भगवान का शिव का दसवां ज्योतिर्लिंंग, पढ़िए नागेश्वर की रोचक कथा!

नई दिल्ली। सावन के महीने में भगवान शंकर की पूजा करने का विधान है। इस महीने में ज्योतिर्लिंगों में पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है। ऐसा करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। सावन के महीने में सोमवार के दिन भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा करने का विधान है. आज सावन का तीसरा सोमवार है। आज आप 12 में किसी भी एक ज्योतिर्लिंग में पूजा करते हैं तो आपको विशेष फल मिलता है।

आइए आज आपको भगनाव शिव के 10वें ज्योतिर्लिंग नागेश्वर के बारे में बताते हैं। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात में द्वारिकापुरी से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित है. इस ज्योतिर्लिंग की मान्यता पूरे देश में है, यहां देश के कोने-कोने से लोग पूजा करने आते हैं। मान्यता है कि जो भी सच्चे मन और श्रृद्धाभाव से यहां आता है भगवान शिव उसकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं।

नागेश्वर कैसे पड़ा नाम
गुजरात के इस ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव नाग देवता के रूप में विराजमान हैं। भगवान शिव को नागों का देव भी कहा जाता है। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को नागेश्वर कहा जाता है जिसका अर्थ होता है नागों का ईश्वर।

इस ज्योतिर्लिंग में पूजा करने से कटते हैं पाप
हिंदू आस्था में मान्यता है कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में सावन के महीने में विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से लोगों को पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही मनुष्य के जीवन से सभी प्रकार के संकट दूर हो जाते हैं।

व्यापारी को दिए थे भगवान शिव ने दर्शन
पौराणिक कथा में इस बात का उल्लेख है कि भगवान शिव ने प्रसन्न होकर सुप्रिय नाम के एक व्यापारी को दर्शन दिया था। यह व्यापारी भगवान शिव का परम भक्त था. भगवान शिव पर इस व्यापारी की अकाट्य आस्था थी। नगर में चारों ओर यह बात फैल चुकी थी कि व्यापारी शिव का बहुत बड़ा भक्त है, जिस पर कई राक्षसों ने व्यापारी को नुकसान पहुंचाने की बात सोची।

एक दिन व्यापारी अपनी नाव से व्यापार के लिए दूसरे स्थान पर जा रहा था, तभी राक्षस ने उसकी नाव पर हमला कर दिया. इसके बाद राक्षस ने व्यापारी और उसके सभी सहयोगियों को बंदी बना लिया। राक्षस व्यापारी को यातनाएं देने लगा। लेकिन व्यापारी चुपचाप यातनाएं सहते हुए भगवान शिव की भक्ति में लीन रहने लगा. इसके बाद व्यापारी के सहयोगी भी शिव की भक्ति करने लगे। इस बात का पता जब राक्षस को हुआ तो वह उसे बहुत गुस्सा आया।

इसके बाद राक्षस कारागार में व्यापारी से मिलने पहुंचा. यहां देखा तो व्यापारी और उसके साथी शिवजी की भक्ति में लीन था। यह देखकर उसे और भी गुस्सा गया। गुस्से में आकर राक्षस ने सैनिकों को व्यापारी को मार डालने का आदेश दिया। व्यापारी तभी भयभीत नहीं हुआ और शिवजी से अपने साथियों की रक्षा की प्रार्थना करने लगा. जब राक्षस के सैनिकों ने व्यापारी पर तलवार से हमला करने की कोशिश की तो भगवान शिव कारागार में ही जमीन फाड़कर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गये. भगवान शिव ने व्यापारी को पाशुपत अस्त्र दिया और कहा कि इससे अपनी रक्षा करना. इस अस्त्र से ही व्यापारी ने राक्षस का वध कर दिया।

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