स्वास्थ्य संवाददाता
यूनिक समय, मथुरा। पहले चौमुहां के पास और अब ट्रांसपोर्ट कंपनी के गोदाम में मिली नकली दवा के कार्टनों से प्रतीत हो रहा है कि मौत के सौदागरों को रैकेट मथुरा में भी सक्रिय है। चोरी छिपे नकली दवा का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। हैरत की बात तो नकली बन रही हैं और बिक रही है, लेकिन यहां के ड्रग एवं पुलिस प्रशासन को कुछ पता तक नहीं है।
सौदागरों ने अपनी मोटी कमाई के चक्कर में रोगियों को मौत के दरवाजे तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बाजार में इन सौदागरों की दवा एमआरपी में बिक रही हैं। रोगी को चाहे लाभ मिले या नहीं। अधिकांश मेडिकल स्टोरों पर बिकने वाली दवाओं के बिल तक नहीं मिलते हैं। ग्राहक बिल मांगते हैं तो मेडिकल संचालक ग्राहक को जीएसटी देने का पाठ पढ़ाते हैं।
उदाहरण के तौर पर ऐसे समझिए कि किसी दवा पर एक हजार रुपये की एमआरपी है तो दुकानदार पाठ पढ़ाते हैं अब इस कीमत पर जीएसटी और देनी होगी। इस कारण ग्राहक अपने कदम वापस खींच लेता है। जीएसटी के चक्कर में मेडिकल संचालक रोगियों के तीमारदारों को किस तरह से फंसाता है। ड्रग इंसपेक्टर की ओर मेडिकल स्टोरों के संचालकों से कभी यह प्रश्न नहीं किया जाता है कि वह तीमारदारों को बिल क्यों नहीं देते हैं।
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