आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म भी हुआ था, इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है. इस दिन शिष्य द्वारा गुरु की उपासना का विशेष महत्व भी है. गुरु को यथाशक्ति दक्षिणा, पुष्प, वस्त्र आदि भेंट करते हैं. गुरु पूर्णिमा इस साल रविवार, 5 जुलाई को मनाई जा रही है.
कौन हो सकता है आपका गुरु?
सामान्यतः हम लोग शिक्षा प्रदान करने वाले को ही गुरु समझते हैं, परन्तु वास्तव में ज्ञान देने वाला शिक्षक बहुत आंशिक अर्थों में गुरु होता है. जन्म जन्मान्तर के संस्कारों से मुक्त कराके जो व्यक्ति या सत्ता ईश्वर तक पहुंचा सकती हो, ऐसी सत्ता ही गुरु हो सकती है. हिंदू धर्म में गुरु होने की तमाम शर्तें बताई गई हैं, जिसमें से प्रमुख 13 शर्तें निम्न प्रकार से हैं.
-शांत/दान्त/कुलीन/विनीत/शुद्धवेषवाह/शुद्धाचारी/सुप्रतिष्ठित/शुचिर्दक्ष/सुबुद्धि/आश्रमी/ध्याननिष्ठ/तंत्र-मंत्र विशारद/निग्रह-अनुग्रह
कैसे करें गुरु की उपासना?
– गुरु को उच्च आसन पर बैठाएं.
– उनके चरण जल से धुलाएं और पोंछे.
– फिर उनके चरणों में पीले या सफेद पुष्प अर्पित करें .
– इसके बाद उन्हें श्वेत या पीले वस्त्र दें.
– यथाशक्ति फल, मिष्ठान्न दक्षिणा अर्पित करें.
– गुरु से अपना दायित्व स्वीकार करने की प्रार्थना करें.
गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
गुरु पूर्णिमा 4 जुलाई 2020 को सुबह 11 बजकर 33 मिनट से अगले दिन यानी 5 जुलाई 2020 को सुबह 10 बजकर 13 मिनट तक रहेगी. इस बीच आप किसी भी वक्त गुरु की उपासना कर सकते हैं.
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