जानिए क्या हैं आपके स्वास्थ्य अधिकार! कोई अस्पताल आपको भर्ती न करे तो…!

नई दिल्ली। हाल में गर्भवती महिला को भर्ती करने से नोएडा के 8 अस्पतालों ने मना किया और उसकी मौत की खबर के बाद कई तरह की चर्चाएं हैं। कोविड—19 के दौर में देश भर से लगातार ऐसी खबरें आती रहीं कि संक्रमितों और गैर संक्रमित मरीज़ों को इलाज के लिए मना किया गया. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारतीय स्वास्थ्य संबंधी अधिकारों से वाकिफ हैं? क्या आपको पता है कि ऐसी सूरत में कैसे कानूनी लड़ाई लड़ सकते हैं?

health related rights, Noida pregnant woman case, right to health, india health rights, Noida hospitals, fundamental rights, स्वास्थ्य सुरक्षा अधिकार, संवैधानिक अधिकार, स्वास्थ्य संबंधी कानूनी अधिकार, भारतीय स्वास्थ्य कानून

मरीज़ों के अधिकारों के चार्टर में 17 अधिकार
साल 2018 में पहली बार देश में मरीज़ों के अधिकारों के संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक विस्तृत चार्टर जारी किया था, जिसमें साफ तौर पर 17 अधिकार शुमार हैं।

1. स्वास्थ्य संबंधी हर सूचना आप डॉक्टर या अस्पताल से ले सकते हैं।
2. अपने स्वास्थ्य व इलाज संबंधी रिकॉर्ड्स और रिपोर्ट्स पा सकते हैं।
3. इमरजेंसी हालत में पूरा या एडवांस भुगतान किए बगैर आपको इलाज से मना ​नहीं किया जा सकता।
4. आपकी सेहत के बारे में अस्पताल/डॉक्टर को गोपनीयता/निजता रखना होगी व अच्छा सलूक करना होगा।
5. आपके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता।
6. मानकों के हिसाब से इलाज में क्वालिटी और सुरक्षा आपको मिलना चाहिए।
7. आप इलाज के अन्य उपलब्ध विकल्प चुन सकते हैं।
8. आप सेकंड ओपिनियन लेने के लिए स्वतंत्र हैं।
9. इलाज की दरों और सुविधाओं को लेकर पारदर्शिता अस्पतालों/डॉक्टरों को बरतना चाहिए।
10. आप दवाएं या टेस्ट के लिए अपने हिसाब से स्टोर या संस्था का चयन कर सकते हैं।
11. गंभीर रोगों के इलाज से पहले आपको उसके खतरों, प्रक्रियाओं व अंजाम बताकर मरीज़ की मंज़ूरी ज़रूरी।
12. व्यावसायिक हितों से परे ठीक से रेफर या ट्रांसफर किए जाना चाहिए।
13. बायोमेडिकल या स्वास्थ्य शोधों में शामिल लोगों से सुरक्षा आपको मिलना चाहिए।
14. क्लीनिकल ट्रायल में शामिल मरीज़ों से आपको सुरक्षित रखा जाना चाहिए।
15. बिलिंग आदि प्रक्रियाओं के कारण आपका डिस्चार्ज या शव सौंपने को अस्पताल टाल नहीं सकता।
16. मरीज़ को आसान भाषा में स्वास्थ्य व इलाज के बारे में शिक्षित करना चाहिए।
17. आपकी शिकायतें सुनकर उसका निवारण अस्पताल/डॉक्टर को करना चाहिए।

स्वास्थ्य है संवैधानिक अधिकार
साल 1946 में, स्वास्थ्य विकास के लिए ‘हेल्थ सर्वे और विकास समिति’ ने अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को दी थी। 1950 में लागू हुए भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 में नागरिकों को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया. साथ आर्टिकल 47 के अंतर्गत साफ किया गया कि राज्य को लगातार ‘लोक स्वास्थ्य में सुधार और जीवन के स्टैंडर्ड सहित पोषण के स्तर को बेहतर करना’ होगा।

