आप भी लिव-इन रिलेशनशिप में हो तो, आप भी जानिए ​पुलिस की राय

जयपुर। ‘live-in relationship’ नाम तो सुना ही होगा?, जिसे लेकर आज भी लोगों की अपनी अलग-अलग परिभाषा है। दुनिया भर के लोगों के लिए आज live-in relationship एक जिंदगी की पीढ़ी है, जिसे हर कोई चढ़ कर जाना चाहता है। वहीं दूसरी तरफ पुलिस है, जो इस रिश्ते को लेकर अब भी असमंजस की स्थिति में है। अब इसे लेकर राजस्थान पुलिस चाहती है कि लिव इन रिलेशनशिप के लिए स्पष्ट नियम बनाए जाएं। इनका रजिस्ट्रेशन अनिवार्य हो और इसकी एक निश्चित परिभाषा निर्धारित कर संबंधित पक्षों के अधिकार व दायित्व तय किए जाएं। बता दें कि इसे लेकर राजस्थान पुलिस ने इस बारे में अपनी ओर से विस्तृत सुझाव राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग को भी भेजे हैं।

 

दरअसल, राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ने लिव इन रिलेशनशिप के बारे में सरकार, पुलिस और आम जनता से सुझाव आमंत्रित किए हैं। इस तरह का प्रयास करने वाला यह देश का पहला आयोग है। आयोग स्वप्रेरणा से इस मामले में सुनवाई कर रहा है। सुनवाई अंतिम चरण में है और जल्द ही कोई आदेश आ सकता है। इस बारे में आयोग के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश टाटिया का कहना है कि हमारे पास लिव इन रिलेशनशिप में एक पक्ष द्वारा रिलेशनशिप खत्म करने से दूसरे पक्ष के प्रभावित होने के कई मामले आते हैं।

सरकार ने महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के बारे में जो कानून पारित किया है, उसमें लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को भी अधिकार दिए गए हैं, लेकिन लिव इन रिलेशनशिप के लिए आयु, व्यक्तियों का शादीशुदा होना या नहीं होना या लिव इन रिलेशनशिप को खत्म करने के कारण या प्रक्रिया आदि का कोई उल्लेख इस कानून में नहीं है।

यही कारण है कि ऐसे मामलों में मानवाधिकारों की दृष्टि से कोई भी निर्णय करना आसान नहीं होता। इसके अलावा इस तरह के रिश्ते हमारे सामाजिक जीवन को किस तरह प्रभावित करते हैं, इन रिश्तों से जो बच्चे हो रहे हैं, उनके सुरक्षित व गरिमामय जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, यह भी विचारणीय विषय है। इसी को देखते हुए हमने सरकार, पुलिस और आम जनता से सुझाव मांगे थे।

उन्होंने बताया कि राजस्थान पुलिस ने इस मामले में काफी अध्ययन के साथ अच्छे सुझाव दिए हैं। इसके अलावा भी हमारे पास कई सुझाव आए हैं। हम इनका अध्ययन कर रहे हैं, जल्द ही इस पर आगे सुनवाई करेंगे।

पुलिस द्वारा दिए गए सुझाव

  • लिव इन रिलेशनशिप की परिभाषा निश्चित की जानी चाहिए और पत्नी, बच्चों व पति के अधिकार और दायित्व तय किए जाने चाहिए।
  •  ऐसे मामलों में धोखाधड़ी, भरण-पोषण भत्ता, पैतृक संपत्ति में हिस्सा, पैतृक मान्यता आदि के बारे में कानून बनाना चाहिए।
  •  महिलाओं के साथ हिंसा कानून में लिव इन रिलेशनशिप में रह रही महिलाओं को अधिकार दिए गए हैं, लेकिन ऐसे रिश्तों के किसी भी विवाद में तथ्यों को ध्यान में रखकर ही निर्णय किया जाना चाहिए।
  •  ऐसे रिश्तों से पैदा हुए बच्चों को पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलना चाहिए या नहीं, यह भी परिस्थितियों व तथ्यों के आधार पर निर्णित किया जाए।
  •  ऐसे रिश्तों में रहने वाला कोई भी एक पक्ष रिश्ता छोड़कर किसी अन्य के साथ शादी कर रहा है तो प्रभावित पक्ष को पुलिस के जरिए यह शादी रूकवाने का अधिकार होना चाहिए।
  •  यदि कोई पक्ष बिना सहमति के रिश्ता छोड़ रहा हो तो इसकी कोर्ट से डिक्री लेना जरूरी होना चाहिए।
  •  यदि महिला की आयु 15 वर्ष से अधिक है तो दुष्कर्म से जुड़ी धारा में ऐसे रिश्तों में बनाए गए शारीरिक संबंध को दुष्कर्म नहीं माना जाना चाहिए।
  •  लिव इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया जाना चाहिए और इसे निरस्त कराने की प्रक्रिया भी निर्धारित होनी चाहिए।

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