नई दिल्ली। हर साल श्राद्ध पक्ष के खत्म होते ही अगले दिन से नवरात्रि शुरू हो जाते हैं। श्राद्ध के अगले दिन ही नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि होती आई है। मगर इस बार ऐसा नहीं होगा। यानी इस बार श्राद्ध समाप्त होते ही अधिकमास लग जाएगा। ऐसे में अधिकमास लगने की वजह से नवरात्रि पर्व 28-30 दिन आगे खिसक जाएगा। खास बात यह है कि इस साल दो महीने अधिकमास लग रहे हैं। अधिकमास लगने से नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा। दरअसल, ऐसा लीप वर्ष होने की वजह से हो रहा है।
वहीं बताया गया है कि इस साल चतुर्मास भी चार महीने की बजाय पांच महीने का होगा। ज्योतिषीय गणना के अनुसार 160 वर्ष बाद लीप वर्ष और अधिकमास एक साथ पड़ रहे हैं। ऐसे में चातुर्मास लगने से विवाह, मुंडन जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे। वहीं इस साल श्राद्ध 2 सितंबर से शुरू होंगे और 17 सितंबर को समाप्त होंगे। इसके अगले दिन 18 सितंबर से अधिकमास शुरू हो जाएगा. यह 16 अक्टूबर तक चलेगा। जहां नवरात्रि का पर्व 17 अक्टूबर से शुरू होगा और 25 अक्टूबर को समाप्त हो जाएगा। वहीं चतुर्मास देवउठनी के दिन 25 नवंबर को समाप्त होंगे। चतुर्मास के समाप्त होने के बाद ही विवाह, मुंडन जैसे मांगलिक कार्य शुरू हो सकेंगे।
धार्मिक मान्यता के अनुसार इस समय भगवान विष्णु के पाताल लोक में निद्रासन में आने के बाद वातावरण में नकारात्मक शक्तियां फैलनी शुरू हो जाती हैं। विष्णु भगवान के निद्रा में जाने से इस काल को देवशयन काल माना गया है। चतुर्मास में नकारात्मक विचार उत्पन्न होते हैं। इस मास में दुर्घटना, आत्महत्या आदि घटनाएं बढ़ जाती हैं। इनसे बचने के लिए मनीषियों ने चतुर्मास में एक ही स्थान पर रहकर गुरु यानी ईश्वर की पूजा करने को महत्व दिया है। इससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। मान्यता है कि भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीरसागर में योग निद्रा पर निवास करते हैं। इस दौरान व्रत पूजन और अनुष्ठान का अत्याधिक महत्व है।
पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके तर्पण के निमित्त श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध का अर्थ है, श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के प्रति सम्मान जताना। हिंदू धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य का प्रवेश कन्या राशि में होता है तो इस दौरान पितृ पक्ष होता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण और पिंडदान को सर्वोत्तम माना गया है।
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