लखनऊ। कोरोना वायरस के चलते देशव्यापी लॉकडाउन है। ऐसे में देश के विभिन्न हिस्सों में मजदूर फंस गए जो अपने घरों को लौटना चाहते थे. लॉकडाउन के तीसरे चरण में सरकार को इन मजदूरों की सुध आई और इनके लौटने के लिए विशेष रेलगाड़ियों का प्रबंध किया गया। शुरुआती दावों में कहा गया कि इनके लौटने की व्यवस्था सरकार द्वारा की जा रही है लेकिन इन दावों की हकीकत जल्द ही सामने आने लगी जब घर वापसी कर रहे श्रमिकों ने बताया कि उनसे टिकट के पैसे लिए जा रहे हैं. जिसके बाद सियासी पारा भी खूब गरमाया एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इन मजदूरों के टिकट का पैसा कांग्रेस पार्टी (congress party) के फंड से करवाने का आश्वासन दिया तो वहीं समाजवादी पार्टी व अन्य दलों ने ऐसे वायदे किए। लेकिन जमीनी हकीकत में कोई बदलाव नहीं हुआ।
वापसी के सिवा कोई चारा भी तो नहीं था
गुजरात के सूरत से पंडित दीनदयाल रेलवे स्टेशन पर पहुंची श्रमिक स्पेशल ट्रेन से आने वाले श्रमिक का दावा है कि उनसे 630 रुपये के टिकट के एवज में 800 रुपये वसूले गए। वो अपनी बेबसी बयां करते हुए कहते हैं कि हमारे पास वापसी के सिवा कोई चारा भी तो नहीं था क्या करते, जितने पैसे मांगे गए दिए. वो टिकट भी दिखाते हैं जिस पर 630 रुपये प्रिंट है. डीडीयू रेलवे स्टेशन पर से बातचीत में एक प्रवासी ने कहा, ‘मैंने 630 रुपये के टिकट के लिए जो कीमत अदा की वह 800 रुपये है, जबकि खाने के नाम पर सिर्फ प्लेन चावल परोसा गया।’
बिचौलिए भी सक्रिय
गौरतलब है कि विशेष श्रमिक गाड़ियों से देश के विभिन्न हिस्सों से लाखों प्रवासी श्रमिक उत्तर प्रदेश वापस लौट रहे हैं. उन्ही में से एक श्रामिक विशेष ट्रेन गुजरात राज्य के प्रवासियों के साथ शुक्रवार शाम दीन दयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन पर पहुंची थी. श्रमिकों के ये आरोप सरकार के उन दावों के खिलाफ हैं जिनमें कहा जा रहा है कि प्रवासी मजदूरों से इन विशेष ट्रेनों में यात्रा के लिए ट्रेन किराए का भुगतान करने के लिए नहीं कहा गया है, मजदूरों का कहना है कि मुफ्त यात्रा की बात तो छोड़ ही दीजिये. उनसे तो निर्धारित मूल्य से भी ज्यादा वसूला जा रहा है. एक अन्य प्रवासी मजदूर ने बताया कि उन्हें भी टिकट के लिए 750 रुपये का भुगतान करने के लिए कहा गया था जिसमें स्पष्ट रूप से यात्रा की लागत के रूप में 630 रुपये का उल्लेख किया गया था. उनका कहना था कि उन्होंने टिकट के पैसे पहले ही जमा कर दिए थे जब उनका नंबर आया तो उन्हें एक बस से रेलवे स्टेशन ले जाया गया. स्टेशन पहुंचने से पहले हमें बस में टिकट दिया गया, उन्होंने कहा हो सकता हो कि वो बिचौलिए हों.
प्रवासियों की कहानी अलग ही तस्वीर बयां करती है
बता दें कि केंद्र सरकार ने 40 दिनों के लॉकडाउन के बाद प्रवासी श्रमिकों को घर तक पहुंचाने के लिए स्पेशल ट्रेन चलाने पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन लॉकडाउन के कारण नौकरी खोने के कारण पहले से ही आर्थिक परेशानी झेल रहे श्रमिकों से किराया वसूलने को विपक्ष ने मुद्दा बनाया. कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी टिकट की लागत का खर्च उठाएगी. इस मुद्दे पर लगातार आलोचना झेल रही केंद्र सरकार ने खुद का बचाव करते हुए कहा कि लागत में सब्सिडी दी जा रही है और प्रवासी श्रमिकों को भुगतान करने के लिए कभी नहीं कहा गया. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने दावा किया कि केंद्र टिकट लागत का 85% वहन कर रहा है.
लेकिन प्रवासियों की कहानी अलग ही तस्वीर बयां करती है. उनका कहना है कि “जब हम में से कुछ लोगों ने फॉर्म भरे, तो हमारे पेपर खारिज कर दिए गए, हमसे 800 रुपये देने के लिए कहा गया. जब हमने इसका कारण पूछा, तो हमें बताया गया कि यात्रा के लिए हमें इस राशि का भुगतान करना होगा. नीरज कुमार कहते हैं कि ओवर प्राइज का विरोध करने पर हमसे कहा गया कि “हम कतार से बाहर जा सकते हैं. उनका कहना था कि बिचौलियों की तरह दिखने वाले लोगों ने हमारे आधार कार्ड और पैसे ले लिए और फिर हमें टिकट दिए गए. कांग्रेस पार्टी के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू का आरोप है कि प्रदेश सरकार प्रवासियों के विवरण उपलब्ध कराने के कांग्रेस पार्टी के अनुरोधों का कोई जवाब नहीं दे रही है. उनका कहना था कि हम लगातार प्रवासियों की सूची सरकार से मांग रहे हैं जिसके लिए पत्र भी भेजा गया था, दो दिन बीत चुके हैं लेकिन सरकार द्वारा कोई जानकारी नहीं दी गई.
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