नई दिल्ली। आज गुरु पूर्णिमा है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। गुरु पूर्णिमा का दिन गुरु को समर्पित माना जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन ही महाभारत और कई ग्रंथों की रचना करने वाले महर्षि व्यास का जन्म हुआ था। यही वजह है कि अषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। सतातन धर्म में गुरु को ईश्वर से भी ऊंचे स्थान से नवाजा गया है। आइए गुरु पूर्णिमा के मौके पर पढ़ें गुरु पूर्णिमा की कथा:
गुरु पूर्णिमा की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अवतार हैं, महर्षि वेदव्यास के पिता का नाम ऋषि पराशर था और माता का नाम सत्यवती था। वेद ऋषि को बाल्यकाल से ही अध्यात्म में रुचि थी। इसके फलस्वरूप इन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की और वन में जाकर तपस्या करने की अनुमति मांगी, लेकिन उनकी माता ने वेद ऋषि की इच्छा को ठुकरा दिया।
तब इन्होंने हठ कर लिया, जिसके बाद माता ने वन जाने की आज्ञा दे दी. उस समय वेद व्यास के माता ने उनसे कहा कि जब गृह का स्मरण आए तो लौट आना. इसके बाद वेदव्यास तपस्या हेतु वन चले गए और वन में जाकर कठिन तपस्या की. इसके पुण्य प्रताप से वेदव्यास को संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हुई।
इसके बाद इन्होंने वेदों का विस्तार किया और महाभारत, अठारह महापुराणों सहित ब्रह्मसूत्र की भी रचना की। इन्हें बादरायण भी कहा जाता है. वेदव्यास को अमरता का वरदान प्राप्त है. अतः आज भी वेदव्यास किसी न किसी रूप में हमारे बीच उपस्थित हैं।
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