नई दिल्ली। कंपटीशन के दौर में हर मां-बाप चाहते हैं कि उनका बच्चा अव्वल आए और स्कूल में बेस्ट परफॉर्मेंस दें। इसके लिए वह स्कूल की पढ़ाई के साथ बचपन से ही उन्हें एक्स्ट्रा ट्यूशन लगा देते हैं। उन्हें लगता है कि इससे उनके बच्चे का दिमाग तेजी से विकसित होगा और वह क्लास में टॉप करने लगेगा। लेकिन कई बार इस एक्स्ट्रा प्रेशर के चलते बच्चों का दिमाग पढ़ाई के बोझ तले और कमजोर हो जाता है। ऐसे में पेरेंट्स का सवाल होता है कि किस उम्र में बच्चों को ट्यूशन लगाना चाहिए और अगर घर में उन्हें पढ़ाएं तो कैसे पढ़ाना चाहिए? तो चलिए आपको बताते हैं कि छोटे बच्चों को किस तरह से आपको पढ़ाना चाहिए…
कई माता-पिता अपने 3-4 साल के छोटे बच्चे के लिए भी ट्यूशन फिक्स कर देते है और उनके लिए महंगी-महंगी होम ट्यूशन या ऑनलाइन क्लासेस लगा देते हैं। लेकिन छोटे से बच्चे को 6-7 घंटे स्कूल के बाद ट्यूशन लगाना उनके समग्र विकास, आत्मविश्वास और विकास में असंतुलन पैदा कर सकता है, क्योंकि छोटे बच्चों को पढ़ाई के साथ फिजिकल और अन्य चीजें करना भी जरूरी होता है। बच्चों को कभी भी प्राइमरी क्लासेस में ट्यूशन की जरूरत नहीं होती है। (कुछ स्पेशल केस को छोड़ दिया जाए तो) आप स्कूल की पढ़ाई और खुद बच्चे को 1 घंटे घर पर पढ़ाएं।
हर टीचर के पढ़ाने का तरीका अलग होता है। ऐसे में छोटे बच्चे को स्कूल और ट्यूशन साथ में पढ़ाने से उनमें कन्फ्यूजन क्रिएट हो सकता है। ऐसे में कोशिश करें कि स्कूल में जिस तरह से या जिस पैटर्न से पढ़ाई करवाई जा रही है आप बच्चों को उसी तरह से समझाने की कोशिश करें।
छोटी उम्र में बच्चों को ट्यूशन लगाने का एक नुकसान ये भी है कि वह अतिरिक्त तनाव और चिंता से घिर जाते हैं, क्योंकि उन्हें स्कूल के साथ-साथ ट्यूशन का वर्क भी करना होता है और शुरुआत से ही उनके दिमाग में यह बात बैठी रहती है कि हमें सिर्फ पढ़ाई करना है जिसके चलते कई बार उनका मन पढ़ाई से कम होने लगता है।
आजकल स्कूल में वैसे ही बच्चे 7-8 घंटे बिताकर आते हैं। उसके बाद घर आकर उन्हें रेस्ट करना होता है। साथ ही स्कूल का रिवीजन भी करना होता है और साथ ही साथ फिजिकल एक्टिविटी भी उनके लिए बहुत ज्यादा जरूरी होती है। ऐसे में एक-दो घंटे अतिरिक्त ट्यूशन के लिए निकालना उनके लिए बहुत मुश्किल होता है। इससे उनका टाइम भी खराब होता है।
ट्यूशन और स्कूल की पढ़ाई के बोझ तले बच्चों का बचपन कहना कहीं खो जाता है और वह शुरुआत सही सिर्फ पढ़ाई, पढ़ाई, पढ़ाई के बोझ तले दब जाते हैं। ऐसे में बच्चों को हमेशा खेल-खेल में पढ़ाने की कोशिश करें, ना कि उनकी ऊपर स्कूल, ट्यूशन और एक्स्ट्रा क्लास को बोझ डालें।
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