नई दिल्ली। हर देश में सेना और अर्धसैनिक बलों को मुश्किल से मुश्किल हालात के लिए तैयार किया जाता है। साथ ही इस बात पर भी जोर रहता है कि सैनिक टुकड़ियां कदमताल करें तो हाथ-पैर एक साथ उठें-गिरें। इससे उनकी एकता और अनुशासन का अंदाजा लगता है। इसे पक्का करने के लिए चीन ने एक अलग ही तरीका निकाला। वहां पैरामिलिट्री फोर्स के सैनिकों की ड्रेस पर कॉलर के नीचे नुकीली पिनें लगी होती हैं। गर्दन जरा भी नीचे हुई कि पिन चुभ जाती है। इसी वजह से जवान हमेशा गर्दन सीधी रखते हैं और फिर धीरे-धीरे ऐसी ही प्रैक्टिस हो जाती है. सेना को प्रशिक्षित करने के तरीके यहां काफी अजीबोगरीब और क्रूर हैं।
चीन में देश की आंतरिक सुरक्षा, नियम लागू करने, किसी आपदा की स्थिति में लोगों की मदद और चीन में दंगे-फसाद कुचलने का काम देखती है. लड़ाई के दौरान इसका काम सेना की मदद करना भी है. इसके लिए पैरा फोर्स को भी सेना जैसी ही ट्रेनिंग से गुजारा जाता है. हालांकि इसका अनुशासन सेना से भी बढ़कर माना जाता है. चीन में लगभग 15 लाख पैरा मिलिट्री फोर्स है जो तरह-तरह से खुद को कड़ा प्रशिक्षण देती है. जैसे सैनिक चलते हुए स्मार्ट लगें और कदमताल के वक्त सब कुछ एक साथ हो, इसके लिए ग्रीन कलर की उनकी यूनिफॉर्म के कॉलर पर दोनों ओर पिनें लगी होती हैं. ये इस तरह से होती हैं कि पिन का नुकीला सिरा सीधे उनकी गर्दन की ओर हो।
शुरुआत में सैनिकों की गर्दन काफी झुकती है और ऐसे में पिन सीधे उनकी गर्दन में चोट करती है. यही वजह है कि शुरुआत में चीनी पैरामिलिट्री फोर्स के लगभग सभी जवानों के गले जख्मी रहते हैं. कई बार सबकी गर्दन एक बराबर ऊंची रखने के लिए जवानों की गर्दन के बीच ताश के पत्ते रख दिए जाते हैं. उन्हें पत्ते गिराए बगैर मार्च करना होता है।
इसी तरह से शुरुआत में सैनिकों के सिर पर उल्टी कैप रखकर उनसे चलने की प्रैक्टिस कराई जाती है. अगर किसी सैनिक की कैप नीचे गिरे तो उसे कड़ी सजा मिलती है जैसे कई किलोमीटर की दौड़ वजन लेकर लगाना और खाने से वंचित रहना. जिन सैनिकों का पोश्चर ठीक नहीं हो, उनके साथ एक और प्रयोग चीन में होता है. उनकी पीठ पर लकड़ी का क्रॉस बांध दिया जाता है ताकि वे सीधे चलें और पीठ बिल्कुल न झुके. इससे सैनिकों की पीठ अकड़ तो जाती है लेकिन माना जाता है कि इससे वे सीधा चलने लगते हैं.
वैसे चीन में सैनिकों की ट्रेनिंग के तरीकों की लगातार बात हो रही है. खासकर जब भारत-चीन के बीच लद्दाख को लेकर ठनी हुई है. इसी दौरान ये बात सामने आई कि इनर मंगोलिया में बने चीन के बेस कैंप सैनिक रोज अलग-अलग समूहों में बंटकर जंग की प्रैक्टिस करते हैं. ये लड़ाई इतनी असल होती है कि इस दौरान कई सैनिक घायल भी हो जाते हैं. लगभग 1066 स्क्वैयर किलोमीटर में फैले इस Zhurihe कैंप में उन सारे देशों की सैन्य रणनीति को स्टडी किया जाता है, जिन्हें चीन दुश्मन मानता है. इसके बाद दो टुकड़ियां आपस में ही लड़ती हैं।
खुद को मजबूत बनाने के लिए सैनिक नकली न्यूक्लियर युद्ध और यहां तक कि जैविक हथियारों से लड़ाई की भी प्रैक्टिस करते हैं. साथ में सारे हथियार होते हैं, जो लड़ाई के मैदान में होते हैं. ये लड़ाई इतनी असली होती है कि इस दौरान काफी सारे चीनी सैनिक घायल हो जाते हैं. यहां तक कि ये भी कहा जाता है कि इस दौरान सैनिक मारे भी गए हैं. हालांकि PLA ने कभी भी इस बारे में कोई लिखित या मौखिक स्टेटमेंट नहीं दिया।
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