राजस्थान में चल रहा मौजूदा सियासी संग्राम कोई नया नहीं है। पहले भी इतिहास में ऐसा संकट सामने आया था। 27 साल पहले चला विवाद 6 दिन बाद खत्म हो गया था, लेकिन इस बार का विवाद 7 दिन बाद खत्म हुआ। विधानसभा बुलाने को लेकर इस बार राज्यपाल और सरकार के बीच 7 दिन बाद विवाद खत्म हुआ।
दरअसल, भैरोंसिंह शेखावत और तत्कालीन राज्यपाल बलिराम भगत के बीच 29 नवंबर से 4 दिसंबर 1993 तक छह दिन तक विवाद चला था। अभी सरकार और राज्यपाल के बीच 23 जुलाई से 29 जुलाई तक विवाद चला।
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इस वक्त क्या था विवाद
साल 1993 में राजस्थान विधासभा में 199 विधायक थे। बीजेपी को 95 सीट और कांग्रेस को 76 सीट मिली थी। तीन सीटों पर बीजेपी विचारधार या समर्थित उम्मीदवारों को जीत मिली। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां सरकार बनाने में जुट हुई थी। बड़ी पार्टी होने के नाते बीजेपी ने भैरोंसिंह शेखावत को विधायक दल का नेता चुना। 29 नवंबर 1993 को शेखावत को विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद तत्कालीन राज्यपाल बलिराम भगत को पत्र लिखकर सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने का अनुरोध किया।
सरकार बनाने के लिए बीजेपी की ओर से पांच निर्दलीय विधायकों का समर्थन पत्र भी राज्यपाल को भेजा गया। राज्यपाल की ओर से प्रतिक्रिया नहीं आने पर सियासत गरमा गई। सरकार बनाने का न्यौता नहीं मिलने से नाराज शेखावत राजभवन पहुंचे और धरना पर बैठ गए। इस विवाद का अंत तब हुआ जब सातवें दिन 4 दिसंबर 1993 को राज्यपाल ने भैरोंसिंह को सरकार बनाने का न्यौता दिया।
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इस बार भी विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर राज्यपाल और सरकार के बीच खींचतान हुई। 23 जुलाई को राज्यपाल के पास विधानसभा का सत्र बुलाए जाने की मंजूरी देने का प्रस्ताव भेजा। एक के बाद एक चौथे प्रस्ताव के बाद विवाद खत्म हुआ। इस बीच कांग्रेस के विधायकों ने राजभवन में धरना भी दिया। आखिर चौथे प्रस्ताव के बाद 29 जुलाई को राज्यपाल ने 14 अगस्त से सत्र बुलाने की स्वीकृति दी।
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