ब्रज भ्रमण: यहां हैं सवा मन के शालग्रम की दुर्लभ जोड़ी

मंदिरों के नगर में दुर्लभ रत्न छिपे हैं। बस, कुंज गलियों में ढूंढने की देर है। लोई बाजार के छोटे से मंदिर में विराजे सवा मन के दो शालिग्राम आपको पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेंगे। नेपाल की गंडकी नदी से निज धाम पहुंचे इन शालिग्राम की कथा भी निराली है। देखना चाहेंगे न इस जोड़ी को।

वृंदावन स्थित लोई बाजार के कोने पर सवामन शालिग्राम का प्राचीन मंदिर स्थित है। ऊपरी तल पर बने रामानुज संप्रदाय के इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण सवामन के दो शालिग्राम हैं। श्याम वर्ण के दोनों विग्रहों में एक गोलाकार है जिसका नाम नृसिंह मुक्ति नारायण है और दूसरा लंबे आकार वाला हिरण्यगर्भ कहलाता है। मान्यता है कि ऐसे शालिग्राम समूचे विश्व में कहीं नहीं हैं। इनके अलावा गर्भगृह में राम दरबार की अनुपम झांकी है।

रामानुज संप्रदाय से जुड़े रीवा रियासत राजा रघुराजा सिंह के वंशजों ने सन् 1766 में इसका निर्माण कराया था। पद्म पुराण य ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रसंग को प्रायः सब जानते हैं। वृंदा के अभिशाप से भगवान विष्णु ने शालिग्राम शिला के रूप में गंडकी नदी के गहरे जल में नित्य निवास को अंगीकार किया था। इस तरह के छोटे-बड़े शालिग्राम गंडकी नदी (नेपाल) में ही प्राप्त होते है। अन्यान्य विग्रहों की तरह शालिग्राम की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती। सवा मन के इन दो श्रीविग्रहों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि खंडित भग्न रूप में भी पूज्यनीय हैं। एक श्री संप्रदाय महात्मा नेपाल के जंगलों में तपस्या कर रहे थे। शालिग्राम भगवान ने उन्हें स्वप्नादेश दिया कि न मेरे दो विग्रह गंडकी नदी में चिरकाल से भग्न पड़े हैं। मुझे ब्रजलीला द स्थली वृंदावन ले चलो। तपस्वी महात्मा ने स्वप्न ही समझा। दूसरे दिन आकाशवाणी में यही आदेश फिर सुना। भूखे-प्यासे, पत्ते चबाते महात्मा जंगल पार कर गंडकी पर मुक्तिनारायण स्थान पहुंचे गोता लगाने पर एक गोलाकार विग्रह उनके हाथ में आया। अनेक गोते लगाने पर भी दूसरा विग्रह नहीं मिला। महात्मा ने कहा, भगवान मैं एक को लेकर नहीं जाऊंगा। भगवान ने महात्मा की परीक्षा लेनी चाही थी पर उनकी दृढ़निष्ठा को देख आकाशवाणी की, अरे महात्मा एक गोता और सईी तब महात्मा के गोता लगाने पर हरिण आकार के शालिग्राम मिले। तपस्वी ने बांस का कांबरा (बहंगी) बनाया और दोनों ओर पलड़े में शालिग्राम को बिठाकर पैदल वृंदावन आए। विग्रह श्री संप्रदाय के आचार्यों को सौंप दिए। मंदिर के सेवायत राम गोपाल आचार्य हैं।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*