हिजाब विवाद: क्लास में हिजाब की नो एंट्री, हाईकोर्ट का फैसला

बेंगलुरु, कनार्टक। कर्नाटक में हिजाब को लेकर पिछले 3 महीने से जारी विवाद में आज यानी 15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट अपना फैसला सुना दिया। हाईकोर्ट की तीन मेंबर वाली बेंच ने साफ कहा कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। यानी हाईकोर्ट ने स्कूल-कॉलेज में हिजाब पहनने की इजाजत देने से मना कर दिया। हाईकोर्ट ने कर्नाटक सरकार के 5 फरवरी को दिए आदेश को भी निरस्त करने से इनकार कर दिया, जिसमें स्कूल यूनिफॉर्म को जरूरी बताया गया था। इससे पहले बेंगलुरु आदि में धारा 144 लागू कर दी गई थी। संवेदनशील शहरों-कस्बों में कड़ी सुरक्षा बरती जा रही है। अकेले बेंगलुरु में 10000 पुलिस कर्मी ड्यूटी पर तैनात किए गए हैं। विवाद 27 दिसंबर, 2021 को उडुपी एक कॉलेज से शुरू हुआ था। हिजाब विवाद में 4 छात्राओं ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। यहां 16 मार्च 2022 से परीक्षाएं शुरू हो रही हैं। इसलिए हिजाब विवाद का हल निकलना बेहद जरूरी है। जानिए हिजाब विवाद से जुड़े 10 पॉइंट्स…

25 फरवरी को आदेश सुरक्षित रखा था
हिजाब विवाद मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने 25 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान विभिन्न याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित और न्यायमूर्ति जेएम खाजी की तीन न्यायाधीशों की पीठ शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता एसएस नागानंद ने तर्क दिया था कि 2004 से प्रदेश में यूनिफॉर्म लागू है, लेकिन 2021 से पहले किसी ने इस मामले में विरोध नहीं किया। 2021 के अंत में इस संगठन (CFI) ने छात्राओं और उनके अभिभावकों को हिजाब के लिए भड़काया। इसके बाद से आंदोलन शुरू हुआ।

27 दिसंबर, 2021 को शुरू हुआ था विवाद
विवाद की शुरुआत उडुपी गवर्नमेंट कॉलेज से 27 दिसंबर, 2021 को शुरू हुई थी, जब कुछ लड़कियों को हिजाब पहनकर क्लास आने से रोका गया था। यहां के प्रिंसिपल रुद्र गौड़ा के मुताबिक, 31 दिसंबर को अचानक कुछ छात्राओं ने हिजाब पहनकर क्लास में आने की इजाजत मांगी। अनुमति नहीं मिलने पर विरोध शुरू हो गया।

देशभर में फैलता गया विरोध
उडुपी के गवर्नमेंट गर्ल्स पीयू कॉलेज की छह छात्राओं ने आरोप लगाया था कि उन्हें हेडस्कार्फ़ पहनने पर जोर देने के लिए कक्षाओं से रोक दिया गया था। इस पर उडुपी और चिक्कमगलुरु में दक्षिणपंथी समूहों ने आपत्ति जताई थी। इस तरह यह विवाद देशभर में फैल गया। कर्नाटक हिजाब विवाद में बुर्का पहनकरअल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाने वाली मुस्कान खान पोस्टर गर्ल बन गई थीं। 19 वर्षीय मुस्कान कॉमर्स सेकेंड ईयर की छात्रा है।

सीएफआई पर पर आरोप
इस मामल में सीएफआई सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया समर्थित संगठन पर हिंसा फैलाने के आरोप लगे थे।सीएफआई 7 नवंबर 2009 को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के मार्गदर्शन में शुरू किया गया था। तमिलनाडु के मोहम्मद यूसुफ इसके पहले अध्यक्ष थे। दावा था कि यह संगठन साम्राज्यवाद और फासीवाद के खिलाफ संघर्ष करेगा, लेकिन इस पर धार्मिक कट्‌टरपंथ फैलाने के आरोप लगते रहे हैं। कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया ने एंटी सीएए जैसे प्रदर्शनों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।

बजरंग दल कार्यकर्ता की हत्या
हिजाब विवाद (Hijab Controversy) को लेकर कर्नाटक में बजरंग दल के 26 साल के कार्यकर्ता हर्षा की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में कर्नाटक सरकार के मंत्री मुस्लिम कट्टरपंथियों की साजिश बताते रहे।

