मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौतों नही ले रहा थमने का नाम, अब तक का आंकड़ा

राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि जिन बच्चों की मौत हुई है, उनमें लगभग सभी 10 वर्ष से नीचे के हैं। मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) में अब तक 85 बच्चों की मौत हो चुकी है। वहीं, ट्र्स्ट द्वारा संचालित केजरीवाल मैत्री सदन अस्पताल में 18 मौतें हुई हैं।

बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार (अक्यूट इन्सेफलाइटिस सिंड्रोम) के कारण राज्य में 107 बच्चों की मौतों ने देश को हिलाकर रख दिया है। मौतों पर सियासत भी शुरू हो गई है। इस बीच, इन मौतों के पीछे कई और वजहें भी बताई जा रही हैं। बढ़ती गर्मी, बच्चों के पोषण से जुड़ी योजनाओं की नाकामी और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बीमारी से निपटने के लिए इंतजाम नहीं होने को भी मौत के आंकड़ें बढ़ने का कारण बताया जा रहा है। वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज अस्पताल में भर्ती बच्चों का हाल जानने मुजफ्फरपुर पहुंच रहे हैं।

राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि जिन बच्चों की मौत हुई है, उनमें लगभग सभी 10 वर्ष से नीचे के हैं। मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) में अब तक 88 बच्चों की मौत हो चुकी है। वहीं, ट्र्स्ट द्वारा संचालित केजरीवाल मैत्री सदन अस्पताल में 19 मौतें हुई हैं।AIS के लिए लीची में मौजूद टॉक्सिन्स (विषैले तत्वों) को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। अस्पताल में अभी 330 बच्चों का इलाज चल रहा है। वहीं, 100 बच्चों को डिस्चार्ज किया जा चुका है।

10 साल में 1000 से ज्यादा मौतें
2000 से 2010 के दौरान संक्रमण की चपेट में आकर 1000 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी। बीमारी की स्पष्ट वजह अभी सामने नहीं आई है लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक बढ़ती गर्मी, लू, कुपोषण और खाली पेट लीची खाने की वजह से इस साल मौतों की संख्या ज्यादा है। समय से ग्लूकोज चढ़ाना ही इसमें सबसे प्रभावी इलाज माना जा रहा है।
एसकेएमसीएच में भर्ती पीड़ित बच्चे
मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच में बाल रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. जीएस सहनी का कहना है कि केवल लीची को जिम्मेदार ठहराना न्यायसंगत नहीं होगा। वह कहते हैं, ‘शहर में रहने वाले बच्चे भी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। जबकि पिछले दो दशक के दौरान शहरी इलाकों में एईएस के सिर्फ चार मामले सामने आए थे।’

कुपोषण की वजह से ज्यादा मौतें
इन्सेफलाइटिस से जिन बच्चों की मौत हुई है, उनमें से ज्यादातर महादलित समुदाय से आते हैं। इसमें मुसहर और दलित जातियां शामिल हैं। ज्यादातर बच्चे कुपोषण का शिकार थे। इस बीच बीमारी का दायरा अब बढ़ता जा रहा है। पड़ोसी पूर्वी चंपारण, शिवहर और सीतामढ़ी से भी चमकी बुखार के मामले सामने आ रहे हैं। हाल ही में वैशाली के दो ब्लॉक में भी कुछ संदिग्ध मामले देखे गए थे।

डॉक्टर, दवा, बेड नाकाफी
अस्पताल में डॉक्टरों की कमी, जरूरी दवाओं की अनुपलब्धता, बेड और नर्सिंग स्टाफ की कमी से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। एसकेएमसीएच समेत राज्य सरकार द्वारा संचालित अस्पताल इस दिक्कत से जूझ रहे हैं। एसकेएमसीएच के सुपरिंटेंडेंट डॉ. एसके सहनी का कहना है कि एईएस के मरीजों के इलाज के लिए विभाग को अब तक कोई अतिरिक्त फंड नहीं मुहैया कराया गया है। वह कहते हैं, ‘मरीजों की बाढ़ से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।’ रविवार को अस्पताल का दौरा करने वाले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने कहा था कि बाल रोग विभाग के लिए 100 बेड वाली नई बिल्डिंग का जल्द निर्माण होगा।

मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच अस्पताल में इंतजाम नाकाफी

