मथुरा। रमजान का महीना मुस्लिम समुदाय के लिए बहुत खास होता है क्योंकि इसी महीने में ‘लाइलत-उल कदर’ की खूबसूरत रात में, प्रोफेट मोहम्मद को क़ुरान से परिचित करवाया गया था। लोगों का मानना है कि इस महीने में जो भी दुआ की जाती है, अल्लाह उस पर अमल जरूर करता। क्योंकि नर्क के दरवाजे बंद हो जाते हैं और जन्नत के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं।रमादान के महीने में मुस्लिम परिवार सुबह सूरज निकलने से पहले खाना खाते है जिसे ‘सहरी’ बोलते हैं और फर सूरज ढलने के बाद खाते है जिसे इफ्तार कहते हैं। इफ्तार के लिए पहले 3 खजूर खाए जाते है। कहा जाता है की प्रोफेट मोहम्मद ने भी अपना रोजा 3 खजूर और पानी पीकर ही तोड़ा था। तभी से खजूर को रमजान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया गया।
इफ्तार के खाने में लज़ीज़ व्यंजन परोसे जाते है जिसमें की बिरयानी, शरबत, कबाब, मिठाई और कई अन्य जायकेदार व्यंजन भी होते हैं लेकिन बिना खजूर की मौजूदगी के ये सब फीका है। धर्मिक मान्यताओं के लावा यदि खजूर से रोजा तोड़ने की प्रथा को विज्ञान के नज़रिए से देखा जाए तो यह बहुत लाभकारी माना जाता है। खजूर खाने से शरीर में उर्जा का संचार बहुत तेजी से होता है और फिर दिन भर की थकान दूर हो जाती है।दिन भर का रोजा रखने के बाद शरीर में काफी थकावट आ जाती है, सर में दर्द, ख़ून की कमी, सुस्ती जैसे परेशानियां हो जाती हैं। ऐसे में खजूर खा का रोजा तोड़ने से शरीर में खून का बहाव बढ़ जाता है और खजूर में प्राकृतिक सुगर की मात्रा ज्यादा होने से शरीर को तुरंत ताकत मिलती है। इसमें कार्बोहाइड्रेट और फाइबर जैसे प्राकृतिक तत्व मिलते हैं जोकि पेट के लिए फायदेमंद होते हैं और खजूर हार्ट के लिए भी सेहतमंद होता है।
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