“बरसाने कौ रस तौ लै लियौ, अब नंदगांव के नेह मै ऊ भीज लेओ। बितै लाली है तौ इतै लाला। नंद नंदन के आंगन मै आयकै हिया उमग उठै। युग बीत गए पर यहां अबहू कनुआ के बचपन की बसावट और तरावट है। या उपवन की माटी मै ते लाड़ले की बाल लीलन की भीनी सुगंध आवै। यशोदा मैया के वात्सल्य की रसधार रोम रोम कू पुलकावै। ब्रज के चार धाम मै ते एक नंदगांव आनंद कंद की लीला स्थलिन ते अट्यौ है पर जे विरासत उपेक्षित पड़ी है।कन्हैया के या धाम कू सजावे संवारवे की पहल कबहू नाय भई। विकास तौ नाममात्र कू नाय भयौ। नंदगांव की नई पीढ़ी को पढ़वे के लै दूर दराज के इलाके मै जानौ पड़ै। लाड़ले के नाम पै पंडा अपई गृहस्थी चलाय रहे पर बाकी धरोहरन ते बिन को कोऊ सरोकार नाय।। आधुनिकता नै नंदगांव मै ऊ बहुत कछू बदल दियौ है। पर माटी की रंग नाय मिटा पाई। आज ऊ यहां कोऊ बालक बांसुरी बजातौ मिल जाएगौ। ती चलौ नंदगाम लैके अपए, लाला कौ नाम। सबते पहले नंदीश्वर पर्वत पे बने नंद भवन है आमैं जो नंदगांव का हृदय है।
बरसाने से पांच किमी दूर नंदगांव नंदीश्वर पहाडी के नीचे बसा है। नंद भवन ( नंदराय) को जाने वाली सीढ़ियां श्रद्धालुओं से भरी हैं। कोलकाता,महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब आदि राज्यों से आई भक्तों की टोली नंदलाल के गुन गाते हुई आगे बढ़ रही है। नंद की पौरी मै आतै ही आनंद छा गया। भक्तों के चेहरे खिल उठे। हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की…. गुंजार के बीच नंदबाबा के परिवार के दर्शन पाए। ऐसी नयनाभिराम झांकी अन्यत्र दुर्लभ है। संगमरमर से निर्मित विशाल नंद भवन की शोभा निरखते बनती है। पहाड़ी पर स्थित भवन से सारा गांव नजर आता है। मंदिर के दोनों बाह्य द्वार वास्तु कला की दृष्टि से दर्शनीय हैं। राजस्थानी शैली में इनका निर्माण हुआ है। इन द्वारों के अग्रभाग में छोटी-छोटी पौरियां बनी हैं। मंदिर की चार बुर्जियां हैं।
जगमोहन की छत पर कनुआ की लीलाओं का सुंदर चित्रण है। दीवारों को बेलबूटों, पक्षियों से सजाया गया है। गर्भगृह में नंदबाबा,यशोदा मैया, श्री कृष्ण-बलराम, कन्हैया के सखा मंसुका व धंसुका के दर्शन है। राधा रानी का विग्रह ओट में है। नंदराय में बल्लभ कुल की सेवा है। नंदगांव के 400 गोस्वामी परिवार यहां के सेवायत है। मंदिर के नाम 826 बीघा जमीन है। जिस पर सेवायतों का अधिकार है। जन्माष्टमी और होली यहां के प्रमुख उत्सव हैं। बसंत से धूल व अधिकाश प्रधान से सजाया गया है। गर्भगृह में नंद बाबा, यशोदा
उत्सवों पर समाज गायन होता है। नंद भवन के प्रांगण म्के दर्शन हैं जो यशोदा मैया द्वारा स्थापित हैं। रुद्र ने यशोदा से कहा कि मैं पर्वत रूप में विराजित हूं। आप नंद जी व कृष्ण-बलराम के साथ मेरे ऊपर निवास करें। प्रारंभ में नंदराय का मंदिर हींस की गुफा में था जिसमें लंगड़ा ठाकुर की देव प्रतिमा थी। संवत 1750 में रूप सिंह जाट (सिनसिनवार) ने वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया था। नंदराय की मूर्तियां रससिद्ध कवि घनानंद द्वारा स्थापित बताई जाती है।
पौराणिक महत्व
देवमीढ़ की दो रानियां थीं। क्षत्राणी से शूरसेन और वैश्यानी से पर्जन्य जी पैदा हुए। नारद जी के उपदेश से पर्जन्य जी नंदीशवर पर्वत पर तप किया। एक समय आकाशवाणी हुई कि हे पर्जन्य, तुम्हें समस्त गुणों से युक्त पांच पुत्र होंगे। उनमें मध्यम पुत्र नंद होगा। कुछ दिन नंदीवर पर्वत पर रहने के बाद पर्जन्य महावन में जाकर बस गए। कंस के भय से महावन छोड़कर नंद जी अपने पिता पर्जन्य के सेवित नंदीवर में आए। माना जाता है कि इसी पहाड़ी पर नंदबाबा का निवास था। नंदगांव की पावन भूमि पर नंदलाल ने अनेक रसमयी लीलाएं की।
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