जिस एससी-एसटी एक्ट को लेकर बीएसपी और तमाम दलित पार्टियां शहर-शहर रणक्षेत्र बना चुकी हैं, वही एससी-एसटी एक्ट में उत्तर प्रदेश में मायावती के शासन के दौरान न सिर्फ संशोधित किया गया था, बल्कि इस कानून को हल्का भी किया गया था. मजेदार बात यह है कि यही संशोधित कानून उत्तर प्रदेश में आज भी लागू है. आज भी यूपी में एससी-एसटी एक्ट को अलग तरीके से लागू किया जाता है, जिसके तहत अब सीधे गिरफ्तारी नहीं होती है|
दो अप्रैल को उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में इस कानून को लेकर सड़कों पर उतरे दलित संगठनों ने जो हिंसा फैलाई थी, उसे पूरे देश ने देखा, लेकिन इस हिंसा के दो दिन बाद ही 2007 में मायावती सरकार का वह सरकारी आदेश एक बार फिर सामने आ गया, जिसमें एससी-एसटी एक्ट को न सिर्फ संशोधित किया गया, बल्कि उसमें एक धारा 182 लगाकर यह आदेश पारित किया गया कि अगर कोई इसका दुरुपयोग करेगा, तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई होगी. इतना ही नहीं, एससी-एसटी एक्ट में गिरफ्तारी तभी होगी, जब सीओ स्तर का कोई अधिकारी अपनी विवेचना में मामले को सही पाएगा|
बीएसपी सुप्रीमो मायावती के शासन में 20 मई 2007 को तत्कालीन मुख्य सचिव प्रशांत कुमार ने एक सरकारी आदेश निकालकर अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम में कुछ बड़े बदलाव किए थे, जिसके तहत हत्या और बलात्कार जैसे मामलों में इस एक्ट को लगाने से पहले एसपी या एसएसपी को अपनी विवेचना करनी होती है|
सरकारी आदेश में साफ-साफ लिखा था कि किसी भी निर्दोष को इस एक्ट के तहत न तो परेशान किया जाना चाहिए और न ही फंसाया जाना चाहिए और अगर कोई ऐसा करता है, तो उसके खिलाफ धारा 182 के तहत कार्रवाई होगी. मालूम हो कि मायावती के शासन में निकाला गया यह सरकारी आदेश आज भी उत्तर प्रदेश में अमल में है. मायावती का यह आदेश अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम में संशोधन के तौर पर माना जाता है, जिसके तहत निर्दोष लोगों को फंसाने की गुंजाइश कम हो जाती है|
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश में सड़कों पर हुई हिंसा में गिरफ्तार लोगों में कई नेता बहुजन समाज पार्टी के हैं. मायावती खुद भी अब खुलकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में हैं, लेकिन उनके शासन के दौरान का उनका ही आदेश अलग कहानी कहता है|
Leave a Reply