सिखों तक पहुंच गया था विवाद
बेंगलुरु में सिख समुदाय से आने वाली 17 साल की अमृतधारी छात्रा को पगड़ी हटाने के लिए कहा गया। कॉलेज ने 10 फरवरी को कर्नाटक हाईकोर्ट की तरफ से जारी हुए अंतरिम आदेश का हवाला दिया। इस पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने कड़ी आपत्ति जताई है।

संविधान का जिक्र
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ताओं का कहना था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19 (1)) का इस्तेमाल करते हुए छात्राओं को हिजाब पहनने की अनुमति दी जानी चाहिए।

कुरान का जिक्र
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान अंतरात्मा की आजादी, आवश्यक धार्मिक अभ्यास से लेकर कुरान के सूरे और हदीस तक का जिक्र किया गया। कहा गया कि कुरान में हिजाब अनिवार्य है। साथ ही तर्क दिया गया कि भारत समेत 196 देशों में हिजाब को मान्यता मिली है, तो अब विवाद क्यों?

फैसला आने तक धार्मिक कपड़े पहनने पर लगाई थी रोक
जनवरी 2022 में कर्नाटक के उडुपी और मांड्या समेत कई जिलों में हिजाब को लेकर प्रदर्शन होने के बाद यह मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा था। कोर्ट ने फैसला आने तक क्लास में हिजाब या अन्य किसी भी तरह के धार्मिक परिधान पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह आदेश उन स्कूल-कॉलेजों के लिए था, जहां ड्रेस कोड तय है।

हिजाब विवाद पर कुछ बयान
नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई ने हिजाब विवाद पर तंज कसा था। उन्होंने आरोप लगाया था कि मुस्लिम छात्राओं को कर्नाटक में हिजाब पहनकर परिसरों और कक्षाओं में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। लड़कियों की शिक्षा की हिमायत करने वाली एक्टिविस्ट मलाला ने ट्वीट किया कि लड़कियों को उनके हिजाब में स्कूल जाने से मना करना भयावह है।

प्रियंका गांधी ने एक tweet करके इस मामले को भड़का दिया था। उन्होंने लिखा था-चाहे वह बिकिनी हो, घूंघट हो, जींस की जोड़ी हो या हिजाब; यह तय करना एक महिला का अधिकार है कि वह क्या पहनना चाहती है। यह अधिकार भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत है। महिलाओं को प्रताड़ित करना बंद करो। इसके बाद वे निशाने पर आ गई थीं।

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा था कि हिजाब पर जो विवाद पैदा किया गया है, वो बिल्कुल अनावश्यक है। इसके पीछे साजिश है। साजिश ये है कि भारत में जो नई नस्ल है, उसमें लड़कियां खासतौर से स्कूल-कॉलेज और यूनिवर्सिटी में बहुत अच्छा परफॉर्म कर रही हैं।

कंगना रनोट ने दिया था ये बयान-कंगना रनोट ने कहा थ कि हिजाब से कहीं ज्यादा जरूरी किताब है। स्कूल में न तो ‘जय माता दी’ का गमछा चल सकता है और न ही बुर्का। यूनिफॉर्म का सम्मान बेहद जरूरी है। इतना ही नहीं, कंगना ने ये भी कहा कि स्कूलों में किसी भी तरह के धार्मिक प्रतीकों को प्रमोट नहीं किया जाना चाहिए।

ख्यात लेखिका तस्लीमा नसरीन ने कहा था कि हिजाब महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट बनाता है। 21वीं सदी में 7वीं सदी के कानून क्यों लागू होने चाहिए। तस्लीमा ने देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का समर्थन किया।

पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती ने कहा कि मुझे डर है कि भाजपा हिजाब पर नहीं रुकेगी। वे मुसलमानों की अन्य निशानियों को भी मिटाना चाहते हैं। भारतीय मुसलमानों के लिए सिर्फ भारतीय होना ही काफी नहीं है, उन्हें भाजपाई होना जरूरी है।

सोनम कपूर ने हिजाब विवाद पर अपनी बात रखते हुए इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर की थी। इसमें उन्होंने हिजाब की तुलना सिखों द्वारा पहने जाने वाली पगड़ी से कर दी। सोनम ने सोशल मीडिया पर एक पगड़ी पहने युवक और हिजाब पहनी महिला की तस्वीर शेयर करते हुए पूछा कि पगड़ी पहनना च्वॉइस हो सकता है लेकिन हिजाब नहीं। आखिर क्यों?

एक्ट्रेस जायरा ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट करके कहा था कि आप मुस्लिम औरतों को उन चीजों को अपनाने पर मजबूर कर रहे हैं, जिनसे आपका एजेंडा चलता है और फिर उनकी आलोचना करते हैं कि वो आपके बनाए गए नियमों से बंधी हुई हैं।

 

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