नई दिल्ली। इस समय दुनिया भर में ऐसे इमारतें बनाने पर जोर दिया जा रहा है जिनमें बिजली और अन्य ऊर्जा की खपत कम हो सके। इमारतों डिजाइन करते समय इस बात का खास ध्यान रखा जाता कि दिन के समय प्राकृतिक रोशनी से ही इमारत के कोने कोने का काम चल सके. इसके अलावा वायुसंचालन भी इस तरह के हो कि इसके लिए बिजली उपकरण का कम से कम उपयोग हो. इसी दिशा में वैज्ञानिकों ने एक खास तरल खिड़की का निर्माण किया है जो उसके जरिए आने वाली रोशनी से अधिक ऊर्जा को सहेज लेती है और बाद में उसे उत्सर्जित भी कर देती है।
सूर्य से आने वाली ऊर्जा का नियंत्रण
सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजीकल यूनिवर्सटी के वैज्ञानिकों ने इस खिड़की का विकास किया है। उन्होंने ऐसा तरल खिड़की पैनल बनाया है तो सूर्य से आने वाली ऊर्जा को रोकने के साथ उसे नियंत्रित भी कर सकता है. यह पैनल ऊष्मा को सहेजने के साथ ही उसे दिन रात छोड़ने का काम करते हुए इमारतों में ऊर्जा की खपत को कम करने में मददगार होता है।
कितनी बचत होती है
NTU के शोधकर्ताओं ने अपनी स्मार्ट विंडो के पैनल के अंदर हाइड्रोजेल आधारित तरल डाला और पाया कि सिम्यूलेशन्स में किसी इमारत में यह परम्परागत ग्लास खिड़की की तुलना में 45 प्रतिशत तक की ऊर्जा की खपत में बचत करता है।
सस्ता और कारगर
इतना ही नहीं यह बनाने में भी सस्ता है और साथ ही बाजार में उपलब्ध लो एमिसिविटी ग्लास की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा कारगर है। ऐसा तरल पदार्थ से बने ऊर्जा बचत करने वाले स्मार्ट विंडो एक साइंटिफिक जर्नल में पहली बार प्रकाशित हुआ है। यह NTU स्मार्ट कैम्पस विजन का भी समर्थन करता है जिसका लक्ष्य संधारणीय भविष्य के लिए उन्नत तकनीकी समाधान विकसित करना है।
खिड़कियों की अहमियत
खिड़कियां किसी इमारत की डिजाइन की प्रमुख तत्व होती हैं। लेकिन वे ऊर्जा के मामले में सबसे कम फलोत्पादक हिस्सा होती हैं। इनके कांच से आसानी से ऊष्मा के आने जाने से इनका इमारत के गर्म करने और ठंडा करने की कीमत पर खासा असर होता है। संयुक्त राष्ट्र की साल 2009 कि रिपोर्ट के अनुसार इमारतों में वैश्विक ऊर्जा उपयोग का 40 प्रतिशत हिस्से की खपत होती है। और इसमें से आधी ऊर्जा खपत खड़कियों के कारण होती है।
परंपरागत खिड़कियों में समस्या
परंपरागत ऊर्जा बचत करने वाली का उत्सर्जन करने वाली वाली खिड़कियां एक महंगी परत से बनी होती हैं जो इंफ्रारेड तरंगों को पार नहीं जाने देती हैं जिससे इमारत की ऊष्मा और ठंडक की मांग कम हो जाती है। लेकिन इनके साथ समस्या यह होती है कि इमारतों को गर्म करने में प्रकाश का प्रमुख घटक होता है।
क्या किया प्रयोग
इस सीमा से उबरने के लिए शोधकर्ताओं ने पानी पर ध्यान दिया जो गर्म होने से पहले बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा अवशोषित करता है। यह प्रक्रिया उच्च विशिष्ट ऊष्मा धारिता कहलाती है। शोधकर्ताओं ने माइक्रो हाइड्रोजेल, पानी और एक स्टैब्लाइजर का उपयोग किया. उन पर किए गए प्रयोग और सिम्यूलेशन से उन्होंने पाया कि यह मिश्रण कारगर तरीके से विभिन्न जलवायु में ऊर्जा की खपत को कम कर सकता है। इसकी वजह इसका बदला तापमान में प्रतिक्रिया करने की क्षमता है। हाइड्रोजेल की वजह से ऊष्मा के सामने यह तरल अपारदर्शी हो जाता है जिससे यह सूर्य के प्रकाश को रोक लेता है, लेकिन ठंडा होने पर यह वापस मूल पारदर्शी अवस्था में आ जाता है।
तरल खिड़की ऑफिस इमारतों के लिए सबसे उपयुक्त है. इसमें उपयोग में लाए जाने वाला मिश्रण दो कांच के पैनलों के बीच डाला जाता है जिससे इसे किसी भी आकार में डिजाइन किया जाता है। इसके अलावा यह परंपरागत ध्वनि को भी बेहतर तरीके रोकने में सक्षम है।
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