जब जब भक्तो पर संकट देखा तब तब हरि भगवान ने अपने भक्तों के संकट हरने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया। जिस प्रकार रावण को मारने के लिए राम अवतार, कंस के लिए कृष्ण उसी प्रकार से ऋषि कश्यप के दो प्रतापी पुत्र हुए जिसमे एक का नाम हिरण्याक्ष था दूसरे का नाम हिरण्यकश्यप ।
हिरण्याक्ष को अपनी शक्ति पर इतना घमंड हो गया कि वो पृथ्वी को ही उठाकर जलमग्न कर दिया तब श्री हरि ने वाराह का रूप धरके पृथ्वी को लाकर मथुरा में ही रखा था और हिरणायक्ष का वध कर दिया था । आज भी श्री वाराह की सबसे पुरानी मूर्ति मथुरा के मानिक चौक में स्तिथ है।
भाई की मृत्यु के बाद हिरण्यकश्यप ने घोर तप किया और ब्रह्मा जी से अजेय होने का वर प्राप्त किया फिर वो सब जगह अत्याचार करने लगे जहां तक उसने अपने ही पुत्र प्रह्लाद को भी नही छोड़ा क्योंकि वो भगवान नारायण का भक्त था। उस दुष्ट का वध करने के लिए विष्णु भगवान ने नृसिंह अवतार धारण किया और उस दुष्ट का संघार किया।
इसी लीला का चौबिया पाड़े में कई जगह मंचन होता है जिसमे नृसिंह, वाराह , हनुमान , शिव , ताड़का आदि के स्वरूप बनाये जाते है।
मुख्यतः द्वारिकाधीश मंदिर , गोपाल गली (चौबच्चा) , मानिक चौक , कुआं गली , दशावतार गली में इस लीला का मंचन किया जाता है।
इस लीला के उपरांत जगह जगह भंडारे और शर्बत की प्याऊ लगती है।
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