दिल्ली के विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए खतरे की घंटी माने जा रहे हैं। दरअसल, भाजपा ने इन चुनावों में न सिर्फ राष्ट्रीय मुद्दों को ढाल बनाया था बल्कि धुव्रीकरण की सियासत को तूल देने की कोशिश की थी, लेकिन करारी हार के बाद अब पार्टी के अंदर ही सवाल खड़े हो गए है कि बिहार, बंगाल और असम के आगामी चुनाव में भाजपा क्या फिर इस पिच पर खेलना पसंद करेगी या फिर बुनियादी मुद्दों को अपने एजेंडे में रखकर आगे की सियासी लड़ाई लड़ेगी।
इस साल के अंत में बिहार में विधानसभा चुनाव है, जबकि अगले साल पश्चिम बंगाल और असम में चुनाव होना है। बिहार में भाजपा नीतीश कुमार की जनता दल युनाइटेड के साथ मिलकर सरकार चला रही है। वहां कानून व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य और साफ सफाई के मुद्दे पर गठबंधन सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। असम में भाजपा की खुद की सरकार है। असम में सीएए कानून को लेकर स्थानीय लोगों के बीच जबरदस्त गुस्सा है। ऐसे में भाजपा के सामने इन राज्यों में लड़ाई बड़ी चुनौती बन गई है।
दिल्ली में पिछले 15 दिन में भाजपा ने शाहीन बाग के मुद्दे पर धुव्रीकरण की सियासत पर जोर दिया लेकिन कहीं न कहीं महंगाई, 100 रूपए प्याज समेत महंगी सब्जी, महंगा पेट्रोल डीजल, बेरोजगारी और कमजोर अर्थव्यवस्था जैसे तमाम मुद्दों को कहीं न कहीं जनता को परेशान किया। राजनीतिक विश्लेषक कहना है कि भाजपा को अब आत्ममंथन करने की जरूरत है कि क्या उसे बुनियादी मुद्दों पर काम करना है या फिर धुव्रीकरण की सियासत पर ही आगे चलना है।
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