कैसा है और क्यों बना इस देश में ‘मर्ज़ी से मौत’ चुन सकने का कानून?

एजेंसी। न्यूज़ीलैंड की प्रधामंत्री जैसिंडा आर्डर्न ने खुलासा किया कि पिछले हफ्ते उन्होंने दो मुद्दों पर हुए जनमत संग्रह में ‘हां’ के पक्ष के वोट किया. इनमें से एक तो भांग और गांजे (Cannabis) को कानूनी व नियंत्रित किए जाने संबंधी कानून से जुड़ा था और दूसरा जनमत संग्रह (Referendum) यह जानने के लिए किया गया कि क्या न्यूज़ीलैंड में ‘मौत चुनने के अधिकार (Assisted Dying Act) संबंधी एक्ट’ को लागू किया जाना चाहिए. बताया जा रहा है कि वोटरों में से ज़्यादातर ने एंड ऑफ लाइफ चॉइट एक्ट 2019 के पक्ष में वोट किया है।

इस जनमत संग्रह के अंतिम नतीजे आगामी 6 नवंबर तक आएंगे, लेकिन उसके पहले ही यह एक्ट सुर्खियों में आ गया है। विपक्ष और कुछ संगठन इसके विरोध में हैं और उनका दावा कि इसमें मौत चुनने के क्राइटेरिया ठीक तरह से परिभाषित नहीं किए गए हैं. आइए जानें कि यह एक्ट क्या है और इस पर लगे आरोप कितने जायज़ हैं।

कहां कानूनी है इच्छामृत्यु?
न्यूज़ीलैंड के कानून के बारे में चर्चा से पहले आपको बताते हैं कि किन देशों में यह पहले से ही कानूनी है। भारत में सिर्फ पैसिव यूथेनेशिया कानूनी है, एक्टिव नहीं। मार्च 2018 की स्थिति के मुताबिक एक्टिव यूथेनेशिया नीदलैंड्स, बेल्जियम, कोलंबिया, लग्ज़ेमबर्ग, ​पश्चिम ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में लीगल है. असिस्टेड सुसाइड स्विटज़रलैंड, जर्मनी और कुछ अमेरिकी राज्यों में वैधानिक है।

न्यूज़ीलैंड का End of Life Choice Act क्या है?
इस एक्ट के तहत कुछ खास बीमारियों से ग्रस्त लोगों को य​ह अधिकार दिया जाएगा कि वो मेडिकल साइंस की मदद से अपनी ज़िंदगी को खत्म कर सकें। इसके लिए एक पूरा कानूनी फ्रेमवर्क तैयार किया गया है। हालांकि यूथेनेशिया फ्री न्यूज़ीलैंड जैसे सरकार विरोधी संगठन दावा कर रहे हैं कि इस कानून में यह अधिकार किसे मिलेगा और किसे नहीं, इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।

विरोधियों का दावा है कि इस कानून में 18 साल की उम्र लिमिट नहीं है और रोग निदान संबंधी 6 महीने के समय को लेकर विवेक पर बात छोड़ दी गई है। यूके जैसे कुछ देशों में यूथेनेशिया या मेडिकल मदद से आत्महत्या गैर कानूनी है, लेकिन खुदकुशी की कोशिश करना गैर कानूनी नहीं है! अब न्यूज़ीलैंड में यूथेनेशिया के लिए जो प्रावधान किए गए हैं, उन्हें जानना चाहिए।

कौन चुन सकता है मौत?
‘असिस्टेड डेथ’ शब्द भी यूथेनेशिया के लिए इस्तेमाल हो रहा है और इस अधिकार इस्तेमाल करने के लिए जो प्रावधान बताए गए हैं, उनके मुताबिक उम्र कम से कम 18 साल होना चाहिए। इस अधिकार का इस्तेमाल करने वाले को न्यूज़ीलैंड का स्थायी निवासी होना चाहिए, शारीरिक स्थिति में उल्लेखनीय गिरावट होनी चाहिए, जो लाइलाज स्थिति में पहुंच चुकी हो. यह भी प्रावधान है कि सभी क्राइटेरिया पूरे करने पर ही इजाज़त दी जाएगी।

कौन नहीं चुन सकेगा मौत?
इस अधिकार का इस्तेमाल वो लोग नहीं कर सकेंगे जो किसी मानसिक डिसॉर्डर या रोग से जूझ रहे हों, किसी शारीरिक अक्षमता के शिकार हों या फिर जिनकी उम्र ज़्यादा हो। इसके साथ ही, यह भी स्पष्ट प्रावधान है कि इलाज के दौरान किसी व्यक्ति को कोई स्वास्थ्य कर्मी यूथे​नेशिया के विकल्प के लिए प्रेरित नहीं करेगा, न ही इस विकल्प की सलाह देगा।

किस तरह मिल सकेगी मौत?
अगर कोई व्यक्ति मेडिकल साइंस की मदद से मौत का विकल्प चुनता है, तो उसे किस तरह मौत दी जाएगी, इस बारे में चार तरीके बताए गए हैं। मुंह से ज़हर खाने, नसों से ज़हर खिलाने, किसी ट्यूब से या फिर इंजेक्शन के ​ज़रिये व्यक्ति को मौत दी जा सकेगी। इस अधिकार का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को आखिर समय तक यूथेनेशिया से मुकरने या फिर इसका समय टाल देने का भी अधिकार होगा।

इस एक्ट के पीछे है कहानी
न्यूज़ीलैंड बेस्ड वकील लेक्रेशिया सीलेस को 2011 में ब्रेन कैंसर हुआ था। जब रोग लाइलाज हो गया, तब सीलेस ने मेडिकल की मदद से मौत चाही थी. सीलेस के पति मैट विकर्स ने अपने ब्लॉग में सीलेस की इच्छा और जीने की पीड़ा के बारे में लिखा था। 2015 में, बिल ऑफ राइट्स एक्ट 1962 के तहत हाई कोर्ट में परिवाद दायर कर मौत की इजाज़त मांगी थी और कहा था कि वो दर्दनाक, क्रूर ढंग से पल पल नहीं मरना चाहती थीं।

5 जून 2015 को सीलेस की मौत हुई और तब उनके केस के फैसले को सार्वजनिक किया गया, जिसमें उन्हें इच्छामृत्यु के अधिकार से इनकार कर दिया गया था। हालांकि जज ने सीलेस की इच्छा को लेकर समर्थन जताया, लेकिन कानूनी तौर पर मजबूर होने की बात कही थी। यहां से लोगों के बीच इस बारे में चर्चा शुरू हुई और फिर राजनीतिक स्तर पर इस कानून की कवायद।

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