मेरठ। कोरोना की रोकथाम के लिए उत्तर प्रदेश सरकार प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था को दुरुस्त करने में लगी हुई है। एक तरफ जहां महामारी से बचाव के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, तो इसके साथ-साथ अस्पतालों में कोरोना टेस्ट की संख्या भी बढ़ाई जा रही है। लेकिन इस काम में स्वास्थ्यकर्मियों को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। इन्हीं चुनौतियों में से एक हैं बंदर। जी हां, मेरठ में तो बंदरों ने पूरे मेडिकल कॉलेज को परेशान कर रखा है. मेडिकल कॉलेज में बंदर लगातार मरीजों, डॉक्टरों और पैरा मेडिकल स्टाफ को परेशान कर रहे हैं। शुक्रवार को मेडिकल कॉलेज में उस समय अजीबो-गरीब स्थिति उत्पन्न हो गई, जब बंदरों ने एक लैब टेक्नीशियन से कोरोना मरीजों की तमाम जांचों के लिए गए सैंपल ही छीन लिए. इस घटना का वीडियो वायरल हो गया है।
काफी मशक्कत के बाद भी बंदर नियंत्रित नहीं हुए और सभी सैंपल खराब हो गए. आखिरकार जांच के लिए कोरोना मरीजों से दोबारा सैंपल लिए गए. वायरल वीडियो में दिख रहा है कि कैसे बंदर पेड़ पर बैठकर छीने गए सैंपल को खाने की कोशिश कर रहा है और उसे बाद में गिरा देता है।
https://youtu.be/kTDTkbKMYNQ
कोरोना मरीजों के दूसरी जांचों के सैंपल: प्रिंसिपल
वीडियो के वायरल होने के बाद मेरठ मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल का बयान आया है। प्रिंसिपल डॉक्टर एसके गर्ग का कहना है कि जो सैंपल बंदर ले गए हैं, वो कोरोना के थ्रोट के सैंपल नहीं हैं, बल्कि कोरोना के मरीज़ों के जो दूसरे टेस्ट होते हैं वो हैं। क्या बंदरों में भी कोरोना हो सकता है? प्रिंसिपल का कहना है कि अभी कोई साइंटफिक रिसर्च नहीं है कि बंदरों में कोरोना हुआ हो। वहीं डीएम इस मामले की जांच की बात कह रहे हैंं
वन विभाग को सूचना के बाद भी नहीं पकड़े गए बंदर: सीएमएस
मामले में सीएमएस डॉ. धीरज बालियान ने बताया कि कोरोना मरीजों की जांच के लिए ये सैंपल ले जाये जा रहे थे, इसी दौरान बंदरों ने लैब टेक्नीशियन से सैंपल छीन लिए। उन्होंने कहा कि वन विभाग को सूचना के बाद भी बंदर पकड़े नहीं गए. अब दोबारा सैंपल लिये जा रहे हैं।
कई उपाय किए मगर बंदरों के आतंक से नहीं मिली निजात
बता दें मेरठ में बंदरों के आतंक का ये पहला मामला नहीं है. मेडिकल कॉलेज में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जब या तो किसी मरीज का कोई सामान छीन लिया गया या किसी स्टाफ को बंदरों ने परेशान किया. यही नहीं चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी में तो बंदरों से निपटने के लिए बाकायदा एक लंगूर भी तैनात किया गया, जिसे तनख्वाह भी दी जाती है. लेकिन नतीजा सिफर ही रहा।
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