बरसों तक अपने ठाकुर के बिना सूना पड़ा सिसकता रहा। आंसुओं की नमी से दीवार दरकने लगीं। बेरहम वक्त के आगे इंतजार हार गया। साक्षी बनने विद्यापुर गये ठाकुर का यहां हर साक्ष्य मिट गया। रह गई तो सिर्फ माटी.. जो अपने साक्षी गोपाल को पुकार रही है। आओ, उस पावन मिट्टी और ठाकुर जी की चरण पादुका को माथे से लगा आते हैं।
यह मार्मिक कथा साक्षी गोपाल मंदिर की है। जहां कभी मंदिर हुआ करता था, अब वहां जमीन रह गई है। एक कोने में साक्षी गोपाल की चरण पादुका है। गोविंद देव मंदिर के पास यह स्थान है। सन् 1999 के आसपास मंदिर ढह गया। ठाकुर के साक्षी गोपाल नामकरण की रोचक कथा है। विद्यानगर से दो ब्राह्मण यात्रा करते हुए वृंदावन आए। गोविंद देव जी के दर्शन कर कुछ दिन इस मंदिर में विश्राम किया। उस समय गोपाल जी का सुंदर विग्रह सेवित था। ब्राह्मणों में एक वृद्ध कुलीन परिवार का था और दूसरा साधारण कुल का युवक। युवक की सेवा से संतुष्ट होकर वृद्ध ने उसे अपनी कन्या दान करने का निश्चय किया। युवक ने कहा कि यह असंभव है। मैं योग्य पात्र नहीं हूं। वृद्ध के समझाने पर युवक ने कहा कि आप गोपाल को साक्षी बनाकर ये बात कहो तब मैं हामी भरूंगा। वृद्ध ने यही किया और गोपाल के सामने वचन दोहराए। विद्यानगर लौटने पर वृद्ध द्वारा विवाह की बात बताए जाने पर परिवारीजनों ने साधारण कुल के युवक को अपनी बेटी देने से मना कर दिया। युवक ने पंचायत बुलाई। पंचों ने कहा कि अपने गवाह को बुलाकर लाओ। युवक ने वृंदावन आकर गोपाल को प्रणाम किया और कहा, आप जानते हैं, सच्ची बात जान कर भी जो गवाही नहीं देता, उसे पाप लगता है। गोपाल ने कहा, तू चलकर अपने देश में पंचायत बुला, मुझे स्मरण करना, मैं वहीं प्रकट होकर साक्षी बनूंगा। ब्राह्मण ने कहा, प्रभु यदि आप किसी और रूप में आए तो आपकी गवाही नहीं मानी जाएगी। इसी मूर्ति रूप में चलकर गवाही देनी होगी। गोपाल राजी हो गए और ब्राह्मण के पीछे-पीछे हो लिए। उन्होंने कहा तू पीछे मुड़कर मत देखना, अगर देखा तो वहीं स्थिर हो जाऊंगा। विद्यानगर के निकट आकर ब्राह्मण ने पीछे देखा और गोपाल वहीं स्थिर हो गए। वृंदावन से मूर्ति के आने पर लोग पूजा अर्चना को दौड़ पड़े। गोपाल की गवाही के बाद ब्राह्मण का विवाह हुआ। तब से गोपाल साक्षी गोपाल कहलाए। ग्रामीण बोले, प्रभु अब हम आपको यहां से नहीं जाने देंगे। तब साक्षी गोपाल विद्यानगर में विराजमान हुए। वहां के राजा ने उनके लिए मंदिर का निर्माण कराया।
कुछ समय बाद उड़ीसा के राजा पुरुषोत्तम ने विजयनगर के राज्य पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। राजा के पुत्र प्रतापरुद्र परम भक्त थे। उन्होंने साक्षी गोपाल से अपने राज्य में पधारने की प्रार्थना की। ठाकुर से स्वीकृति मिलने पर पुरुषोत्तम उन्हें अपने राज्य में ले आए। तब से साक्षी गोपाल कटक में सेव हो रहे हैं।
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