ब्रजयात्रियौं! जे बताओ, गामन ते उकताय तौ नाय रहे। देखो भैया, हमायी कोशिश तो जे ही है कि ब्रज चौरासी कोस कौ कोऊ धाम नाय छूटै। ब्रज के सबरे गाम लाड़िली लाल के लीला धाम ही तौ हैं। इन गामन में कहा किशोरी की पावन चरण रज कौ स्पर्श मिलै । भाव तौ ऐसौ ही होवै। या बात कू ब्रजवासिन ते ज्यादा कोऊ नाय समझ सकै। ब्रज मै तो रसिकन को ही राज है। परिकम्मा ढारौली जाय रही है। इतै ऊ मुक्ति धरोहर हमारी बाट जोह रही हैं।
बरसाना-गोवर्धन मार्ग पर सात किमी आगे स्थित ढारौली गांव भी एक लीला का साक्ष्य रहा है। अक्रूर गोपियों और ब्रजवासियों को यहां धीरज बंधाया था। इसलिए गांव क नाम धारौली पड़ा जिसका अपभ्रंश ढरौला है। इस धाम में वन और कुंडों की संपदा थी पर अब कुदरत से प्रेम करने वाले रहे कहां। वह तो बस बेरूखी ही सहती है। वनश्री इतिहास बन गई। उसके पास स्थित भूदर कुछ लुप्त चुका है।
गांव के यादराम पंडित अपने गांव का हाल बताने को हमारे संग हो लिए। उन्होंने कहा कि, “बरसों पहले बन खतम है गयौ। कुंडन की पुछवे वारौ कोऊ नाय। त्रिवेणी कुंड नरक बनाय दिया है। कछू सल पहलै तक हम इन कुंडन मै नहाते हते। अब तौ बिनके जौहरे ऊ जावे की मन नाय करै। इसके बाद गांव के प्राचीन मंदिरों के दर्शन को गए। सबसे पहले गोपाल को निहारा।
मंदिर में श्यामा श्याम व लड्डू गोपाल की प्यारी छवि है। ग्रामीणों ने करीब सौ वर्ष पहले इस मंदिर का निर्माण कराया था। गांव में बिहारी जी के भी दर्शन हैं। गर्भगृह में ऊपरी सिंहासन पर मुरली बजैया और राधा रानी विराजमान हैं। निचले सिंहासन पर बिहारी जी व श्रीजी के प्राचीन विग्रह स्थापित हैं। ग्रामीणों ने तीन सौ वर्ष पूर्व यह मंदिर बनवाया था।
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