कैसे मिलें लोगों को स्वास्थ्य अधिकार और सेवाएं?
भारतीय संविधान के सातवें शेड्यूल में लोक स्वास्थ्य को देश के राज्यों की लिस्ट में रखा गया है। यानी राज्यों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की दिशा में प्रयास करने चाहिए. लेकिन कुछ राज्यों में हमेशा आर्थिक स्थितियां कमज़ोर रही हैं इसलिए बेहतर स्वास्थ्य ढांचे का अभाव रहा है। इसके बावजूद कुछ राज्यों में लोक स्वास्थ्य की दिशा में कुछ कानूनी प्रावधान किए गए जैसे तमिलनाडु पब्लिक हेल्थ एक्ट, कोचीन पब्लिक हेल्थ एक्ट, गोवा, दमन दीव पब्लिक हेल्थ एक्ट में विस्तार से नागरिकों के स्वास्थ्य संबंधी अधिकार सुरक्षित हैं।

क्या अस्पताल इलाज से मना कर सकता है? नैतिकता के हिसाब से यह गलत है. दूसरी ओर, अगर कोई अस्पताल स्वास्थ्य संबंधी इमरजेंसी या ज़रूरी समय में आपको इलाज देने से मना करता है तो यह सीधे आपके संवैधानिक अधिकार का हनन है और इसके लिए आप कानूनी लड़ाई लड़ सकते हैं. नेशनल ​हेल्थ बिल 2009 में विस्तार से मरीज़ों के अधिकारों के बारे में चर्चा है।

मरीज़ों को है न्याय का​ अधिकार
नेशनल ​हेल्थ बिल 2009 के तीसरे अध्याय में मरीज़ों के लिए न्याय का अधिकार सुरक्षित किया है. इसके मुताबिक अगर किसी भी व्यक्ति का स्वास्थ्य का अधिकार किसी भी तरह से छीना या हनन किया जाता है तो वह कानूनी अधिकारों के मुताबिक लड़ाई लड़ सकता है, हर्जाना पा सकता है और अपने अधिकारों का दावा कर सकता है।

आपके पास क्या हैं कानूनी विकल्प?
भारत में आप किसी डॉक्टर या अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र के खिलाफ क्षतिपूर्ति कानून, कॉंट्रैक्ट संबंधी कानून, क्रिमिनल कानून, कंज़्यूमर सुरक्षा कानून या संविधान संबंधी कानूनों के हिसाब से लड़ाई लड़ सकते हैं. यह लड़ाई दो तरीकों से लड़ी जा सकती है. एक, आप सिविल कोर्ट या कंज़्यूमर कोर्ट में वाद दाखिल कर हर्जाने संबंधी कार्यवा​ही कर सकते हैं और दूसरे, पुलिस थाने में एफआईआर या शिकायत के बाद आप कोर्ट में क्रिमिनल केस दायर कर सकते हैं।

भारत में लोक स्वास्थ्य की दुर्दशा क्यों?
आखिर में यह भी जानें कि भारत में लोक स्वास्थ्य सेक्टर दुर्दशा में क्यों है. भारत स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च करने वाले बड़े देशों में शुमार रहा है. 2019 में भारत ने स्वास्थ्य पर जीडीपी का 1.5 फीसदी खर्च किया और वित्तीय वर्ष 2020 में 1.6 फीसदी. इससे पहले, 2017-18 में जीडीपी का 1.28 फीसदी और 2016-17 में 1.02 फीसदी खर्च किया गया. श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देश तक स्वास्थ्य पर भारत से कहीं ज़्यादा खर्च करते रहे हैं।

तो लाइसेंस रद्द हो सकता है
अप्रैल के महीने के आखिर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग ने साफ कहा था कि कोई भी प्राइवेट या सरकारी अस्पताल किसी भी मरीज़ को हेल्थकेयर के लिए मना नहीं कर सकता, खासकर ज़रूरी स्थिति में तो कतई नहीं. यदि कोई अस्पताल या डॉक्टर इसका दोषी पाया गया तो गंभीरता से एक्शन लिया जाएगा और दोषी अस्पताल या नर्सिंग होम का लाइसेंस व रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकेगा।

कुल मिलाकर एक नागरिक और मरीज़ होने के नाते आपको अपने ​अधिकारों के लिए जागरूक होना पड़ेगा. यह सही है कि देश में स्वास्थ्य संबंधी व्यापक नीतियों और स्पष्ट कानूनों की कमी है, लेकिन ऐसे में भी आपके पास कई तरह के विकल्प हैं, जिनका इस्तेमाल किया जा सकता है

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*