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नई दिल्ली। चुनावों के दौरान ईवीएम यानि इलैक्ट्रिक वोटिंग मशीनें लगातार चर्चा में रहती हैं. मसलन वोटिंग से ठीक पहले किसी ने दावा किया है कि वो बड़े पैमाने पर इन मशीनों को हैक कर परिणामों को बदल सकता है. ये भी जानना चाहिए कि ईवीएम में वोटिंग डाटा कितने समय तक सुरक्षित रह सकता है. क्या इनसे छेड़छाड़ संभव है।
ईवीएम मशीनों से पहले हमारे देश में बैलेट बॉक्स से चुनाव होते हैं, उसमें वोटर कागज पर ठप्पा लगाकर उम्मीदवारों को वोट करते थे. फिर उसके बाद ईवीएम आईं. ये जानना भी दिलचस्प है कि चुनाव के बाद कहां चली जाती हैं ईवीएम.
ईवीएम इस्तेमाल का इतिहास पुराना है. 1974 में अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थानीय चुनावों में हुआ. इसके बाद एक बेहतर इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का प्रयोग इलुनॉयस, शिकागो में हुआ. 1975 में अमेरिकी सरकार ने इन मशीनों को लेकर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक अधिकारी नियुक्त किया. भारत में केरल के एक उपचुनाव में भारत ने पहली 1982 में ऐसी मशीन का इस्तेमाल किया लेकिन कोर्ट ने इन मशीनों के इस्तेमाल को खारिज कर दिया.
1991 में बेल्जियम पहला देश था, जहां इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल चुनाव में हुआ. लेकिन सही मायनों में वहां भी इसका पूरा इस्तेमाल 1999 से शुरू हुआ. भारत में 1982 में पहली बार इस्तेमाल के बाद 2003 के चुनावों में इसका व्यापक प्रयोग किया गया.
80 के दशक में भारत सरकार के सुझाव पर देश के दो सार्वजनिक उपक्रमों भारत इलैक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलैक्ट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने ई वोटिंग मशीन पर काम करना शुरू किया. इस मशीन को डेवलप करने के बाद उन्होंने इसे भारतीय चुनाव आयोग से इस बारे में राय मांगी. चुनाव आयोग की कमेटी अपने कुछ संशोधनों और डिजाइन में कुछ फेरबदल के सुझाव के साथ इस पर मुहर लगा दी.
भारत में ईवीएम भारत सरकार के दो नवरत्न उपक्रम भारत इलैक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलैक्ट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा बनाई जाती हैं
देश में अब भी ईवीएम भारत के इन्हीं दो नवरत्न उपक्रमों भारत इलैक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलैक्ट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा बनाई जाती है. इन्हें कुछ देशों को भी निर्यात किया जाता है. बैलेट बॉक्स की तुलना में इन मशीनों से चुनाव सस्ता पड़ता है.
ईवीएम को लेकर बहुत से सवाल लगातार पूछे जाते रहे हैं. हम यहां उन्हीं सवालों के जरिए उसके हर पहलू को स्पष्ट करने की कोशिश करेंगे.
– क्या ईवीएम बगैर बिजली के चल सकती हैं?
हां, इनके लिए किसी तरह के बिजली की जरूरत नहीं होती, ये इनके साथ जोड़ी गईं बैटरी से चलती हैं.
– एक ईवीएम में कितने वोट रिकॉर्ड किए जा सकते हैं?
भारतीय चुनाव आयोग जिन ईवीएम का इस्तेमाल करता है, वो मशीनें 2000 वोट तक रिकॉर्ड कर सकती हैं
– इनमें वोट कब तक इनकी मेमोरी में रिकार्ड रहता है?
वोटों का डाटा ईवीएम की कंट्रोल यूनिट की मेमोरी में जीवन पर्यंत तक रिकार्ड रह सकता है, उसके मेमोरी डाटा को आंच भी नहीं आती.
भारत में बनी ईवीएम कई देशों को निर्यात की जाती हैं
एक ईवीएम की उम्र कितनी होती है?
आमतौर पर 16-17 या इससे ज्यादा
एक ईवीएम में कितने उम्मीदवारों के नाम दर्ज हो सकते हैं.?
पहले एम2 ईवीएम आती थीं, उसकी एक यूनिट में 16 उम्मीदवारों को चुनने के बटन होते थे, ज्यादा उम्मीदवार होने पर अलग यूनिट लगानी होती थी. अब इस्तेमाल की जाने वाली एम3 मशीनों में ज्यादा यूनिट्स जोड़ी जा सकती हैं.
कितनी होती है इन मशीनों की कीमत?
एम2 ईवीएम की कीमत 8670 रुपए होती है जबकि एम3 ईवीएम 17000 रुपए का.
क्या इनसे छेड़खानी संभव है, क्या इन पर फटाफट बटन दबाए जा सकते हैं ?
– नहीं, ऐसा संभव नहीं है. हर एक वोट के बाद कंट्रोल यूनिट को फिर अगले वोट के लिए तैयार करना होता है. लिहाजा इन पर फटाफटा बटन दबाकर वोट करना मुश्किल है.
ईवीएम में मेमोरी डाटा को बहुत लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है
क्या ये मशीनें हैक की जा सकती हैं?
चूंकि ये मशीनें किसी इंटरनेट नेटवर्क से नहीं जुड़ी होतीं लिहाजा इन्हें हैक करना संभव नहीं. हालांकि ये दावा भी किया गया कि इन मशीनों की अपनी फ्रीक्वेंसी होती हैं, जिसके जरिए इन्हें हैक किया जा सकता है, लेकिन इस तरह के दावे सही नहीं पाए गए.
अब ईवीएम को लेकर कितने मुकदमे हो चुके हैं?
ईवीएम में टैंपरिंग को लेकर अब तक कई मुकदमे कई राज्यों के हाईकोर्ट में हो चुके हैं. यहां तक कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा लेकिन सर्वोच्च अदालत ने इसे खारिज कर दिया.
आमतौर पर ईवीएम के रिजल्ट को कब तक सुरक्षित रखा जाता है?
वोटिंग की काउंटिंग के बाद ईवीएम को स्ट्रांग रूम में बंद करके सुरक्षित रख दिया जाता है. इसके डाटा को तब तक डिलीट नहीं किया जाता, जब तक कि इलैक्शन पीटिशन का समय होता है.
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