5 साल की अपनी बेटी निधि को बीमारी की वजह से खो देने वाली सुनीता देवी का कहना है कि अस्पताल बच्चों से भरे पड़े हैं और उन्हें तुरंत इलाज की जरूरत है। इस बीच अब तक डॉक्टर बीमारी की स्पष्ट वजह नहीं पता लगा सके हैं। 2017 के लैंसेट ग्लोबल हेल्थ मेडिकल जर्नल के मुताबिक प्रभावित गांवों के बच्चे दिनभर लीची तोड़ने और खाने के बाद रात का भोजन नहीं करते थे, जिससे उनके ब्लड शुगर लेवल में गिरावट आ जाती थी। 

गर्मी से बढ़ा कहर?
इस बीच कई डॉक्टर भीषण गर्मी को भी बीमारी से जोड़कर देख रहे हैं। मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन एसपी सिंह ने हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘एईएस के बढ़ते मामलों और इस साल मौतों में इजाफे के लिए निश्चित रूप से बढ़ती गर्मी की भी अहम भूमिका है। पिछले दो सालों से तापमान में ज्यादा बढ़ोतरी हो रही है। 2017 और 2018 में जब कम गर्मी पड़ी थी तो एईएस से 11 और 7 मौतें हुई थीं।’ 1 जून से मुजफ्फरपुर में तापमान लगातार 40 डिग्री से ऊपर दर्ज हुआ है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि गर्मी, उमस, गंदगी और कुपोषण बीमारी के विस्तार की अहम वजहें हैं।

सरकारी पोषण कार्यक्रम नाकाम
बिहार का स्वास्थ्य विभाग मुजफ्फरपुर और उसके आसपास के इलाकों में प्रभावी तरीके से पोषण कार्यक्रम चलाने में नाकाम नजर आ रहा है। मुजफ्फरपुर के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अरुण शाह कहते हैं, ‘ग्लूकोज का स्तर अचानक गिरने की स्थिति को हाइपोग्लाइसीमिया कहा जाता है। इस दौरान शरीर रिजर्व ग्लूकोज का इस्तेमाल करता है। कुपोषित बच्चों के शरीर में रिजर्व ग्लूकोज नहीं रहता है। इसलिए तत्काल कृत्रिम शुगर दिए जाने पर जान बचाई जा सकती है लेकिन इसमें आधे घंटे की देरी भी जानलेवा हो सकती है।’ बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे भी कहते हैं कि एईएस प्रभावित इलाकों में कोई विशेष पोषण कार्यक्रम नहीं चलाया जा रहा है।

प्रभावित इलाकों के ज्यादातर पीएचसी में ग्लूकोमीटर का इंतजाम नहीं है

जागरूकता का अभाव
स्थानीय लोगों का आरोप है कि लोकसभा चुनाव की वजह से मुजफ्फरनगर समेत आसपास के इलाकों में पिछले कुछ महीनों के दौरान जागरूकता अभियान नहीं चलाया गया है। ऐसे अभियान के दौरान बच्चों को गर्मी से बचने के लिए पूरी बांह के कपड़े, सूर्य की रोशनी में ज्यादा देर नहीं रहने और रात में कुछ खाने के बाद ही सोने की सलाह दी जाती है। ओआरएस के पैकेट भी बांटे जाते हैं। लेकिन इस बार प्रशासन की ओर से ऐसी कोई तैयारी नहीं नजर आई।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बदहाल 
ज्यादातर मामलों में सबसे पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) पर बच्चों को इलाज के लिए लाया जाता है लेकिन यहां एईएस के मामलों से निपटने के लिए इंतजाम नाकाफी हैं। ज्यादातर पीएचसी में ग्लूकोमीटर नहीं है, जिससे कि पीड़ित बच्चे के शरीर में ग्लूकोज का स्तर मापा जाता है। जब तक मामला एसकेएमसीएच रिफर किया जाता है हालत बिगड़ जाती है।

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इन्सेफलाइटिस सिंड्रोम के लक्षण

15 साल से कम उम्र के बच्चों में अक्यूट इन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) यानी चमकी बुखार के मामले देखे जा रहे हैं। इस दौरान बच्चों में तेज बुखार के साथ ही सिर दर्द, शरीर में खुजली, उल्टी, देखने-सुनने की क्षमता में कमी, लकवा और बेहोशी जैसे लक्षण नजर आते हैं। एक नजर पिछले 10 सालों में इस बीमारी से हुई मौतों के आंकड़े पर:

वर्षइन्सेफलाइटिस से मौतें
200995
201024
2011197
2012275
2013143
2014355
201535
201604
201711
201807
2019107*

*नोट: 18 जून 2019 तक हुई मौतों का आंकड़ा

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