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कहा जाता है कि यह चार वेदों के अलावा चार पुरुषार्थ जिनमें धर्म अर्थ काम मोक्ष शामिल है का प्रतीक हैं। सिर्फ हिंदू धर्म ही क्यों स्वास्तिक का उपयोग आपको बौद्ध जैन धर्म और हड़प्पा सभ्यता तक में भी देखने को मिलेगा।
नई दिल्ली: हिंदू धर्म में स्वास्तिक का अपना ही महत्व है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें ‘सु’ का अर्थ है शुभ और ‘अस्ति’ से तात्पर्य है होना। अर्थात स्वास्तिक का मौलिक अर्थ है ‘शुभ हो’ यानी कल्याण हो’। इसीलिए किसी भी मांगलिक या शुभ कार्य के अवसर पर स्वास्तिक बनाने की परंपरा सदियों से हिंदू धर्म में चली आ रही है। कहा जाता है कि स्वास्तिक बनाने के दौरान उसकी चार भुजाएं समानांतर रहती हैं और इन चारों भुजाओं का बड़ा धार्मिक महत्व है।
स्वस्तिक का चिन्ह भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में देखने को मिल जायेगा। इसके अलावा जैन धर्म की बात करें, तो जैन धर्म में यह सातवां जिन का प्रतीक है, जिसे तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं। इसी प्रकार कहा जाता है कि हड़प्पा सभ्यता की खुदाई की गई तो वहां से भी स्वास्तिक का चिन्ह निकला था।
- मुख्य द्वार पर स्वास्तिक हमेशा सिंदूर से ही बनाए। सिंदूर से बना स्वास्तिक घर में सुख और समृद्धि का मार्ग खोलता है।
- जब भी मुख्य द्वार पर स्वास्तिक बनाएं तो इस बात का ध्यान रखें कि दरवाजा धूल मिट्टी से गंदा ना हो।
- मुख्य द्वार पर स्वास्तिक बनाने के बाद इस बात का ध्यान रखें कि वहां आसपास जूते चप्पलों का ढेर भी ना लगने दें।
- स्वास्तिक बनाते समय उसक आकार भी ध्यान रखना जरूरी होता है।
- माना जाता है कि वास्तु दोषों को कम करने या मिटाने के लिए नौ उंगली लंबा और चौड़ा स्वास्तिक बनाना अच्छा होता है।
- अगर घर के सामने कोई पेड़ या खंभा नजर आता है तो ये नकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होता है. उसके होने वाले अशुभ प्रभावों को रोकने के लिए मुख्य द्वार पर रोज स्वास्तिक बनाना शुभ मानते हैं।
- मुख्य द्वार के अलावा आप घर के आंगन के बीचोंबीच भी स्वास्तिक बना सकते हैं। माना जाता है कि इससे आंगन में पितृ निवास करते हैं और आशीष बनाकर रखते हैं।
- मुख्य द्वार पर बने स्वास्तिक के आसपास पीपल, आम या अशोक के पत्तों की माला बांधे. ऐसा करना बहुत ही शुभ होता है।
स्वास्तिक से दूर करें ‘वास्तु दोष’
अगर आपको लगता है कि आपके घर में वास्तु दोष आ गया है, तो वास्तुशास्त्री स्वास्तिक के चिन्ह से इसके दोष निवारण की विधि बताते हैं। कहा जाता है कि स्वस्तिक की चारों भुजाएं चारों दिशाओं की प्रतीक होती हैं और इसीलिए वास्तु का चिन्ह बना कर चारों दिशाओं को एक समान शुद्ध किया जा सकता है।
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