उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में रूपकुंड झील है जहां साल के अधिकतर समय बर्फ जमी रहती है. गर्मी में जब ये बर्फ पिघलने लगती है तब यहां एक जगह जमा हुए मानव कंकाल देखने को मिलते हैं. इनमें से कुछ कंकालों में मांस का भी अंश दिखाई देता है. इस वजह से यह झील कंकालों के झील के रूप में भी जाना जाने लगा है. इनमें से कुछ कंकालों का अध्ययन करने के बाद ऐसा अनुमान लगाया गया कि ये कम-से-कम 1200 वर्ष पुराने हैं. लेकिन फिर भारत , अमेरिका और जर्मनी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन से कुछ अलग जानकारी निकल कर सामने आई. इन वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि ये कंकाल यहां एक
साथ नहीं आए बल्कि ये यहां हजारों साल की अवधि में भिन्न-भिन्न समय में जमा होते गए.
मानवविज्ञानी दशकों से रूपकुंड झील के बारे में जानते हैं. लेकिन उन्हें इन कंकालों के बारे में बहुत कम जानकारी है. यहां बर्फ के टुकड़ों के स्थानान्तरित होते रहने और इंसानों की आवाजाही से कंकालों के अवशेष बिखर गए. इंग्लैंड में यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के जैव पुरातत्वविद् कैट जर्मन का कहना है कि इस वजह से पक्के तौर पर ये मालूम कर पाना मुश्किल साबित हो रहा है कि आखिरकार इन्हें कब दफनाया गया और ये कौन लोग थे ?
भारत में प्राचीन डीएनए के विशेषज्ञ नीरज राय और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के आनुवांशिकीविद् डेविड रीच दर्जनों कंकालों के नमूनों के अवशेषों से डीएनए निकाल कर ये पहचान करने में कामयाब रहे कि उनमें 23 पुरुष और 15 स्त्री थे. इन विशेषज्ञों के अनुसार ये कंकाल दक्षिण एशियाइयों के थे. इनके अवशेष सातवीं और दसवीं शताब्दी के मालूम होते हैं. विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि कुछ कंकाल तो और भी अधिक प्राचीन हैं.
17 वीं और 20 वीं शताब्दी के दरम्यान और दो आनुवांशिक समूहों के कंकाल अचानक झील के भीतर दिखाई दिए. इनमें से 1 पूर्वी एशिया से संबंधित वंश का और अन्य 14 पूर्वी भूमध्य वंश के लोगों के कंकाल थे. इनकी मौत के पीछे जीवाणु संक्रमण का कोई सबूत नहीं मिला है. संभवत: इतनी ऊंचाई पर रहना इनकी मौत का कारण बना.
क्या रहे होंगे इनकी मृत्यु के कारण ?
हार्वड में डॉक्टरेट के छात्र और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक हाडोनी हार्नी का कहना है कि ऐसा मानना मुश्किल है कि हर व्यक्ति की मृत्यु एक ही कारण से हुई होगी. इन कंकालों में बच्चे, व्यस्क और बुजुर्ग सभी शामिल थे, लेकिन कोई भी एक ही परिवार का या रिश्तेदार नहीं था. कंकालों के अध्ययन से ये भी पता चला है कि सभी के आहार अलग-अलग थे. इस अध्ययन से ऐसी धारणा बनी है कि ये सभी अलग-अलग जन समूहों का प्रतिनिधित्व करते थे.
शोधकर्ताओं का कहना है कि रूपकुंड झील आधुनिक हिंदू तीर्थयात्रियों के मार्ग पर स्थित है. ऐसे में तीर्थयात्री बनकर इस मार्ग से जा रहे दक्षिण एशियाई मूल के कुछ लोगों की मौत किन्हीं कारणों से हो गई होगी. जैव पुरातत्वविद् कैट जर्मन का कहना है कि शायद वे भूमध्य प्रवासी नहीं थे. उनका आनुवांशिक वंशज ग्रीस के वर्तमान लोगों से मिलता जुलता है. उऩके अनुसार अज्ञात कारणों से ये सभी लोग बहुत दूर से रूपकुंड झील आए थे.
कैट जर्मन ने ये भी कहा कि यह स्थल विभिन्न धार्मिक मान्यताओं वाले मानव समूहों के लिए महत्व रखता है. इसलिए हो सकता है कि कुछ कंकालों को दफनाने के लिए यहां लाया गया था. संभवतः उन्हें झील में छोड़ दिया जाना था. या फिर ये भी हो सकता है कि वे खोजकर्ता थे, जो एक अद्भुत पर्वत श्रृंखला को देखने आए थे. रूपकुंड झील में मौजूद कंकालों के बारे में अब धीरे-धीरे कुछ पता चलने लगा है.
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