पटना. जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर के ट्वीट और बयान के बाद उठे विवाद की वजह से क्या आने वाले समय में नीतीश-भाजपा के बीच सीट शेयरिंग को लेकर घमासान मचेगा. यही नहीं, तीन साल दूर रहने वाली जेडीयू (JDU) को 2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपरहैंड पर रखते हुए 17 सीट दी थीं. अब सवाल उठता है कि क्या 2015 में 156 सीट पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को अपने से ज्यादा सीट देगी.
कैसे और क्यों बना था जेडीयू-भाजपा गठबंधन
1995 में राजद के शासन काल को आतंकराज बताने वाले भाजपा-जेडीयू ने लालू राज को उखाड़ फेंकने के लिए गठबंधन किया था. हालांकि 1995 में यह गठबंधन लालू प्रसाद के करिश्में की वजह से बुरी तरह फेल हो गया. बावजूद इसके भाजपा-जेडीयू की दोस्ती बरकरार रही थी. 1996 के लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन ने 54 में से 23 सीटों पर जीत हासिल की. इसके बाद 2005 के फरवरी में हुए बिहार विधानसभा में किसी भी दल को बहुमत हासिल नहीं हुआ, लेकिन आठ महीने बाद दोबारा हुए चुनाव में जेडीयू को 88 और भाजपा को 55 सीटें मिली, तो 15 साल बिहार पर राज करने वाले राजद 75 सीट पर सिमट गयी. इस तरह बिहार से लालू राज की समाप्ति हुई. इसके बाद 2010 के चुनाव में में जदयू ने 142 तो भाजपा ने 101 सीट पर अपने उम्मीदवार खड़े किये. इस चुनाव में जदयू को 115 सीट तो भाजपा को 91 सीट हासिल हुई थीं.यानी बिहार में भाजपा-जेडीयू गठबंधन को 206 सीट का प्रचंड बहुमत मिला.
कब टूटा था बिहार में एनडीए गठबंधन
010 में बिहार की जनता ने भाजपा-जेडीयू को प्रचंड बहुमत से सरकार तो बना दी, लेकिन इसी साल से यानी 2010 से ही नरेन्द्र मोदी के नाम पर दोनों पार्टियों के बीच खटपट शुरू हो गयी थी. लिहाजा 16 जून 2013 को दोनों का 17 साल पुराना गठबंधन टूट गया. इसके बाद गठबंधन को तोड़ कर नीतीश कुमार ने राजद और कांग्रेस से हाथ मिलाकर महागठबंधन बना लिया था. जबकि भाजपा ने जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा और उपेन्द्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के साथ रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी साथ एनडीए को दोबारा खड़ा किया, लेकिन एनडीए को 2015 विधानसभा चुनाव में 1995 की तरह हार का सामना करना पड़ा था. 2015 में भाजपा ने 156 सीट पर चुलाव लड़ा और सिर्फ 54 जीत मिली. हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से अलग होकर जेडीयू भी महज दो सीट पर सिमट गयी थी.
एनडीए में दोबारा क्यों और कैसे आये नीतीश
हालांकि 2015 में बिहार की जनता ने नीतीश कुमार के चेहरे पर महागठबंधन की सरकार बनायी थी. इस सरकार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने और उपमुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव, तो सूब के स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव भी सेट हो गये थे. हालांकि इस सरकार के बनने के कुछ ही दिन बाद से भाजपा विधानमंडल दल के नेता सुशील कुमार मोदी ने लालू प्रसाद यादव के अवैध संपत्ति का भण्डाफोड़ करना शुरू किया.
मोदी के लगातार खुलासे से जितने परेशान राजद के लोग हो रहे थे, उससे कहीं ज्यादा नीतीश कुमार परेशान थे. लिहाजा नीतीश कुमार ने साफ लहजे में कहा कि तेजस्वी यादव और राजद को संपत्ति का ब्यौरा बिहारवासियों के सामने रखना चाहिए. लेकिन ना तो राजद और ना ही लालू प्रसाद यादव ऐसा करने को तैयार हुए. लिहाजा 27 जुलाई 2017 को नीतीश कुमार ने इस्तीफा सौंप कर महागठबंधन से खुद को अलग कर वापस एनडीए के साथ होकर सरकार बना ली थी.
