Haryana Election Results 2019: हुड्डा की अधूरी जीत और कांग्रेस की पूरी हार बन गया हरियाणा

नई दिल्ली. थोड़ा फ्लैशबैक में जाइये, सितंबर महीने की शुरुआत में हरियाणा के अंदर उथल-पुथल मची थी. हुड्डा-तंवर  के बीच कोल्ड वार अपने अंतिम चरण में थी. अचानक कांग्रेस आलाकमान ने वह किया जो बीते पांच साल में नहीं हुआ था. यानी काफी देर से एक बोल्ड फैसला लिया. भूपेंद्र सिंह हुड्डा को फिर कांग्रेस चुनाव की कमान मिल गई और अशोक तंवर के लिए एक तरह से ‘पार्टी निकाला’ हो गया. बस यहीं से बेजान कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की आंखें चमकने लगीं, संगठन चुस्त और निशाना सटीक लगने लगा.

हुड्डा ने कोई तेजी नहीं दिखाई, बल्कि अपने दो बार के सीएम वाले अनुभव और जोरदार राजनीतिक प्रबंधन का परिचय देते हुए बीजेपी के पत्ते खोलने का इंतजार किया. गौर कीजिए बीजेपी द्वारा हरियाणा में प्रत्याशी घोषित करने के ठीक एक दिन बाद कांग्रेस की एक लिस्ट जारी हुई. कहने को तो यह एक सामान्य सी चुनावी प्रक्रिया थी, लेकिन हुड्डा यहीं से खट्टर एंड कंपनी को धोबीपाट दांव मारा और चुनाव खत्म होने तक संभलने नहीं दिया.

अपनाया यह फॉर्मूला
दरअसल, हुड्डा ने प्रत्याशी इस तरह से खड़े किए कि बीजेपी हार जाए. उन्होंने बीजेपी के ब्राह्मण उम्मीदवार के सामने अपना ब्राह्मण प्रत्याशी खड़ा किया. बनिया के सामने बनिया, यादव के सामने यादव और जाट के सामने जाट खड़ा करके बीजेपी का खेल बिगाड़ दिया. हुड्डा ने जाट, जाटव और मुस्लिम पर फोकस किया जो उसका कोर वोटबैंक है. दूसरी ओर, बीजेपी ने शायद जाटों का गुस्सा पहले ही भांप लिया और इस समाज को सिर्फ 20 ही टिकट दिया, जबकि वर्ष 2014 के चुनाव में 27 टिकट दिए गए थे.

हुड्डा ने इसका फायदा उठाया. उन्होंने जाटों को 27, जाटव को 12 और मुस्लिमों को 6 टिकट दिए. उन्हें पता था कि बनिया और पंजाबी शायद बीजेपी के साथ ही रहेंगे, इसलिए इस समुदाय को ज्यादा टिकट नहीं दिया. हुड्डा का राजनीतिक कौशल पार्टी प्रत्याशियों की लिस्ट में साफ नजर आ रहा था. हुड्डा ने मूल रूप से तीन कम्युनिटी पर अपना बड़ा दांव खेला. पहला जाट, दूसरा दलित और तीसरा माइनॉरिटी. गणित लगाकर देखिए ये तीनों कम्युनिटी हरियाणा की आधी आबादी के ज्यादा हैं.

कांग्रेस की मुश्किल

नहीं चला राष्‍ट्रवाद का मुद्दा
इसे कांग्रेस की कामयाबी भी नहीं कहेंगे. इसे मनोहरलाल खट्टर सरकार की नाकामी के खिलाफ गुस्सा करार दे सकते हैं. मई में जिस हरियाणा ने बीजेपी को झोली भरकर वोट दिया. देश की तीन सबसे बड़ी जीत हरियाणा से ही हुई, वहां पर विधानसभा चुनाव में बहुमत से दूर होना लोगों को चौंका रहा है. दरअसल, इसकी एक बड़ी वजह यह है कि लोगों ने राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों को नकार कर स्थानीय मसलों को तरजीह दी. बिजली, सड़क पानी और रोजगार बड़े मुद्दों पर भारी पड़े.

…फिर भी हार गए
कांग्रेस के जो नंबर अभी टीवी पर टंगे हुए हैं वो हवा का रुख जानकर जोरदार मेहनत करने में कांग्रेस की असफलता की एक और मिसाल भर है. यह इसी तरह कांग्रेसियों का मुंह चिढ़ाते रहेंगे जब तक तुरंत फैसला न कर पाने के अपने असाध्य रोग से कांग्रेस मुक्त नहीं हो जाती. पत्ते खुले हैं, हुड्डा टेबल पर हैं, इंतजार है नए साझीदार के आने का, जो कि बंटवारे की अपनी शर्तें लेकर आएगा और वो मांगेगा जो न तो हुड्डा चाहते हैं और न ही कांग्रेस…इंतजार करिए.

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*