सारा डेरा गाजी खां चकित था। देश के बंटवारे ने फिजां का रंग लाल कर दिया था। सारा देश सुलग रहा था। उस वक्त गोपीनाथ डेरा गाजी खां के रक्षक बने।
आसपास सब कुछ जल रहा था पर इस क्षेत्र में कोई तबाही नहीं हुई। उसी बीच ठाकुर जी ब्रज में वापस आए। सेवायत रेलगाड़ी से उन्हें लेकर यहां आए। बांके बिहारी मंदिर के पास पुलिस चौकी वाली गली स्थित सखन माता की कुंज में पुष्टिमार्ग की अष्टम पीठ को विराजमान किया गया। परम वैष्णव लाल जी के उपास्य गोपीनाथ की पहचान डेरा गाजी खां से है। गुसाईं विट्ठलनाथ जी के पौष्य पुत्र लाल जी (तुलसीदास) की भक्ति गाना भाव विभोर करने वाली है।
उनके ठाकुर गोपीनाथ की त्रिभंगी मूरत मन मोह लेती है। उनके साथ गोरे दाऊजी का सुंदर विग्रह भी विराजमान है। पुष्टिमार्गीय की इस हवेली में ठाकुर ठाठ बाट से रहते हैं। मंदिर के सेवायत ‘लाल गोस्वामी ने कहा कि “लालजी ने बरसों तक श्रीनाथ जी व सेवा की। उनकी प्रगाढ़ भक्ति से प्रसन्न गुसाई जी ने लाल गोपीनाथ प्रदान किए। विभाजन के बाद हमारे बुजुर्ग ठाकुर जी को ने से। पहले यह स्थान गोरे दाऊजी के नाम से जाना जाता का विग्रह यमुना नदी से प्राप्त हुआ था। सुखन माता लालजी केवलराम की पुत्रवधू थी”
देह साथ विस्मृत भयो, गुरु की करुणा धार
सिंध प्रांत के लरकाना में जन्मे गोस्वामी लाल जी 17 वर्ष की आयु में सन् 1568 में ब्रज यात्रा को आए। उन्होंने गोस्वामी विट्ठलनाथ जी से मंत्र दीक्षा ली। गुसाई जी ने इन्हें जल-घड़िया की सेवा सौंपी। वह उनसे पुत्रवत व्यवहार करते थे। नित्य प्रति गोवर्धन से विश्राम घाट यमुना जल लेने जाना और जल लेकर गोवर्धन वापस आना लाल जी की दैनिक सेवा थी। अखंड बारह मास तक यमुना जल ढोते-ढोते सिर पर घाव होने से कीड़े पड़ गए। भाव साधना में डूबे रहने से देहाध्यास विस्मृत बना रहता था। ऐसे में जब कोई कीड़ा कुलबुला कर गिर पड़ता तो जीव दयावश उठाकर पुनः घाव में डाल लेते थे। गुसाई जी ने अपने सात पुत्रों को सात पीठ पर विराजमान किया। अपने पौष्य पुत्र तुलसीदास को गोपीनाथ का विग्रह देकर अष्टम पीठ का अधिकारी बनाया।
गोपीनाथ की लीलाएं
गुसाई जी ने लाल जी को फ्रंटियर में पुष्टिमार्ग का प्रचार प्रसार करने का आदेश दिया। लालजी गोपीनाथ के विग्रह को लेकर सिंध के किनारे बसे डेरा गाजी खां में निवास करने लगे। गोपीनाथ जी लाल जी से प्रत्यक्ष बोलते थे। गोपीनाथ जी ने उनसे पहले ही कह दिया था, मैं कुछ समय बाद वृंदावन लौट जाऊंगा। विभाजन के समय सारा देश जल रहा था पर गोपीनाथ जी ने डेरा गाजी खां में खून नहीं बहने दिया। वे लोगो के रक्षक बने। विभाजन के बाद जब डेरा गाजी खां से लोग रेलगाड़ी से भारत लाए जा रहे तो एक पूरी बोगी गोपानाथ जी व उनके सेवायतों के लिए आरक्षित थी। उसी के साथ वाली बोगी में एक वैष्णव परिवार भी था। कुछ देर के लिए ट्रेन एक स्टेशन पर रूकी तो एक वैष्णव युवक नीचे उतरकर रेल की पटरी के एक ओर निकले स्लीपर के हिस्से पर बैठ गया। जिस पर दूसरी गाड़ी को आना था। बैठते ही उसे ऐसी गहरी नींद ने घेर लिया कि गाड़ी की सीटियां भी उसे सुनाई न दीं। पारिवार चिल्लाता रहा उठ जा उठ जा गाडी आ रही है। वो आवाज गोपीनाथ जी ने सुनी ता हाथ पकड़कर उस युवक को खींच लिया। गाड़ी निकल चुकी थी और युवक सुरक्षित था।
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