प्रशांत किशोर के बयान और ट्वीट से गठबंधन में दरार का खतरा
बिहार में 2017 से ही नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार चल रही है. पिछले साल नवंबर के महीने में ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के गृह मंत्री अमित शाह ने एक बार फिर नीतीश के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर दी है, लेकिन महाराष्ट्र में शिवसेना से धोखा खाने वाली भाजपा जब झारखंड में भी चुनाव हार गयी. इसके बाद विपक्ष के साथ साथ जेडीयू के नेता प्रशांत किशोर ने भी भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
उन्होंने भाजपा को 2015 का हवाला देते हुए कहा कि बिहार में जेडीयू ही ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ेगी. इतना ही नही प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के बेहद करीबी भाजपा नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को भी परिस्थितवश उपमुख्यमंत्री बताकर दोनों के बीच दरार लाने की कोशिश की. हालांकि जब खुद नीतीश ने कहा कि एनडीए में सबकुछ ठीक है. इसके बाद भाजपा और जेडीयू के नेताओं द्वारा निकाली गयी बयानों की तलवार को म्यान में रखा गया.
विधानसभा भी बराबर सीट पर लड़े जेडीयू-भाजपा!
भाजपा नेता और प्रदेश प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल का कहना है कि प्रशांत किशोर के बयान का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने कहा कि जैसे भाजपा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी,भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ही सीट शेयरिंग के लिए अधिकृत बयान दे सकते है, वैसे ही जेडीयू में मुख्यमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार या प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह का ही सीट-शेयरिंग बयान अधिकृत माना जाएगा. पटेल ने कहा कि जिस प्रकार एनडीए ने लोकसभा के लिए सीटों पर तालमेल किया था. ठीक उसी प्रकार बिहार विधान सभा चुनाव 2020 के लिए भी एनडीए घटक दल के शीर्ष नेता आपस में मिल बैठकर सीट-शेयरिंग को तय कर लेगें.
2020 में जिनके टिकट कटेगें वो बवाल काटेगें
लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि 2015 में भाजपा ने जिन्हें अपना उम्मीदवार बनाया था वो 2020 में सीट जाने के बाद बवाल तो नहीं काटेगें. इस सवाल पर भाजपा नेता निखिल आनंद का कहना है कि भाजपा एक अनुशासित संगठन है. यहां कार्यकर्ता पहले देश के बारे में, फिर राज्य और फिर पार्टी के विषय में सोचते हैं.ऐसे में 2020 में जिनका टिकट कटेगा वो बवाल नही काटेगें बल्कि वहां से एनडीए गठबंधन के उम्मीदवार की जीत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देगें.
बराबर सीट की मांग पर क्या कहना है जदयू का
भाजपा नेता यह चाहते हैं कि जिस तरह भाजपा ने लोकसभा चुनाव में दरियादिली दिखाते हुए 2 सीट वाली जदयू को 17 सीटें दी थीं. इसी प्रकार जेडीयू भी 2020 में बड़ा दिल दिखाते हुए भाजपा को बराबर की सीटें देनी चाहिए, ताकि लोजपा भी सम्मानित सीट के साथ चुनाव लड़ सके. भाजपा की इस चाहत पर जेडीयू का कहना है कि ये तो एनडीए का शीर्ष नेतृत्व ही तय करेगा कि 2020 में कौन से दल कितनी सीट पर चुनाव लड़ेगा.
जेडीयू प्रवक्ता निखिल मंडल ने कहा कि 2015 में जब जेडीयू राजद-कांग्रेस के साथ गयी थी, तब 115 सीट जीतने वाली जेडीयू ने महागठबंधन में 101 सीट पर चुनाव लड़ने का काम किया था. ठीक उसी प्रकार जब 2014 में 2 लोकसभा सीट पर जीतने वाली हमारी पार्टी ने एनडीए में शामिल होकर 2019 के लोकसभा चुनाव में 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और 16 सीटों पर जीत हासिल की. उन्होंने कहा कि जब भी गठबंधन होता है, तो सभी को थोड़ा कंप्रोमाइज करना पड़ता है, लेकिन एनडीए में 2020 में सीट-शेयरिंग को लेकर कोई विवाद नहीं होगा.
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