कानपुर देहात। कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र में 3 जुलाई की रात जो कुछ हुआ उसने पुलिस महकमे की चूलें हिलाकर रख दी। गैंगस्टर विकास दुबे ने अपने गुर्गों के साथ मिलकर उसे गिरफ्तार करने पहुंची पुलिस की टीम पर अंधाधुंध फायरिंग कर एक सीओ समेत आठ पुलिसवालों को मौत के घाट उतार दिया। इस घटना से पहले विकास दुबे को शायद ही लोग जानते थे। सूबे के अन्य गैंगस्टर की तरह उसका साम्राज्य पूरे प्रदेश में नहीं, बल्कि कानपुर और कानपुर देहात तक ही सिमित था। खासकर कानपुर देहात में उसका सिक्का चलता था। इतना ही नहीं गांव वालों के मुताबिक, इलाके के लोग भी न्याय के लिए कानून से ज्यादा विकास पर भरोसा करते थे।
1994 में पिता से हुई बदसलूकी के बाद उतरा जुर्म की दुनिया में
जुर्म की दुनिया में कदम रखने से पहले कुख्यात अपराधी विकास भी एक सामान्य युवक था. बहन के पति की मौत के बाद वह उसी के साथ रहने लगा था। हालांकि कुछ सालों बाद विकास विकरू गांव पहुंचा, जहां पिता रामकुमार और मां के साथ रहने लगा। यह दौर था 1994 का जब दलित समाज के कुछ लोगों ने विकास के पिता राजकुमार से बदसलूकी करने के साथ उनकी पिटाई कर दी। ऐसा आरोप लगाया कि समाज के लोगों ने विकास के पिता को बुरी तरह मारा था। इस घटना की जानकारी मिलते ही विकास अपने पिता का बदला लेने के लिए घर में रखे असलहे को उठाकर उस वर्ग के लोगों के पास पहुंच गया। इस विवाद के दौरान विकास के साथ उसके कई दोस्त भी मौजूद थे। यहीं से विकास की एंट्री अपराध की दुनिया में हो गई।
विकास के पैदल निकलते ही सिर झुकाकर खड़े हो जाते थे लोग
मुंह बोली बहन ने बताया कि भैया जब बाबूजी को उस हाल में देखें तो वह खुद को रोक नहीं पाए। इसके बाद गांव में लोग विकास दुबे से घबराने और डरने लगे। जब विकास अपने साथियों के साथ पैदल निकलता था, तब भी लोग या तो सिर झुकाए खड़े रहते या फिर उसके पैर छूने के लिए दौड़ पड़ते. बहन के मुताबिक, गांव में विकास का सम्मान इसलिए भी था क्योंकि वह गरीब लड़कियों की शादी से लेकर अनाज तक की मदद करता था।
वहीं विकास के पिता राजकुमार ने बताया कि उन्हें नहीं पता था कि एक मामूली से झगड़े के बाद बेटा इतना आगे चला जाएगा. राजकुमार ने कहा ‘उसे रोकने का प्रयास तो किया था, लेकिन जब हाथ से निकल गया बेटा तो क्या करें? औलाद कितनी बुरी क्यों ना हो एक पिता के लिए वह सब कुछ होती है.’
छोटे से गांव में वह खुद ही कानून था
कुख्यात विकास दुबे की कानपुर देहात के एक छोटे से गांव में एक अलग ही दुनिया थी. उसके अपराध का साम्राज्य यहीं फला-फूला. कानपुर जिले के चौबेपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत पड़ने वाला एक मामूली सा छोटा गांव बिकरू की आबादी 4 से 5 हजार होगी. इस गांव में रहने वाली 80 वर्ष की श्यामा देवी ने बताया कि 1995 के बाद इस गांव में बने विकास दुबे के आलीशान घर के बाहर मैदान में एक अदालत लगती थी, जिसमें जज कुख्यात अपराधी विकास दुबे बनता था. इस अदालत की सुनवाई सुबह 6:00 बजे शुरू होती थी, जहां एक कुर्सी में कुख्यात अपराधी बैठता था. बगल में दो बंदूकधारी और लट्ठ लेकर एक दर्जन लोग खड़े रहते थे।
विकास की गाड़ी के सामने कोई आया तो नहीं लगता था ब्रेक
विकास दुबे की अदालत में आने वाले पीड़ितों की मानें तो विकास उनकी मदद तो करता था लेकिन कई ऐसे आरोप भी हैं जहां विकास ने मदद के नाम पर लोगों की जमीने भी हड़प ली थी. गांव में कुछ परिवार तो विकास का नाम सुनकर उसके पैरोकार बन रहे हैं, लेकिन ज्यादातर परिवारों में उसका खौफ देखने को मिला. न्यूज18 ने जब उनसे बात करने की कोशिश की तो वे विकास का नाम सुनते ही वहां से कन्नी काटकर निकल जाते हैं। यह हाल बुजुर्गों का नहीं बल्कि घर की बहुओं का भी है। गांव की 32 वर्षीय सुमन ने बताया कि शादी के बाद से वह गांव में रह रही है। उसके दो बच्चे भी हैं और विकास दुबे उसके नजरिए से इतना बड़ा गुंडा है कि जैसे ही विकास की गाड़ी आती है तो गांव के लोग अपने घरों में दुबक जाते हैं। विकास की दहशत की वजह है कि अगर गलती से भी उसकी दो गाड़ियों के काफिले के सामने कोई आ गया तो उसे बिना ब्रेक लगाए टक्कर मार दी जाएगी. क्योंकि साहब वह गुंडा है। वह बदमाश है और पुलिस भी उसे पकड़ कर छोड़ देती है। हम तो गरीब हैं गांव की मिट्टी में पैदा हुए हैं। हम मर भी जाएं तो किसी को क्या फर्क पड़ता है।
विकास के खौफ से 18 परिवारों ने किया था पलायन
विकास दुबे की गुंडई और दबंगई का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगा लीजिए कि इसी गांव से 18 परिवारों ने मजबूरन पलायन कर दिया। 80 वर्ष की उम्र के शिवराम बताते हैं कि विकास दुबे की मौत के बाद ही इस गांव में लोग सुखद जीवन जी पाएंगे। उन्होंने बताया कि 10 साल पहले विकास दुबे की दहशत और दबंगई के चलते 18 परिवारों ने जिले से पलायन कर दिया था। पलायन के 3 महीने बाद उसके मकान पर भी आरोप विकास ने अपना कब्जा जमा लिया। विकास दुबे गरीबों की शादी में कुछ मदद कर उनके घरों पर कब्ज़ा करना शुरू कर देता था. दबंगई और असलहे के दम पर वह लोग ही जमीन अपने नाम करा लेता. विकास की दहशत इस कदर थी कि अगर कोई विकास को मौके पर पैसा नहीं दे पाता तो वह अपने गुर्गों से लेकर पुलिस तक से उनका उत्पीड़न करवाता था। बुजुर्ग बताते हैं कि एक किसान की जमीन पर विकास कब्जा करने गया. जब किसान ने इसका विरोध किया तो खेत में उसकी बेरहमी से पिटाई की और फिर उसकी बेटी को घर से उठा लिया था। आरोप यह भी है कि पीड़ित कई बार पुलिस और चौकी के चक्कर काटता रहा, लेकिन किसी ने नहीं सुना रही। आखिरकार अपनी इज्जत और अपनी जान को बचाते हुए वह बुजुर्ग व्यक्ति गांव से पलायन कर गया।
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