नॉलेज: ये है दुनिया सबसे काला रंग, जो रोशनी को निगल जाता है

नई दिल्ली। काला रंग आखिर कितना काला हो सकता है? आप सोचेंगे कि काले के तीन-चार शेड्स के अलावा क्या होता है। लेकिन नहीं, वैज्ञानिकों ने इतने गहरे काले रंग की खोज की है, जो रोशनी को लगभग खा जाता है. इस रंग को अगर ऊबड़-खाबड़ सतह पर लगा दिया जाए तो वो बिल्कुल सपाट और चिकनी दिखनी लगती है। इस काले पदार्थ को वेंटाब्लैक नाम दिया गया है। जानिए, क्या है ये पदार्थ और कैसे काम करता है।

रोशनी को सोखने की ताकत
वेंटाब्लैक में रोशनी को अवशोषित करने की शक्ति होती है। ये लाइट के 99.96 प्रतिशत हिस्से को सोख लेता है, जो इतना ज्यादा है कि अगर इस पदार्थ से बनी एकदम पतली लेयर भी कहीं लगा दी जाए तो वहां घुप अंधेरा छा जाएगा और कुछ भी देखना असंभव हो जाएगा।

हमें चीजें कैसे दिखाई देती हैं?
जब कोई भी चीज अपनी सतह से लाइट को परावर्तित करती है तो ही वो हमारी आंखों तक पहुंच पाती हैं। उनके आंखों तक पहुंचने पर ही हम उसे देख पाते हैं। इसी तरह से जब कोई चीज सतह से रोशनी को परावर्तित नहीं करती है तो उसे ब्लैक कहते हैं। यानी ये ब्लैक सतह से किसी भी तरह की रोशनी का परावर्तन नहीं हो पाता है, यही वजह है कि हम अंधेरे में उतने बढ़िया तरीके से नहीं देख पाते।

अंधेरे में जानवर कैसे देख पाते हैं
वैसे हल्के-फुल्के या एक हद तक गहरे अंधेरे में तो हम सब देख पाते हैं। रात के अंधेरे में थोड़े ही देर बाद आंखें आदी हो जाती हैं और आसपास को देखने लगती हैं। वहीं कई जावनर रात के अंधेरे में एकदम बारीकी से देख पाते हैं। ये उनकी आंखों में पाई जाने वाली एक चमकदार परत के कारण होता है, जिससे रोशनी परावर्तित हो जाती है और अंधेरे में देखना आसान होता है।

ब्रिटिश कंपनी ने बनाया
वेंटाब्लैक के कालेपन का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि अंधेरे में आसानी से देख सकते जानवर भी इस सतह के कारण देख नहीं पाते हैं। ये प्रयोग ब्रिटेन में एक नैनोटेक कंपनी सरे नैनोसिस्टम ने किया था। इसमें पाया कि रोशनी की पूरी तरह से सोखकर वेंटाब्लैक टोटल डार्कनेस यानी पूरी तरह से अंधेरा कर देता है। इससे काले रंग के सिवाय कुछ नहीं दिखता।

इस प्रक्रिया से हुआ तैयार
कार्बन के नैनोट्यूब्स से मिलाकर इस पदार्थ को तैयार किया गया. इसमें हर नैनोट्यूब की मोटाई 20 नैनोमीटर के बराबर है। यानी यह बाल की मोटाई से भी 3,500 गुना पतला है। इनकी लंबाई 14 से 50 माइक्रॉन्स तक है. यानी 1 वर्गसेंटीमीटर की छोटी-सी जगह पर पर 1 अरब नैनोट्यूब्स समा जाते हैं। इन्हें इकट्ठा करने के लिए केमिकल वेपर डीकंपोजिशन (CVD) प्रोसेस अपनाई गई. बता दें कि सेमीकंड्क्टर इंडस्ट्री में पतली फिल्म बनाने के लिए यही प्रक्रिया काम में लाई जाती है। इससे पतला लेकिन ठोस पदार्थ बनाया जाता है। इसी के तहत वेंटाब्लैक बना।

ऐसे करता है वेंटाब्लैक काम
जब प्रकाश की किरणें वेंटाब्लैक पर पड़ती हैं जो वे परावर्तित होने की बजाए नैनोट्यूब्स के बीच की बारीक जगहों पर फंसकर रह जाती हैं. ये रोशनी का 99.965% हिस्सा सोख लेता है और कुल मिलाकर रोशनी का केवल 0.04 प्रतिशत हिस्सा की रिफ्लैक्ट होता है। यही वजह है कि हमारी आंखों को काले के सिवा कुछ और नजर आता ही नहीं. न कोई शेड दिखते हैं, न ही उभार और गहराइयां नजर आती हैं। सिर्फ घुप्प अंधकार जैसा काला रंग नजर आता है।

कहां हो सकता है इस्तेमाल
खास बात ये है कि वेंटाब्लैक अल्ट्रावायलेट, विजिबल और इन्फ्रारेड तीनों तरह के प्रकाश को अवशोषित करता है। साथ ही ये काफी बढ़िया थर्मल कंडक्टर भी है। इसी वजह से माना जा रहा है कि आगे इसका इस्तेमाल महत्वपूर्ण कामों में हो सकेगा। खासकर एरोस्पेस और रक्षा विभागों के लिए ये काफी काम की चीज साबित हो सकती है।

एक और ऐसा ही रंग तैयार
ये सारी संभावनाएं देखते हुए ब्रिटेन की ही नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी ने सुपर ब्लैक भी बना डाला जो वेंटाब्लैक की तर्ज पर ही काम करता है। इस तकनीक से बना पेंट रोशनी का 99 प्रतिशत हिस्सा अवशोषित कर लेता है। बता दें कि सामान्य काला पेंट प्रकाश का अधिकतर 97.5% हिस्सा ही अवशोषित कर पाता है। दुनिया के सबसे काले रंग को देखते हुए बीएमडब्ल्यू ने वेंटाब्लैक के पेंट वाली एक कार भी बना डाली, जिसे ब्लैक बीस्ट कहा गया।

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